पुत्ररत्न की प्राप्ति, पितृऋण एवं पितृदोष से मुक्ति हेतु करें पुत्रदा एकादशी व्रत

पुत्ररत्न की प्राप्ति, पितृऋण एवं पितृदोष से मुक्ति हेतु करें पुत्रदा एकादशी व्रत

।। पुत्रदा एकादशी ।।

श्रावण मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है । इस एकादशी का व्रत संतान की इच्छा रखने वाले दम्पति के लिए श्रेष्ठतम वरदान की प्राप्ति कराता है । श्रीभविष्योत्तरपुराण के अनुसार पुत्रदा एकादशी को किया गया व्रत-जप पूजन-अर्चन  समस्त पापों का हरण करने वाला तथा पितृऋण से मुक्ति प्रदान कराने वाला है ।

संसार के पालनहार भगवान् विष्णु एकादशी तिथि के अधिदेवता हैं, इसलिए जप, तप, दान-पुण्य और सकाम अनुष्ठान-पूजा के लिए यह सर्वोत्कृष्ट तिथि होती है । समस्त चराचर प्राणियों के लिए भगवान् विष्णु की उपासना हेतु इससे बढ़कर दूसरी अन्य कोई तिथि नहीं है ।

एकादशी का महात्म्य :

एवमेषा नृपश्रेष्ठ पुत्रदानाम विश्रुता ।
कर्तव्या सुखमिच्छन्द्भिरिह लोके परत्र च ।।
श्रुत्वा माहात्म्य- मेतस्याः सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
इह पुत्रसुखं प्राप्य परत्र स्वर्गात लभेत् ।। (भविष्योत्तर पुराण )

इस प्रकार हे राजन ! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है । अतः दोनों लोकों के सुखाभिलाषी को यह एकादशी व्रत करना चाहिए । इस एकादशी का माहात्म्य सुनने से मनुष्य पापों से छुट जाता है, तथा इस जन्म में पुत्रसुख को प्राप्तकर अंत में स्वर्गलोक को प्राप्त करता है ।  

पुत्रदा एकादशी (2024) व्रत और पारण का शुभ मुहूर्त :

हृषीकेश पञ्चांग के अनुसार-

  • 15 अगस्त 2024 को एकादशी व्रत , स्मार्त ( गृहस्थ) ।
  • 16 अगस्त को स्मार्त ( गृहस्थों ) का व्रत पारण तथा वैष्णवों का एकादशी व्रत  ।

व्रत के दिन क्या करें ?

  • प्रातः शीघ्र जागकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं एवं घर के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करें ।
  • भगवान् विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान् विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  • भगवान् की आरती करें ।
  • भगवान् को भोग लगाएं । इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान् को सात्त्विक अन्नादि का भोग लगायें ।
  • भगवान् विष्णु के भोग में तुलसीदल अवश्य सम्मिलित करें क्योंकि बिना तुलसीदल के भगवान् विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं ।
  • इस पावन दिवस पर भगवान् विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें ।
  • इस दिन भगवन् नाम का सुमिरण करें ।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का यथाशक्ति जप करें ।
  • बिजनेस (व्यापार ) में अपार सफलता के साथ धन लाभ चाहते हैं, तो पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान् विष्णु को पीले रंग के पुष्प चढ़ाएं तथा साथ ही पीले रंग के मिष्ठान का भोग लगाएं ।
  • एकादशी के दिन तुलसी पूजन का विशेष महत्व है । इसलिए इस दिन तुलसी के पौधे के समक्ष ( सामने ) घी का दीपक जलाएं एवं साथ ही तुलसी पौधे की परिक्रमा अवश्य करें । ऐसा करने से सुख-समृद्धि, धन-संपदा में वृद्धि होगी तथा माता तुलसी की कृपा प्राप्त होगी ।
  • पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान् विष्णु की पूजा करने के साथ-साथ पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करें एवं दीप प्रज्ज्वलित करें । इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी ।
  • सुख-समृद्धि के लिए भगवान् विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करें तथा पीला चंदन लगाएं ।
  • एकादशी के दिन मंदिर जाकर गेहूं और चावल का दान करना चाहिए । इससे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है ।

