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शुक्र ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 4 Hours 45 minute
Price : 15000
About Puja

     ज्योतिषशास्त्र के अनुसार प्रत्येक प्राणी के जन्म के समय जो ग्रहदशा होती है तथा इस जन्म के कर्मों के साथ-साथ पूर्वजन्म के कर्म तथा संस्कार भी होते हैं । क्योंकि पूर्वजन्मार्जित कर्मों का परिपाक ही इस जन्म में फलीभूत होता है । ज्योतिषशास्त्र उन्हीं कर्मफलों को उसी प्रकार दिखाता है । जैसे अन्धकार में पड़ी हुई वस्तु को दीपक का प्रकाश प्रकाशित करता है । संसार का कोई भी प्राणी नवग्रहों के प्रभाव से रहित नहीं हो सकता । इन्हीं नवग्रहों में शुक्रग्रह का प्रमुख स्थान है । यह दानवों के पुरोहित तथा योग के आचार्य हैं । शुक्र भृगु गोत्र के ब्राह्मण हैं । ये भोजकट देश के अधिपति हैं तथा कमल पर विराजमान रहते हैं । इनका वर्ण श्वेत है । इनके चारों हाथों में क्रमशः - रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड हैं । ये श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं । इनके अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता चन्द्रमा हैं । महाभारत के आदिपर्व के अनुसार इन्होंने भगवान् शिव की कठोर तपस्या करके उनसे मृतसञ्जीवनीविद्या प्राप्त की थी । उसी के बल से ये युद्ध में मृत दानवों को जीवित कर देते थे । दानव शिष्यों पर इनकी कृपा सर्वदा बरसती रहती है । मत्स्यपुराण के अनुसार इन्होंने असुरों के कल्याण के लिए कठोर व्रत अनुष्ठान करके भगवान् शिव को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था कि तुम युद्ध में देवताओं को भी पराजित कर दोगे और तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा तथा भगवान् ने इन्हें धन का अध्यक्ष बना दिया । महाभारत के आदिपर्व के अनुसार शुक्राचार्य सम्पत्ति के ही नहीं अपितु औषधियों, मन्त्रों तथा रसों के भी स्वामी हैं । ब्रह्माजी की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोगों का कल्याण करने लगे । यह ग्रह के रूप में ब्रह्माजी की सभा में भी उपस्थित होते हैं तथा प्राणियों के योग-क्षेम का कार्य पूरा करते हैं ।  शुक्रग्रह वृष तथा तुला राशि के स्वामी हैं तथा विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा 20 वर्ष की होती है ।

Benefits

शुक्रग्रह के मन्त्रजप का माहात्म्य -

  • शुक्र को भौतिक सुख, ऐश्वर्य तथा मनोरञ्जन के साधनों का अधिपति माना गया है ।
  • जिस व्यक्ति की कुण्डली में शुक्र प्रतिकूल दशा में अर्थात् अशुभग्रह के साथ युति अथवा अशुभग्रह के द्वारा दृष्ट हो तो ऐसे जातक के जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं आती हैं लेकिन शुक्र उपासना से विविध प्रकार की समस्याओं से बचा जा सकता है ।
  • व्यक्ति के जीवन में दु:खों  तथा  विवाह में हो रहे विलम्ब को दूर करने के लिए अथवा वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण रहता हो उसकी शान्ति हेतु तथा पति-पत्नी में छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा अथवा वैमनस्य रहता हो तो शुक्र मंत्र के जप तथा अनुष्ठान से अकल्पनीय लाभ की प्राप्ति होती है अर्थात् समस्त प्रकार की बाधाओं का शमन हो जाता है । गृहस्थ जीवन शान्तिमय तथा सुखमय होता है ।
  • यदि व्यक्ति विवाह के पश्चात् सन्तान उत्पत्ति की समस्या और सन्तान सुख से वञ्चित हो तो ऐसी अवस्था में शुक्र पूजन से अवश्य ही लाभ प्राप्त होता है ।
  • महिलाओं को मासिक धर्म सम्बन्धी समस्याएं रहती हों , गुप्ताङ्ग सम्बन्धी रोगों का आधिक्य रहता हों तो शुक्रग्रह के मन्त्र का जप, अनुष्ठान, पूजन अवश्य करवाना चाहिए
  • पूर्वोक्त समस्याओं के समाधान हेतु शुक्र अनुष्ठान वैदिकविधि से करवाया जाए तो शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है तथा समस्त प्रकार की बाधाएं नष्ट हो जाती हैं ।
  • शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति सत्कर्म में प्रवृत्त होता है । जीवन में आने वाली समस्याओं से बचने के लिए शुक्रवार का व्रत एवं शुक्र अनुष्ठान अवश्य करवाना चाहिए ।
  • शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए गौ पूजन तथा हीरा धारण करना चाहिए ।
  • शास्त्रों में शुक्र ग्रह के मन्त्र की जपसंख्या 16000 बताई गई है ।
  • इस अनुष्ठान को वैदिक ब्राह्मणों के द्वारा शुभ मुहूर्त में शास्त्रीय विधिपूर्वक करवाना चाहिए ।
  •  इस अनुष्ठान में चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चन्दन, दही, चीनी, गौ, चांदी इत्यादि के दान का शास्त्रों में वर्णन है ।
  • मंत्र जप करने या कराने से पूर्व  किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process

शुक्रग्रह के मन्त्रजप में होने वाले प्रयोग  या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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