मंगल ग्रह

मंगल ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 1 Day
Price Range: 8100 to 31000

About Puja

पुराणों में मङ्गल ग्रह के पूजन की विशेष महिमा बताई गई है। मङ्गल देवता प्रसन्न होकर मनुष्य की प्रत्येक इच्छा को पूर्ण करते हैं।  मङ्गल भारद्वाज गोत्र के क्षत्रिय हैं। यह अवन्तिके स्वामी हैं। इनका आकार अग्नि के समान रक्तवर्ण हैं , इनके शरीर का  रोम  रक्त वर्ण के हैं। ये रक्तवस्त्र धारण करते हैं। हाथ में शक्ति, वर, अभय और गदा धारण करते हैं। इनके अङ्ग-अङ्ग से कान्ति की धारा छलक रही है। सिर पर स्वर्णमुकुट तथा मेष ( भेड़ ) के वाहन पर विराजमान रहते हैं। मेष के रथ पर आरूढ़ होकर सुमेरु की प्रदक्षिणा करते हुए अपने अधिदेवता स्कन्द और प्रत्यधिदेवता पृथ्वी के साथ सूर्य के अभिमुख जा रहे हैं। मङ्गल इच्छा, वासना, तथा काम से सम्बन्धित हैं।

इनकी उत्पत्ति के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण के अन्तर्गत वाराहकल्प में  एक प्रसङ्ग प्राप्त होता है - जब हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वीदेवी का हरण करके ले जा रहा था। तब भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार के द्वारा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्धार किया। उस समय भगवान् को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं एवं उनके मन में भगवान् को पतिरूप में वरण करने की इच्छा हुई। पृथ्वी देवी की कामना पूर्ण करने के लिए वाराह भगवान् ने मनोरम रूप धारण करके पृथ्वी देवी के साथ दिव्य एक वर्ष पर्यन्त एकान्त में निवास किया। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान् के संयोग से मङ्गल ग्रह की उत्पत्ति हुई  इस प्रकार मङ्गल ग्रह की उत्पत्ति के विषय में विविध प्रकार की कथाएं पुराणों में प्राप्त होती हैं। मङ्गल ग्रह मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी हैं। विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा सात वर्षों तक रहती है। 

यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में मङ्गल ग्रह प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में से किसी भी भाव में मङ्गल ग्रह का होना उस जातक को माङ्गलिक बना देता है । ऐसी दशा में मङ्गलशान्ति अवश्य करवानी चाहिए।

Benefits

मङ्गलग्रह के मन्त्रजप का माहात्म्य :-

  • मङ्गल ग्रह की उपासना अथवा शान्ति अनुष्ठान से माङ्गलिक दोष शान्त होता है, तथा विवाह में आ रही समस्त बाधाओं का शमन होता है ।
  • यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में मङ्गल ग्रह प्रतिकूल स्थिति में हो अथवा शत्रुभाव में बैठा हो । 
  • सूर्य के द्वारा निस्तेज अवस्था में हो तो मङ्गल अनुष्ठान करवाने से अवश्य ही लाभ की प्राप्ति होती है ।
  • ऋण ( कर्ज ) से मुक्ति पाने के लिए ऋणमोचनमङ्गलस्तोत्र का पाठ विधिपूर्वक करना अथवा करवाना चाहिए ।
  • भूमि संबन्धित विवाद में मङ्गल पूजा करवाने से अवश्य ही विजय की प्राप्ति होती है ।
  • मङ्गल ग्रह की पूजा - अर्चना करने से त्वचा संबन्धी रोगों में अवश्य ही लाभ प्राप्त होता है ।
  • मङ्गल ग्रह के अनुकूल हो जाने पर व्यक्ति में साहस एवं आत्मबल की अधिकता तथा क्रोध में कमी आती है  ।
  • मङ्गल ग्रह की अनुकूलता से नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है ।
  • मङ्गल ग्रह शान्ति अनुष्ठान के द्वारा गृह क्लेश, दुःख, एवं दारिद्र्य का नाश होता है । घर में मङ्गल उत्सव तथा सुख समृद्धि में वृद्धि होती है ।
  • मङ्गल उपासना से व्यवसाय उत्तरोत्तर अभिवृद्धि को प्राप्त होता है ।
  • इसकी शान्ति के लिए मङ्गलवार का व्रत भी करना चाहिए ।
  • मङ्गल शान्ति के लिए शिव उपासना,  हनुमान चालीसा का पाठ करना अथवा करवाना चाहिए ।
  • मङ्गल ग्रह की अनुकूलता के लिए मङ्गल ग्रह के मंत्र का 10000 हजार जप ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा शास्त्रोक्त विधि से शुभ मुहूर्त में संपन्न करवाना चाहिए ।
  • मंत्र जप करने या कराने से पूर्व  किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process

मङ्गलग्रह के मन्त्रजप में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती
  • पंचगव्य गोघृत

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  • कमलगट्टा, पंचमेवा 
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • पानी वाला नारियल,
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

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