सौभाग्य प्रदायक

सौभाग्य प्रदायक चतुर्थी कर्म

संस्कार | Duration : 3 Hours
Price : 5100

About Puja

विवाह के पश्चात् तीन रात पर्यन्त वर वधू को विशेष नियमों का पालन करते हुए चौथी रात्रि में होम करण का विधान है, जो विवाह संस्कार का महत्वपूर्ण कर्म है, तथा अवश्य पालनीय है।चतुर्थी कर्म प्रयोजन पर विचार करें तो ऋषि मार्कण्डेय जी ने कहा है- 

         चतुरशीति दोषाणि कन्या देहे तु यानि वै।

         प्रायश्चितकरं तेषां चतुर्थी कर्म ह्याचरेत्।।

अर्थात् कन्या के शरीर में चौरासी दोष होते हैं, उन दोषों से मुक्ति के लिए चतुर्थी कर्म का आचरण किया जाता है,  जिससे सोम, गन्धर्व तथा अग्नि द्वारा भुक्त कन्या के दोषों का मार्जन एवं परिहार हो जाता है। कहा गया है- विवाह से पूर्व कन्या, कन्यादान के पश्चात् वधू, पाणिग्रहण होने पर पत्नी तथा चतुर्थी कर्म सम्पन्न होने पर भार्या होती है।

         अप्रदानात् भवेत्कन्या प्रदानानन्तरं वधू:|

         पाणिग्रहे तु पत्नी स्याद् भार्या चातुर्थिकर्मणि।।  

चतुर्थी कर्म  के अनन्तर पति के देह,गोत्र और सूतक आदि में स्त्री युक्त हो जाती है,तथा पति के गोत्र वाली हो जाती है। इस चतुर्थी कर्म को चौथी रात्रि में किया जाना चाहिए, लेकिन समयाभाव के कारण इसे विवाह के पश्चात् अगली रात्रि में किया जा सकता है।

Benefits

सौभाग्य प्रदायक चतुर्थी कर्म का माहात्म्य:-

  • हारित ऋषि का कथन है, कि जिस स्त्री का विवाह के  पश्चात् वैदिक विधि से चतुर्थी कर्म होता है, वह सदा शारीरिक और मानसिक रूप से सुखी रहती है।
  • चतुर्थी कर्म को धन, धान्य की वृद्धि तथा पुत्र पौत्र की समृद्धि वाला माना जाता है।
  • शास्त्र विधि एवं कर्मनिष्ठ विद्वान् के द्वारा कराये गये चतुर्थी कर्म से उस  स्त्री के जीवन में वन्ध्यात्व (बाझपना) और वैधव्य (विधवा) दोष कभी नहीं आता है।
  • चतुर्थी कर्म के बाद ही उसकी संज्ञा भार्या होती है।
  • पति के दोषों की निवृत्ति होती है, और उत्तरोत्तर प्रीति (प्रेम)  प्रगाढ़ होता है।
Process

सौभाग्य प्रदायक चतुर्थी कर्म में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. वरवधू स्नानादि से निवृत्त हों
  2.  पूर्वाभिमुख - पवित्रीकरण
  3.  स्वस्तिवाचन 
  4.  गणपति स्मरण
  5.  प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  6.  वेदीनिर्माण
  7.  पञ्चभूसंस्कार (शिखिनामक अग्नि का स्थापन)
  8.  कुशकण्डिका 
  9.  ब्रह्मावरण  
  10.  उत्तर में जलपात्र स्थापन 
  11.  आधारा आज्य होम
  12.  प्रधान होम – अवशिष्ट घृत जलपात्र में छोडें।
  13.  चरू (खीर) से हवन
  14.  स्विष्टकृत हवन
  15.  नवाहुति 
  16.  संस्रवप्राशन
  17.  मार्जन
  18.  पूर्णपात्रदान
  19.  प्रणीताविमोक 
  20.  बर्हिहोम
  21.  अभिषेक
  22.   स्थालीपाक (खीर का प्राशन) 
  23.   हृदयस्पर्श 
  24.   कङ्कणमोक्षण
  25.   ग्रन्थिविमोक
  26.   त्र्यायुष्यकर
  27.   दक्षिणदान 
  28.   भूयसी दक्षिणा 
  29.   ब्राह्मणाभोजन 
  30.   विष्णुस्मरण    
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर)
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • पानी वाला नारियल
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

No FAQs Available

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account