सूर्य ग्रह

सूर्य ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 1 Day
Price Range: 8100 to 21000

About Puja

      भारतीय ऋषियों ने अपनी साधना, परिश्रम एवं दिव्य ज्ञान के द्वारा ग्रहों की गति का अध्ययन करके जो निष्कर्ष निकाले हैं।  वे वस्तुत: प्रामाणिक होने के साथ- साथ इस बात के भी सूचक हैं कि इन सिद्धातों, नियमों एवं तथ्यों के पीछे ऋषि- मुनियों की हजारों वर्षों की तपस्या है। 
अतः स्पष्ट है कि संसार में घटने वाली प्रत्येक घटना एवं प्राणियों के जन्म से मरण पर्यन्त समस्त सुख-दुःख ग्रहों के अधीन हैं। काल का ज्ञान भी ग्रहों के अधीन होता है। पुराणों में मुनियों ने ग्रहों को उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय ( जन्म, पालन और मृत्यु ) का भी कारण बताया है। सूर्य सौरमण्डल के प्रमुख ग्रह हैं। जैसे भगवान् विष्णु का अधिवास वैकुण्ठ है, भगवान् आशुतोष कैलाशवासी हैं, ब्रह्माजी ब्रह्मलोक में निवास करते हैं ठीक उसी प्रकार भगवान् भुवनभास्कर का स्थान आदित्यलोक अर्थात् सूर्यमण्डल है। इसलिए वेदों में भी सूर्य को ही चराचर जगत् की आत्मा माना है। 

      यजुर्वेद में वर्णित मंत्र के अनुसार, ( सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ) अर्थात् सूर्य समस्त संसार की आत्मा है। सूर्यनारायण का एक नाम सविता भी है, जिसका अर्थ सृष्टि का पालनकर्ता भी होता है। (सविता सर्वस्य प्रसविता)। यह तेजस्वी सूर्यरूप सृष्टि के आदि में सबसे पहले प्रकट हुए थे। भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लिया  इसी कारण उन्हें आदित्य भी कहा जाता है। सूर्य की सत्ता के अभाव में संसार के किसी भी प्राणी की वृद्धि प्रायः असम्भव है। भगवान् सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। मेष राशि के दस अंश में स्थित होकर उच्च तथा कन्या राशि में नीच कहलाते हैं। ये सदा मार्गी रहते हैं वक्री नहीं होते । विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा 6 वर्ष की होती है। सूर्य मेष आदि द्वादश राशियों में भ्रमण करते हैं। एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण को संक्रान्ति कहते हैं। इस प्रकार सूर्य के परिक्रमण से द्वादश राशियों के बारह सौरमास तथा एक सौरवर्ष होता है । सूर्य एक राशि में एक मास पर्यन्त रहते हैं  मकर तथा कर्क से अयन संक्रान्तिओं का निर्माण होता है। सूर्य मकर संक्रान्ति से उत्तरायण तथा कर्क संक्रान्ति से दक्षिणायन होते हैं। मेष तथा तुला की संक्रान्ति विषुव संक्रान्ति कहलाती है।

      सूर्य का वर्ण लाल रंग का होता है, ये कमल पर विराजमान रहते हैं।  चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं। भगवान् सूर्य के सिर पर सुन्दर मुकुट एवं गले में रत्नों की माला शोभायमान रहती है। इनकी कान्ति कमल के भीतरी भाग के जैसी होती है। साथ ही ये सात घोड़ों के रथ पर आरुढ़ रहते हैं। ऋषि, गन्धर्व, नाग, राक्षस एवं अप्सरा भी भगवान् सूर्य की विधिवत् उपासना करते हैं। सूर्य को आत्मकारक ग्रह माना जाता है। यह प्राणतत्व का अधिष्ठाता है। यह हमारे जीवन में क्रियाशक्ति प्राणशक्ति के रूप में परिलक्षित होता है। सूर्यनारायण की उपासना अनादिकाल से चली आ रही है।

Benefits

सूर्यग्रह के मन्त्रजप का माहात्म्य :- 

  • महाकवि मयूख को श्रापवशात् कुष्ठरोग होने के पश्चात् उन्होंने सूर्योपासना की एवं सूर्यशतकम् नामक ग्रन्थ लिखा था। भगवान् सूर्य की कृपा से वे पूर्णतः स्वस्थ्य हो गए ।
  • सूर्योपासना करने से सभी प्रकार के रोग तथा दोषों का निवारण हो जाता है, इसीलिए भगवान् सूर्य की कृपा एवं अनुकूलता प्राप्ति हेतु वैदिक विधि के अनुसार सूर्योपासना करनी चाहिए। 
  • आरोग्यं भास्करादिच्छेत् (मत्स्यपु०) अर्थात् सूर्य आराधना तथा मन्त्र जप से शरीर स्वस्थ रहता है तथा असाध्य रोगों का निरसन होता है ।
  • विशेषरूप से पित्त रोग, ऊष्णज्वर,   शरीर में जलन, अपस्मार (मिर्गी), हृदय रोग, नेत्र रोग, चर्म रोग, मूत्र से संबंधित रोग, दांतों की समस्या, नसों की समस्या, पागलपन, जीवनशक्ति का क्षीण होना इत्यादि  सूर्य के दुष्प्रभाव से होने वाले विभिन्न रोगों में सूर्य उपासना से अवश्य ही अकल्पनीय लाभ प्राप्त होता है । हरिवंश पुराण का श्रवण करने से सूर्य के द्वारा प्रदत्त दु:खों का शमन होता है  ।
  • जातक यदि शारीरिक तथा मानसिक रूप से निर्बल हो तो सूर्योपासना तथा अनुष्ठान से सबल तथा कर्तव्य के प्रति कटिबद्ध होता है ।
  • कुण्डली में सूर्य यदि नीच का है तो व्यवसाय में विभिन्न प्रकार की समस्याएं आती हैं जिसके निदान के लिए सूर्य मन्त्र का जप तथा सूर्य पूजा अनुष्ठान अत्यन्त उपादेय होता है । भगवान् सूर्य बुद्धि तथा ज्ञान के दाता हैं ।
  • असफल व्यक्तियों को सफलता की प्राप्ति के लिए सूर्य उपासना करनी अथवा करवानी चाहिए ।
  • सूर्य की अनुकूलता के लिए माणिक्य धारण करना भी शुभ माना जाता है । यदि मनुष्य की कुण्डली में सूर्य ग्रह प्रतिकूल स्थिति में हो तो उन्हें भगवान् सूर्य की उपासना, सूर्य शान्ति हेतु अनुष्ठान शास्त्रोक्त विधि से कराना चाहिए । सूर्य ग्रह की अनुकूलता के लिए गेहूं, गुड़, गाय, कमल पुष्प, गृह, लाल चन्दन, लाल वस्त्र, सोना, तांबा, केशर, आदि वस्तुएं वैदिक ब्राह्मण को दान करनी चाहिए ।

  • शास्त्रों में सूर्य ग्रह के मन्त्र की जपसंख्या 7000  हजार बताई गई है ।

  • मंत्र जप करने या कराने से पूर्व  किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।

Process

सूर्यग्रह के मन्त्रजप में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  •  सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
  • हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट

हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 

  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • पानी वाला नारियल,
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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