जातकर्म

जातकर्म संस्कार

संस्कार | Duration : 3 Hrs 30 min
Price Range: 4500 to 6100

About Puja

जन्म के बाद जो प्रथम संस्कार होता है ,उसे जातकर्म संस्कार कहते हैं। गर्भस्थ शिशु का मातृरस से पोषण होता है, उस आहार का दोष जो बालक में आता है ,वह इस जातकर्म संस्कार से दूर हो जाता है। यद्यपि जातकर्म संस्कार नालछेदन से पूर्व ही होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में अधिकांश प्रसव डॉक्टरों की देखरेख में ही होता है और वहां प्रसव के बाद ही नालच्छेदन कर दिया जाता है। नालच्छेदन के बाद सूतक लग जाता है, इसलिए जात कर्म संस्कार जब सूतक समाप्त हो जाए ,माता और शिशु शारीरिक एवं मानसिक रूप से पुष्ट एवं स्वस्थ हो जाएं तो उस समय जातकर्म संस्कार करनी चाहिए।

Benefits

जातकर्म संस्कार का माहात्म्य:-

  1. शिशु के गर्भस्थ दोषों का शमन होता है|
  2. मन्त्रोच्चारण पूर्वक शिशु को स्पर्श करने से शरीर वज्र के सदृश सुदृढ़ होता है ,तथा रोगों से शिशु की रक्षा होती है।
  3. इस संस्कार में परमात्मा से प्रार्थना किया जाता है, जिससे शिशु,बलवान् वीर्यवान् तथा स्वर्ण सदृश तेज को प्राप्त करें।
  4. मंत्रों के द्वारा अभिमन्त्रण से शिशु में विशेष ऊर्जा एवं स्फूर्ति प्राप्त होती है तथा यह संस्कार शिशु के लिए उपकारक होता है।
  5. मेधाजनन (बुद्धि  विस्तारक) कर्म होता है, जिससे शिशु में तीक्ष्ण बुद्धि का उद्भव तथा विकाश होता है।
  6. इस संस्कार में आयुष्यकरण का पाठ किया जाता है जिससे शिशु दीर्घायु  होता है
Process

जातकर्म संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल , वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. मेधाजनन कर्म
  15. आयुष्करण कर्म 
  16. आयुष्य मन्त्रों द्वारा अभिमर्षण
  17. अनुप्राणन
  18. जन्मभूमि अभियन्त्रण
  19. शिशुस्पर्शन
  20. मातृअभिमन्त्रण
  21. हृदयस्पर्शन

जाति करण संस्कार नामकरण संस्कार के साथ भी किया जा सकता है।

Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • पानी वाला नारियल
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

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