श्री भविष्योत्तरपुराण में वर्णित पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा :

धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि - हे भगवान् ! अब आप मुझे श्रावण माह के शुक्लपक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये । इस एकादशी का नाम क्या है तथा इसकी व्रत विधि क्या है ? सब आप मुझसे सविस्तार कहिये ।

श्री मधुसूदन बोले कि - हे राजन् ! अब आप शांतिपूर्वक श्रावण माह के शुक्लपक्ष की एकादशी की कथा सुनिये । इस कथा के श्रवण मात्र से ही वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है । द्वापरयुग के प्रारम्भ में महिष्मती नाम की नगरी में महीजित नाम का एक राजपुत्र था । वह सदैव चिन्ताग्रस्त रहता था । उस राजपुत्र को वह राज्य दुःखदायी प्रतीत होता था क्योंकि पुत्र बिना इस लोक और परलोक दोनों में सुख प्राप्त नहीं होता है । राजा ने पुत्र प्राप्ति के बहुत प्रयत्न किये परन्तु वह सभी प्रयत्न निष्फल रहे । जब वह राजा वृद्ध होने लगा तो उसकी चिंता भी बढ़ने लगी । एक दिन उस राजा ने प्रजा को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने न तो अपने जीवन में कोई पाप किया और न ही अन्यायपूर्वक प्रजा से धन एकत्र किया है तथा मैंने कभी देवता और ब्राह्मणों का धन नहीं छीना और न ही किसी की धरोहर ली है । मैंने अपने  राज्य की प्रजा का  सदैव अपने पुत्र के सदृश पालन-पोषण किया है । मैंने अपराधि यों को पुत्र एवं बन्धु-बांधवों के सदृश दण्डित किया है । मैंने कभी किसी से रागद्वेष नहीं किया है, सबको समान माना है । इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करने पर भी मैं इस समय महादुःखों को सह रहा हूँ, सो इसका कारण क्या  है ? मुझे बताइए क्योंकि अत्यन्त कष्ट होने के कारण मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है ।

राजा महीजित की इस वार्ता पर विचार करने के लिये मन्त्रिगण आदि वन को गये । वहाँ वन में जाकर उन्होंने बड़े-बड़े तपस्वी ऋषि- मुनियों के दर्शन किये । उस स्थान पर वयोवृद्ध और धर्म के ज्ञाता महर्षि को यथा योग्य प्रणाम करके उनके सम्मुख बैठ गये । मंत्रिगण ऋषि-मुनियों से  विनय करने लगे कि हे देव ! हमारे अहोभाग्य हैं कि हमें आपके दर्शन हुए । इस पर लोमश ऋषि बोले- आप लोगों की विनय तथा आपके सद्व्यवहार से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ । अब आप मुझे अपने यहाँ आने का कारण बतलाइये । मैं आपके कार्य को अपनी शक्ति के अनुसार अवश्य ही सम्पूर्ण  करूँगा क्योंकि हमारा यह शरीर परोपकार के लिए ही बना है । इसमें किंचित् मात्र भी सन्देह नहीं है ।

लोमश ऋषि के इस प्रकार वचन सुनकर सभी मन्त्रिगण बोले कि हे महर्षि ! आप हमारी समस्त बातों को जानने में स्रष्टिकर्ता ब्रह्माजी से भी अधिक श्रेष्ठ ज्ञानी हैं । महिष्मती नाम की नगरी में एक महीजित नाम का धर्मात्मा राजा है । वह प्रजा का पुत्र की तरह धर्मानुसार पालन करता है । परन्तु फिर भी पुत्रहीन है । इससे वह अत्यन्त दुःखी रहता है । हम सभी जन उस राजा की प्रजा हैं । प्रजा का यह कर्त्तव्य है कि राजा के सुख में सुखी हो और राजा के दुःख में दुःखी हो ।  हमको उन राजा के पुत्रहीन होने का कारण क्या है इसका कारण अभी तक हमें ज्ञात नहीं हुआ है । परन्तु जब से हमने आपके दर्शन किये हैं तब से हमें यह पूर्ण विश्वास हो गया है की आप हमारी शंका का निवारण अवश्य करेंगे । अतः अब आप हमें राजा को पुत्र प्राप्त होने का उपाय बताइये ।

