About Puja
इस जगत् में समस्त व्यक्ति, वस्तु एवं स्थान की कुछ ना कुछ संज्ञा होती है। संज्ञात्मक यह समस्त सृष्टि है ,नाम के बिना इस जगत् में कुछ भी नहीं है ,नाम के बिना वस्तु की पहचान एवं व्यवहार नहीं हो सकता | यह समस्त जगत् नामरूपात्मक दो विभागों में विभक्त है । संसार की प्रत्येक वस्तु का अपनी जाति आदि के अनुरूप अपना एक विशेष रूप है, जो अन्य विजातीय पदार्थों या जीवों से उसे पृथक् करता है, उस रूपवान् वस्तु या व्यक्ति की कोई ना कोई संज्ञा (नाम) है। नाम के बिना लोक व्यवहार संपादन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः यह जगत् नाम एवं रूपात्मक है।
वस्तु का रूप तो अदृश्य (प्रारब्ध)के अधीन होता है ,किंतु नाम मनुष्य के द्वारा विधीयमान होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नामकरण का भी एक वैज्ञानिक आधार है| नक्षत्रों के आधार पर नामकरण किया जाता है इसके अतिरिक्त माता-पिता के द्वारा यदृच्छा से भी तत् तत् नामों की कल्पना की जाती है । नाम और नामी का रूप ,यह दोनों यद्यपि पृथक् हैं तथापि इन दोनों में तादात्म्य (अभेद) सम्बन्ध स्वीकार किया गया है । इसी संबंध से व्यक्ति अपने नाम को सुनकर किसी भी क्रिया में प्रवृत्त होता है।
आचार्य बृहस्पति कहते हैं -"नाम अखिल व्यवहार एवं मंगलमय कार्यों का हेतु है" नाम से ही मनुष्य यश और कीर्ति प्राप्त करता है, यदि किसी व्यक्ति की संज्ञा भगवान् के नाम, रूप ,गुण लीला और धाम से युक्त हो तो उसका माहात्म्य ही अनन्त है। हमारी सनातन परम्परा में नामकरण एक विशिष्ट संस्कार है, जो विधि विधान से करने की शास्त्रीय परम्परा है । स्मृति संग्रह नामक ग्रन्थ में लिखा है कि व्यवहार की सिद्धि ,आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए नामकरण संस्कार करना चाहिए।
यद्यपि यह संस्कार ग्यारहवें दिन होता है ,लेकिन शिशु और माता यदि शरीर से पुष्ट एवं स्वस्थ नहीं हों तो यह संस्कार अठारहवें,उन्नीसवें, सौवें,अयन के बाद या अपने देशाचार एवं कुलाचार की परम्परा के अनुसार शुभ मुहूर्त में नामकरण संस्कार करना चाहिए। नाम का स्वरूप कैसा हो ? नाम कैसा हो इस विषय पर 'पारस्कर गृह्यसूत्र' में उल्लेख है - कि बालक का नाम दो या चार अक्षर से युक्त होना चाहिए। प्रथम अक्षर घोषवर्ण( ग,घ,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म) मध्य में अन्तस्थ वर्ण(य,र,ल,व)और नाम का अन्तिम वर्ण दीर्घ हो। तथा कन्या का नाम तीन या पांच अक्षरों वाला हो तथा अन्तिम वर्ण दीर्घ हो।
नाम भी दो प्रकार का होता है, जन्मराशि नाम और पुकार नाम। विवाह ,समस्त मांगलिक कार्य, यात्रा मुहूर्त आदि में जन्मराशि नाम तथा व्यवहारिक कार्यों में नाम राशि की प्रधानता होती है।
Benefits
नामकरण संस्कार का माहात्म्य:-
- सनातन मतावलम्बियों को शास्त्रोक्त विधि से नामकरण संस्कार करना चाहिए।
- वैदिक रीति से नामकरण द्वारा प्रभूत यश, कीर्ति विस्तार तथा भाग्योदय होता है।
- नाम यदि भगवन्नाम से युक्त हो तो नामोच्चारण से अनायास भगवन्नाम उच्चारण का फल प्राप्त होता रहेगा।
- नाम के आधार पर ही गुणों का विस्तार होता है। यद्यपि इसका अपवाद भी होता है।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रखा हुआ नाम उसके जन्म समय के आधार पर रखा जाता है। जिसके अनुसार जन्म कुण्डली की रचना संभव होती है। जन्मकुण्डली के आधार पर व्यक्ति की ग्रह दशा आदि का ज्ञान होता है , उसी के अनुसार अनिष्ट निवारण का उपाय संभव हो पाता है। अतः हमारी सनातन आर्ष परम्परा में नामकरण संस्कार का विशेष माहात्म्य है।
Process
नामकरण संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि-
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स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
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प्रतिज्ञा सङ्कल्प
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गणपति गौरी पूजन
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कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
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पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारणअभिषेक
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षोडशमातृका पूजन
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सप्तघृतमातृका पूजन
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आयुष्यमन्त्रपाठ
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सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
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नवग्रह मण्डल पूजन
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अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
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पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
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रक्षाविधान आदि
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ब्राह्मणत्रय का भोजन सङ्कल्प
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पंचगव्य हवन के लिए अग्नि (विधिनामक अग्नि) स्थापन एवं हवन
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पंचभू संस्कार,अग्नि प्रतिष्ठा
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प्रणीतापात्र स्थापन
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पंचगव्य निर्माण
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हवन
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अनन्वारब्ध व्याहृतिहोम
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पंचगव्य होम
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प्रायश्चित्त होम (पंचवारुण होम)
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स्विष्टकृत आहुती
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संस्रवप्राशन
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मर्जनविधि
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पवित्रप्रतिपत्ति
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पूर्णपात्रदान
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प्रणीता विमोक
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बर्हिहोम
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पंचगव्यपान
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नामकरण क्रिया
नोट - नामकरण संस्कार में देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार न्यूनाधिक्य भी किया जा सकता है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- पीपल का पत्ता 5
- शङ्ख, कुशा
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारियल
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि