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चन्द्र ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 4 Hours 45 minute
Price : 15000
About Puja

    चन्द्रमा का नवग्रहों में द्वितीय स्थान है । इनको बुद्धि, ज्ञान तथा मन का कारक माना जाता है । यह हमारी चिन्तन प्रक्रिया को प्रतिक्षण प्रभावित करता है । भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- पुष्णामि चौषधी: सर्वा सोमो भूत्वा रसात्मक: अर्थात् मैं रसात्मक सोमरूप से सभी अन्नादि औषधियों का पोषण करता हूं।  वेदों में सोम की उत्पत्ति परमेश्वर के मन से बताई गई है । इसीलिए शुद्ध अशुद्ध अन्न का मन पर तुरन्त प्रभाव पड़ता है ।  श्रीमद्भागवत के अनुसार चन्द्रदेव महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र हैं । भगवान् चन्द्रमा अत्रिगोत्रीय हैं । यामुन देश के स्वामी हैं । इनका शरीर अमृतमय हैं । इनके दो हाथ हैं - एक में वरमुद्रा तथा दूसरे में गदा हैं । दूध के समान श्वेत शरीर पर श्वेतवस्त्र, माला और अनुलेपन धारण किए हुए हैं । इनके गले में मोती का हार है । ये अपनी सुधामयी किरणों से तीनों लोकों को सींच रहे हैं । दस घोड़ों के त्रिचक्र रथ पर आरूढ़ होकर सुमेरु की प्रदक्षिणा कर रहे हैं । इनके अधिदेवता उमा देवी तथा प्रत्यधिदेवता देवता जल हैं । भगवान् श्रीकृष्ण चन्द्रवंशीय तथा सोलह कलाओं से युक्त थे । चन्द्र को कुबेर और माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है । विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा दस वर्ष की होती है ।  चन्द्रदेव की प्रतिकूलता से मनुष्य को मानसिक कष्ट तथा श्वास आदि रोग होते हैं ।  चन्द्रमा की प्रतिकूलता से व्यक्ति में स्थिरता का अभाव तथा मन विचलित रहता है । जिससे मानसिक अशान्ति रहती है तथा वह सटीक निर्णय नहीं ले पाता है । चन्द्रमा के पापग्रह से युक्त होने पर जीवन में क्लेश अथवा कारावास होने की सम्भावना रहती है । 
इस प्रकार की समस्त समस्याओं के निवारण हेतु चन्द्र अनुष्ठान करवाना चाहिए । इससे विभिन्न प्रकार की बाधाओं का नाश होता है ।

Benefits

चन्द्रग्रह के मन्त्रजप का माहात्म्य  :-

  • चन्द्र उपासना से व्यक्ति अपने कार्य के प्रति कटिबद्ध होता है तथा उसका आलस्य दूर होता है ।
  • व्यक्ति को मानसिक तनाव, चिन्ता, अवसाद, क्लेश एवं सिर दर्द आदि असाध्य रोगों में  लाभ होता है ।
  • जिसको प्रायः कफ से सम्बन्धित रोग रहते हों और दवाइयों से यदि ठीक नहीं हो रहे हों । इस प्रकार के असाध्य रोगों को नष्ट करने के लिए चन्द्र अनुष्ठान किया जाता है ‌।
  • चन्द्रदेव की उपासना से महिलाओं की रजोधर्म से संबन्धित अनियमितता को भी दूर किया जा सकता है । व्यक्ति को चन्द्र उपासना से मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है ।
  • व्यक्ति की मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है  तथा उसके कुल में मानसिक रोग युक्त बालक का जन्म नहीं होता है ।
  • चन्द्र उपासना से जीवन में लगने वाले सम्भावित कलङ्कों का भय नहीं रहता तथा व्यक्ति मानसिक रूप से सुदृढ़ होता है ।
  • वैदिक ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा चन्द्रदेव की प्रसन्नता , अनुकूलता एवं चन्द्र जनित रोगों की शान्ति हेतु वैदिक विधिपूर्वक शुभ मुहूर्त में अनुष्ठान करवाना चाहिए । इससे चन्द्रदेव प्रसन्न होकर साधक के इष्टकार्य की सिद्धि  करते हैं ।
  • चन्द्रमा की अनुकूलता हेतु मोती धारण करना चाहिए । चन्द्र की अनुकूलता प्राप्ति के चावल, कपूर, सफेद वस्त्र, चांदी, शङ्ख, सफेद चन्दन, सफेद पुष्प, चीनी, दही एवं मोती इत्यादि वस्तुएं वैदिक ब्राह्मण को दान करनी चाहिए ।
  • शास्त्रों के अनुसार चद्र ग्रह के मन्त्र की कुल जपसंख्या 11000  हजार बताई गई है ।
  • मंत्र जप करने या कराने से पूर्व  किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process

चन्द्रग्रह के मन्त्रजप में  होने वाले प्रयोग या विधि

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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