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हरिद्रा लेपन (हल्दी सरेमनी)

संस्कार | Duration : 4 Hours 45 minute
Price : 1000
About Puja

         सनातन हिन्दू धर्म में विवाह संस्कार के समय विभिन्न शास्त्रीय विधियां, वैदिक कर्मकाण्ड के द्वारा सम्पन्न करायी जाती है। समस्त वैवाहिक विधि के उपाङ्ग कर्म वेदानुकूल होता है तथा उसी वैदिक विधि में समाजिक रीति रिवाज एवं परम्पराओं का संरक्षण किया जाता है। आहार विज्ञान हो अथवा धर्म विज्ञान दोनों में हरिद्रा (हल्दी) का विशेष महत्व है। इसी के कारण विवाह से पूर्व वर और कन्या के यहां हरिद्रा लेपन (हल्दी सरेमनी) का विधिपूर्वक कृत्य वैदिक विद्वानों के द्वारा सम्पन्न कराया जाता है।

   हरिद्रालेपन क्रिया में सर्वप्रथम वेदोच्चारपूर्वक (कन्या तथा वर  अपने वास स्थान पर) देवों का आवाहन करते है तथा हल्दी और तेल मिलाकर सर्वप्रथम भगवान् गणपति तथा अन्य आवाहित देवताओं को चढाते हैं, जो शास्त्रानुकूल है। इस क्रिया पद्धति से देवताओं के द्वारा सम्पूर्ण समारोह निर्विघ्नता पूर्वक सुसम्पन्न हो, इसकी मङ्गल कामनाओं की जाती है।

Benefits

हरिद्रा लेपन (हल्दी सरेमनी) का महत्व:-

  • हरिद्रा लेपन नामक विवाह के उपसंस्कार से वर और कन्या के जीवन में आर्थिक सङ्कट
  • नहीं उत्पन्न होता है।
  •  वैवाहिक उत्सव में हरिद्रा लेपन से धन की देवी माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा धन की वृद्धि करती हैं।
  • हरिद्रालेपन (हल्दी सरेमनी) में पूरे शरीर में हल्दी लगाई जाती है, विशेषतः नाभि में लगाने से चिन्ता, तनाव आदि से वर एवं वधू मुक्त होते हैं।
  • सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार हल्दी, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है। इसी उद्देश्य से वर वधू को हल्दी लगाई जाती है, जिससे शुभ फल की प्राप्ति होती है, तथा नकारात्मकता का निवारण  (प्रतिकार) होता है।
  • ज्योतिषशास्त्र में हल्दी और बृहस्पति का अटूट सम्बन्ध है। इसके सेवन और लेपन से ज्ञानात्मक ऊर्जा का विकाश होता है।
  • अनेक समस्याओं का समाधान हरिद्रा लेपन से होता है।
  • हरिद्रलेपन (हल्दी सरेमनी) को विधिविधान से वेदज्ञ ब्राह्मणों के द्वारा सम्पन्न कराना चाहिए। यह विवाह संस्कार का एक प्रमुख उपाङ्गकर्म है, जो सदा सर्वदा उत्कर्षता की प्राप्ति कराता है। 
  •  विवाह आदि माङ्गलिक संस्कारों में हल्दी सरेमनी का यह भी प्रयोजन है कि वह नजर दोष से भी रक्षा करता है।
Process

हरिद्रा लेपन (हल्दी सरेमनी)  में होने वाले प्रयोग  या विधि :-

  1. मण्डपस्थापन
  2. हरिद्रालेपन तथा कंकण बन्धन  (षड् ‌विनायक पूजन) 
  3. दक्षिणा सङ्कल्प एवं भोजन सङ्कल्प 
  4. स्वस्तिवाचन गणेशस्मरण एवं  पूजन 
  5. प्रायश्चितसङ्कल्प (रजोदर्शन दोष परिहार सङ्कल्प )कन्या का
  6. प्रायश्चित सङ्कल्प (अतीत संस्कारजन्य दोष परिहार सङ्कल्प ) वर का
  7. पञ्चाङ्ग पूजन प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  8. गणेशाम्बिका पूजन
  9. कलशस्थापन, पुण्याहवाचन, नवग्रह पूजन, मातृकापूजन  वसोर्धारा पूजन, आयुष्य मन्त्र जप, नान्दीश्राद्ध अभिषेक आदि
  10.  लोकाचार (मातृभाण्डस्थापन एवं मातृका पूजन) कोहबर में 
  11. द्वारमातृका पूजन
  12. षोडश मातृका स्थापन एवं पूजन, सप्तघृतमातृका पूजन  घृतधाराकरण

 टिप्पणी :- विवाह से पूर्व कन्या  और वर के यहां मण्डप में ये  पूजन होते हैं।

Puja Samagri

हरिद्रा लेपन (हल्दी सरेमनी) 

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