चतु:पुरुषार्थ की प्राप्ति हेतु करें अजा एकादशी व्रत

चतु:पुरुषार्थ की प्राप्ति हेतु करें अजा एकादशी व्रत

।। अजा एकादशी ।। 

भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करके भगवान् नारायण की पूजा करने का शास्त्रीय विधान है । अजा एकादशी के दिन पूजा का संपूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब एकादशी से सम्बन्धित कथा का श्रवण किया जाये, इसलिए सम्पूर्ण व्रत फल की प्राप्ति के लिए व्रत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए ।

श्रीब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार अजा एकादशी का व्रत और पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ के सदृश पुण्यफल की प्राप्ति होती है तथा साथ ही अजा एकादशी के दिन पूजन के समय व्रत कथा सुनने से पूजा पूर्णतया सफल होती है और प्राणियों को समस्त इहलौकिक पापों से मुक्ति प्राप्त होती है ।

अजा एकादशी 2024 में व्रत और पारण का शुभ मुहूर्त :

  • 29 अगस्त को व्रत सबका । 
  • 30 अगस्त को व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करें ।

व्रत वाले दिन क्या करें ?

  • प्रातः शीघ्र जागकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं तथा घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें ।  
  • भगवान् नारायण का गंगाजल से अभिषेक करें । 
  • पीला पुष्प और तुलसीदल अर्पित करें । 
  • भगवान् को भोग अर्पित करें तथा इस बात का विशेष ध्यान रखें कि सात्विक वस्तुओं का भोग लगाया जाये । 
  • भगवान् नारायण के भोग में तुलसीदल अवश्य शामिल करें क्योंकि बिना तुलसीदल के भगवान् भोग ग्रहण नहीं करते हैं । 
  • एकादशी के पावन दिवस पर भगवान् नारायण के साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा करें । 
  • एकादशी के दिन पूजन करने के साथ ही केले के वृक्ष को जल अर्पित करें तथा दीपक जलाएं इससे भगवती लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। 
  • सुख-समृद्धि के लिए भगवान् नारायण का पंचामृत से अभिषेक करें तथा केसर युक्त पीला चंदन लगाएं । 
  • एकादशी के दिन मंदिर जाकर गेहूं और चावल का दान करना चाहिए इससे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है । 

विशेष :- व्रत वाले दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” इस मंत्र का यथाशक्ति जप करें ।

श्रीब्रह्मांड पुराण में वर्णित अजा एकादशी व्रतकथा :

कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन ! आप मुझे भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में बताइये । उस एकादशी का नाम तथा व्रत की विधि क्या है ? सब विस्तारपूर्वक कहिये ।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले हे युधिष्ठिर ! भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है । जो मनुष्य इस दिन भगवान् नारायण की भक्तिपूर्वक पूजा-आराधना तथा व्रत करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह एकादशी व्रत इहलोक और परलोक में मनुष्य का कल्याण करने वाला है । 

अजा एकादशी की कथा इस प्रकार है :

प्राचीनकाल में चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र राज्य करते थे । वे अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी थे । उन्होंने किसी अज्ञात कर्म तथा प्रतिज्ञा के कारण राज्य को त्याग दिये, स्त्री तथा पुत्र को बेचकर स्वयं एक चाण्डाल के सेवक बन गये । राजा ने चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का कार्य प्रारम्भ कर दिया परन्तु राजा ने इस आपत्ति के कार्य में भी सत्य को नहीं  छोड़ा । इस प्रकार कार्य करते हुए जब राजा को बहुत वर्ष व्यतीत हो गये तब स्वयं को इस नीचकर्म को करने पर ग्लानी हुई और अपनी मुक्ति का उपाय खोजने लगा । वह उस स्थान पर रहकर सदैव इसी चिंता में संलग्न रहता था कि मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मुझे मुक्ति प्राप्त हो ।  

एकबार जब राजा बहुत चिन्तित थे, उसी समय गौतम ऋषि वहाँ आ गए । राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपने दुःख की कथा सुनाने लगे । महर्षि गौतम राजा के दुःख से पूर्ण वाक्यों को सुनकर अत्यन्त दुःखी हुए और राजा से बोले कि हे राजन् ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अजा एकादशी आती है । तुम इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि में जागकर भगवन् नाम का कीर्तन करो । इससे अवश्य ही आपके समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे एवं तुम्हें सद्गति प्राप्त होगी । इस प्रकार गौतम ऋषि राजा को उसके कल्याण का मार्ग बताकर अन्तर्ध्यान हो गये ।

हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अन्त समय में  स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं । 

इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही “अश्वमेघ यज्ञ” का फल मिलता है।

कथासार

प्राणी को ईश्वर के प्रति पूरी निष्ठा रखनी चाहिए । कठिन परिस्थितियों में भी जो सत्य का मार्ग नहीं छोड़ते वे स्वर्ग के अधिकारी होते हैं । सत्य की परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ही होती है, अतः ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हुए सत्य का पालन करना चाहिए ।

श्रीब्रह्माण्डपुराण में वर्णित अजा एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • अजा एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को अपनी इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना चाहिए ।
  • अजा एकादशी का व्रत व्यक्ति को अर्थ और काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है ।
  • यह व्रत प्राचीन समय से यथावत चला आ रहा है, इस व्रत का आधार पौराणिक, वैज्ञानिक और संतुलित जीवन है ।
  • इस उपवास के विषय में यह वर्णित है कि इस उपवास के फलस्वरुप मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होता है।
  • यह व्रत मन को निर्मल तथा हृदय को शुद्ध करता है एवं सद्मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
  • उपासक समस्त पापों से मुक्त होता है।

इस प्रकार हमारे पुराणों जो विभिन्न एकादशियाँ बतलाई गयी हैं उन्हीं में से एक यह एकादशी है । इस एकादशी के व्रत का अनंत एवं अक्षुण फल है। 

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