चूड़ाकरण

चूड़ाकरण संस्कार (मुण्डन)

संस्कार | Duration : 4 Hours
Price Range: 4100 to 5500

About Puja

चूड़ा शब्द 'शिखा' का पर्यायवाची है, जिस संस्कार में बालक को शिखा (चोटी) धारण करायी जाती है, उसे चूडाकरण संस्कार कहा गया है, इसे 'मुण्डन संस्कार' भी कहा जाता है। इस संस्कार में शिशु का केश मुण्डन कराया जाता है। माता के गर्भ में आये हुए बाल अशुद्ध होते हैं, इस संस्कार से सिर के रोमछिद्र खुल जाते हैं तथा मलीनता दूर हो जाती है,साथ ही नवीन तथा घने बाल निकलते हैं,घने तथा मजबूत बालों से मस्तिष्क की सुरक्षा होती है। इस संस्कार से बल, आयु एवं तेज का विकाश होता है। मनुस्मृति के अनुसार जन्म से प्रथम या तृतीय वर्ष में यह संस्कार किया जाता है। 'महर्षि आश्वलायन एवं बृहस्पति'आदि के अनुसार यह संस्कार 'तृतीय, पञ्चम्, सप्तम्, दशम् एवं एकादश' वर्ष में भी किया जा सकता है। 'महर्षि याज्ञवल्क्य' के अनुसार यह संस्कार कुल परम्परा के अनुसार भी किया जा सकता है। 'महर्षि कात्यायन' के अनुसार द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य) को यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए, साथ ही शिखा बन्धन भी करनी चाहिए। शिखा तथा यज्ञोपवीत के अभाव मे श्रौत (वेद सम्बन्धित) एवं स्मार्त (स्मृति सम्बन्धित) कर्म निष्फल होते हैं। शिखा धारण करने से तेज, बल एवं आयु की वृद्धि होती है। इस संस्कार से सद्बुद्धि, सद्‌वृत्ति, पवित्रता एवं सद्विचारों की वृद्धि होती है।

Benefits

चूडाकरण संस्कार का माहात्म्य:-

  1. सिर में जिस स्थान पर शिखा रखी जाती है वहां 'सहस्रार' चक्र का केन्द्र है और उसके नीचे बुद्धि चक्र होता है तथा इसी के सन्निकट ब्रह्मरन्ध्र भी है, सहस्रार चक्र में अमृत स्वरूप ब्रह्म का अधिवास है। ध्यान, मनन, चिन्तन आदि से उत्पन्न अमृत तत्व शिखा बन्धन के कारण बाहर नहीं निकलता अत: उस संस्कार का अत्यन्त महत्व होता है। 
  2. लम्बी एवं मोटी शिखा मर्मस्थल का रक्षक होती है।  
  3. शिखा धारण करने से शुचिता एवं सद्विचारों की वृद्धि होती है। 
  4. जन्म समय के बाल अशुद्ध होते हैं जो तेज वृद्धि को रोकते हैं अतः सिर का मुण्डन करने से शिशु परम पवित्र होता है।  
  5. मन्त्रोच्चार पूर्वक विधिविधान से चूडाकरण करने पर शिशु की आयु, बल एवं बुद्धि की वृद्धि होती है।  
  6. आचार्य चरक के अनुसार केश मुण्डन संस्कार से शरीर पुष्ट होता है एवं शक्ति का विकाश होता है।  
  7. यह संस्कार पूर्वजन्मकृत पापों का शमन( निवारण) भी करता है। 
Process

चूड़ाकरण (मुण्डन) संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. केशाधिवासन
  15. वेदीनिर्माण एवं पंचभूसंस्कार
  16. अग्निस्थापन (सभ्यनामकअग्नि)
  17. कुशकण्डिका
  18. पात्रासादन
  19. अधार-आज्यभाग संज्ञक हवन  
  20. भूरादि नौ आहुती
  21. स्विष्टकृत आहुती 
  22. संस्रवप्राशन
  23. मार्जन 
  24. पवित्रपतिपत्ति 
  25. पूर्णपात्रदान
  26. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 

(क) बालक या बालिका के दाहिने भाग का केश संस्कार:

केशों का उन्दन (भिगोना)  कुशाबन्धन, उस्तराग्रहण, उस्तरे  द्वारा केशस्पर्श ,जूटिका छेदन,  केश स्थापन

(ख) बालक या बालिका का पिछले भाग का केश संस्कार  पूर्ववत्

(ग) बालक या बालिका का बाये भाग का केश संस्कार -  पूर्ववत्

छुरभ्रमण,केशस्थापन,भस्म धारण,गोदान,ब्राह्मण भोजन सङ्कल्प ,भगवत् स्मरण पूर्वक विसर्जन

Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती,

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित 
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • पानी वाला नारियल
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

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