यह सब सुनकर लोमश ऋषि ने एक क्षण के लिए अपने नेत्र बन्द किये और राजा के पूर्व जन्मों का विचार करने लगे । वे विचार करके बोले- कि यही राजा पिछले जन्म में अत्यन्त निर्धन था और कुत्सित कर्म किया करता था तथा एक गाँव से दूसरे गाँव में भ्रमण किया करता था । एक दिन ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी के दिन यह दो दिन से भूखा था । दोपहर के समय यह एक जलाशय पर पानी पीने गया । वहीं जलाशय के किनारे पर एक गर्भवती गौ भी पानी पी रही थी । 

राजा ने उस प्यासी गौ को हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा । हे ब्राह्मणों ! इसलिये राजा को यह महानदुःख भोगने पड़ रहे हैं । एकादशी के दिन भूखा रहने से उसको राजा होना पड़ा और प्यासी गौ को हटाने से पुत्र के वियोग का दुःख भोगना पड़ा ।

इस पर सब लोग बोले कि हे महर्षि ! शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि पुण्य से पाप नष्ट हो जाते हैं इसलिये कृपा करके आप राजा के पूर्व जन्म के पाप नष्ट होने का उपाय बतलाइये क्योंकि इस पाप के क्षय होने से पुत्ररत्न की उत्पत्ति होगी । इस प्रकार के वचनों को सुनकर लोमश ऋषि बोले - यदि श्रावण माह के शुक्लपक्ष की “पुत्रदा एकादशी” को आप सभी लोग व्रत करें एवं साथ ही रात्रि को जागरण करके उस व्रत का सम्पूर्ण फल राजा को प्रदान करें । इससे राजा को अवश्य पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी ।

महर्षि लोमश के इन वाक्यों को सुनकर मन्त्रियों सहित समस्त प्रजा ने प्रसन्नतापूर्वक श्रावण मास के शुक्लपक्ष की “पुत्रदा एकादशी” को लोमश ऋषि की आज्ञानुसार विधिपूर्वक व्रत किया और द्वादशी को उसका व्रत का पारण करते हुए व्रत का सम्पूर्ण फल राजा को प्रदान कर दिया । एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह पश्चात् उसके एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्ररत्न पैदा हुआ ।
हे राजन् ! इसलिए इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी पड़ा । जो मनुष्य पुत्ररत्न प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करना चाहिये । इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में सुख और परलोक में स्वर्ग प्राप्त होता है ।

कथासार 

पाप करते समय मनुष्य यह विचार नहीं करता है कि वह क्या कर रहा है, किन्तु शास्त्रों से विदित होता है कि व्यक्ति का छोटा-सा पाप भी उसे महान कष्ट भोगने को विवश कर देता है, अतः मनुष्य को पाप से डरना, चाहिए क्योंकि पाप नामक यह राक्षस जन्म-जन्मांतर तक उसका पीछा नहीं छोड़ता है । मनुष्य को चाहिए कि सत्यव्रत का पालन करते हुए ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा रखे और यह बात भी सदैव याद रखे कि किसी के हृदय को कष्ट देने से बड़ा दुनिया में कोई और पाप नहीं है ।

श्रीभविष्योत्तरपुराण में वर्णित पुत्रदा एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • जो मनुष्य पुत्ररत्न प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करना चाहिये ।
  • व्रत के प्रभाव से इहलोक में सुख और परलोक में स्वर्ग प्राप्त होता है ।
  • व्रती को “वाजपेय यज्ञ” के फल की प्राप्ति होती है ।
  • भगवान् विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है ।
  • समस्त कामनाओं की प्राप्ति ,रूके हुए कार्यों का शीघ्र ही हो जाना । 

इस प्रकार “पुत्रदा एकादशी” पुत्र की कामना हेतु अत्यन्त प्रभावी है ।

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