सर्वत्र विजय प्राप्ति तथा भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति हेतु करें जया एकादशी

सर्वत्र विजय प्राप्ति तथा भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति हेतु करें जया एकादशी

।। जया एकादशी व्रत ।।

श्रीभविष्योत्तर पुराण के अनुसार माघ मास के शुक्‍ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत समस्त कामनाओं की आपूर्ति करने वाला है तथा विशेष रूप से ब्रह्म हत्या,पिशाच आदि योनियों से मुक्ति मुक्ति प्रदान करने वाला है मिलती है । जो उपासक एकादशी व्रत का नियमपूर्वक पालन करते हैं उन्हें व्रत के प्रभाव से सद्गति प्राप्त होती है। 

जया एकादशी व्रत और पारण का शुभ मुहूर्त :

  • जया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 20 फरवरी को है ।
  • व्रत का पारण द्वादशी तिथि में मध्याह्न वेला में 21 फरवरी को करें ।

एकादशी व्रत में क्या करना चाहिए ? 

  • प्रातः स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं घर के मंदिर में या किसी देवालय में जाकर दीप प्रज्ज्वलित करें ।
  • भगवान् विष्णु का गंगाजल अथवा पंचामृत से अभिषेक करें । 
  • भगवान् विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें । 
  • घर में सात्विक वस्तुओं का प्रयोग करें।
  • भगवान् को भोग लगाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान् को सात्विक अर्थात् व्रत सम्बन्धी सामग्री का ही भोग लगायें ।
  • भगवान् विष्णु के भोग में तुलसीदल अवश्य सम्मिलित करें ।
  • इस पावन दिन भगवान् विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
  • इस दिन भगवन् नाम का अधिक से अधिक सुमिरन,संकीर्तन करें ।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का अधिक से अधिक जप करें ।
  • रात्रिकालीन वेला में भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मीजी की आरती करें ।

श्रीभविष्योत्तरपुराण में वर्णित जया एकादशी व्रत की कथा :

धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे भगवन् ! आपने माघ माह की कृष्ण पक्ष की षट्तिला एकादशी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। अब कृपा कर माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा का वर्णन कीजिये । इस एकादशी का नाम और इसके व्रत की क्या विधि है तथा इस व्रत के इष्ट देवता कौन हैं ?

श्रीकृष्ण भगवान् बोले- हे राजन् ! माघ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम जया है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य ब्रह्महत्या सदृश पाप से मुक्त हो जाते हैं और अन्त में उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है । इस व्रत से मनुष्य कुयोनि अर्थात् भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनियों से मुक्त हो जाता है । अतः इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिये । 

हे राजन् ! मैं एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ । एक समय इन्द्र स्वर्गलोक में अपनी इच्छानुसार अप्सराओं के साथ रमण कर रहे थे । गन्धर्व गान कर रहे थे । वहाँ गन्धर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदन्त तथा चित्रसेना नामकी अपनी पुत्री के साथ चित्रसेन भी वहीं पर था । चित्रसेन की स्त्री का नाम  मालिनी था ये सभी वहां उपस्थित थे। उस जगह मालिनी का पुत्र पुष्पवान् और उसका पुत्र माल्यवान् भी था । उस समय पुष्पवती नामकी एक गन्धर्व स्त्री माल्यवान् को देखकर मोहित हो गयी और कामबाण से चलायमान होने लगी । उसने रूप, सौन्दर्य, हाव-भाव आदि द्वारा माल्यवान् को वश में कर लिया । पुष्पवती के सौंदर्य को देखकर माल्यवान् भी मोहित हो गया । अतः ये दोनों काम के वशीभूत हो गये । देवराज इन्द्र ने इन्हें इन्द्रलोक में बुलाने के लिए आवाहित किया और देवराज का आदेश होने पर इन्हें नृत्य, गायन और वादन के लिये जाना पड़ा । इन्द्रलोक में जाकर अन्य अप्सराओं के साथ इन्होंने नृत्य, गायन और वादन प्रारम्भ किया । परन्तु कामदेव वशीभूत होने के कारण इनका हृदय विचलित हो गया और ये अशुद्ध गायन करने लगे । इनकी भाव श्रृंगियों को देखकर इन्द्र ने इनके प्रेमभाव को समझ लिया और स्वयं का  अपमान समझ इन्हें श्राप दे दिया कि तुम स्त्री, पुरुष के रूप में मृत्युलोक में जाकर पिशाच का स्वरूप धारण कर, अपने कर्मों का फल प्राप्त करोगे ।

इन्द्र का श्राप सुनकर ये अत्यन्त दुःखी हो गए और हिमाचल पर्वत पर पिशाच बनकर कष्टपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे । श्राप के कारण इन्हें रात, दिन एक क्षण भी निद्रा नहीं आती थी । इस स्थान पर अत्यन्त सर्दी थी । एक दिन पिशाच ने अपनी प्रिया से कहा- न मालूम हमने पूर्वजन्म में ऐसे कौन से पाप किये थे जिस कारण हमें इतनी दुःखदायी यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है। देवयोग से एक दिन माघ माह के शुक्लपक्ष की जया नाम की एकादशी आयी । इस दिन दोनों ने भोजन नहीं किया और न कोई अकरणीयकृत्य ही किया । इस दिन केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और महान दुःख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये । उस  रात्रि अत्यन्त सर्दी थी । सर्दी की वह रात्रि इन दोनों ने परस्पर एक दूसरे के सहयोग से व्यतीत की । अधिक सर्दी होने के कारण उनको रात्रि में निद्रा भी नहीं आई । दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही भगवान् के प्रभाव से इनको पिशाच देह से मुक्ति प्राप्त हो गयी और अत्यन्त सुन्दर अप्सरा और गन्धर्व की देह धारण करके तथा सुन्दर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर इन्होंने नागलोक को प्रस्थान किया ।

आकाश में देवगण तथा गन्धर्व इनकी स्तुति तथा पुष्प वर्षा करने लगे । नागलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इन्द्र को प्रणाम किया । इन्द्र को भी इन्हें अपने प्रथम रूप में देखकर महान् आश्चर्य हुआ और वे इनसे पूछने लगे कि तुमने अपनी पिशाच देह से किस प्रकार छुटकारा पाया है सो सब बताओ ? इस पर माल्यवान् बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान् विष्णु के प्रभाव तथा जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हम लोग पिशाच की देह को छोड़कर पवित्र हो गये हैं और हम अन्य लोगों के भी वन्दनीय हो गये हैं क्योंकि शिव भक्त हम लोगों के वन्दना करने योग्य हैं। अतः आपको धन्य है! धन्य है! ऐसा जानकर इन्द्र ने कहा अब तुम पुष्पवती के साथ जाकर सुखपूर्वक विहार करो ।

हे युधिष्ठिर ! इस जया एकादशी के व्रत करने से समस्त कुयोनि छूट जाती हैं। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, तप आदि किये हैं। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही एक सहस्त्र वर्ष तक स्वर्ग में निवास करते हैं।

कथासार

संगीत एक साधना है, एक विद्या है। इसमें पवित्रता आवश्यक है। फिर जिस सभा में अपने से बड़े गुरुजन आदि उपस्थित हों, वहाँ प्राणी को संयम और मर्यादा बनाए रखना चाहिए ताकि गुरुजनों का सम्मान बना रहे । गुरुजनों का अपमान करने वाला घोर नरक प्राप्त करता है। 

श्रीभविष्योत्तर पुराण में वर्णित जया एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • जो मनुष्य भक्तिपूर्वक जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही एक सहस्त्र वर्ष तक स्वर्ग में निवास करते हैं।
  • ब्रह्म हत्या आदि महापातकों से मुक्ति मिलती है।
  • समस्त भौतिक सुखों को भोगकर स्वर्ग लोक की प्राप्ति।
  • पिशाच योनि से मुक्ति।
  • समस्त प्रकार के क्लेशों का परिशमन । 

इस प्रकार श्रीभविष्योत्तरपुराण में प्राप्त जया एकादशी की महत्ता का वर्णन हमें प्राप्त होता है । अवश्य ही यह एकादशी मनुष्य कुत्सित योनियों से मुक्ति प्रदान करने वाली है अतः एकादशी का सम्पूर्ण व्रत मनुष्यों को अवश्य करना चाहिए  ।  

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