सांसारिक कष्टों की निवृत्ति तथा अन्ततः नारायण लोक की प्राप्ति

सांसारिक कष्टों की निवृत्ति तथा अन्ततः नारायण लोक की प्राप्ति

।। इन्दिरा एकादशी ।। 

आश्विनमास के कृष्णपक्ष की एकादशी को “इंदिरा एकादशी” के नाम से जाना जाता है। एकादशी के दिन भगवान् विष्णु की उपासना विशेषरूप से की जाती है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने से भक्तों को समस्त कष्ट और भौतिक समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से महापापों का भी शमन हो जाता है । 

श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत करने से भक्त को मृत्यु के पश्चात् नारायणलोक की प्राप्ति होती है तथा व्रती के पूर्वजों को समस्त पूर्व कृत पापों से मुक्ति मिलती है।

इन्दिरा एकादशी व्रत 2024 शुभ मुहूर्त और पारणा :

  • व्रत का शुभ मुहूर्त 28 सितम्बर को ।
  • व्रत का पारण द्वादशी तिथि में 29 सितम्बर को करें ।

एकादशी व्रत पूजा विधि :

  • प्रातः शीघ्र जागकर स्नानादि से निवृत्त हो साफ –स्वच्छ वस्त्र धारण करें ।
  • घर के मंदिर को गंगाजल से अभिमंत्रित कर दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान् का गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें ।
  • भगवान् को पुष्पमाला-पुष्प और तुलसीदल अर्पित करें ।
  • परमात्मा तुलसीयुक्त नैवेद्य अर्पित कर आरती करें । 
  • भगवान् विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। क्योंकि बिना तुलसी के भगवान् विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान् विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवन् नाम का अधिक से अधिक सुमिरण करें।
  • “नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का अधिक से अधिक जप करें।

श्री ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित इन्दिरा एकादशी व्रत की कथा :

युधिष्ठिर बोले - हे भगवान् ! अब आप कृपापूर्वक आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी की कथा को कहिये ! इस एकादशी का नाम क्या है तथा इस एकादशी के व्रत को करने से व्रती को किस फल की प्राप्ति होती है । यह सब सविस्तार बतलाइए - इस पर भगवान् श्रीकृष्ण बोले- कि हे राजश्रेष्ठ ! आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा एकादशी है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अधोगति को प्राप्त हुए पितरों का उद्धार हो जाता है। हे राजन् ! इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही “वाजपेय यज्ञ” करने का फल प्राप्त हो जाता है। 

प्राचीन सतयुग में माहिष्मती नाम की नगरी में इन्द्रसेन नाम का प्रतापी राजा राज्य करता था । एक समय राजा अपनी राजसभा में सुखपूर्वक बैठा था, अचानक महर्षि नारद आकाशमार्ग से उतरकर राजसभा में आ गये । महर्षि नारद बोले- हे राजन् ! आपके राज्य में सब सकुशल है। मैं आपकी धर्मपरायणता और कर्तव्यनिष्ठता को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। इस प्रकार नारद मुनि के वचन सुनकर राजा बोला हे महर्षि ! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सम्पूर्ण प्रजा सकुशल है । 

इस पर नारदजी बोले हे राजन् ! मुझे एक महान् आश्चर्य हो रहा है कि एक समय जब मैं ब्रह्मलोक से यमलोक की यात्रा कर रहा था तब उस स्थान पर मैंने यमराज की सभा के मध्य में  तुम्हारे पिता को बैठे हुए देखा था । तुम्हारे पिता महान् ज्ञानी, दानी तथा धर्मात्मा थे । वे एकादशी का व्रत खण्डित हो जाने से यमलोक को चले गये । तुम्हारे पिता ने मेरे माध्यम से  तुम्हारे लिये एक समाचार भेजा है कि यदि मेरा पुत्र इन्द्रसेन आश्विन मास के कृष्णपक्ष की “इंदिरा एकादशी” का व्रत करे और उस व्रत का फल मुझे प्रदान कर दे तो मेरी तत्क्षण ही मुक्ति हो जायेगी और यमलोक को छोड़कर मैं स्वर्गलोक में निवास करूँगा ।

जब राजा ने महिर्ष नारद से इस प्रकार के वाक्यों को सुना तो उसे महत् दुःख हुआ और वह नारदजी से “इन्दिरा एकादशी” व्रत की विधि पूछने लगा । राजा बोला - हे नारद ! अब आप मुझे इस एकादशी के व्रत की विधि बतलाइये जिससे की मैं इस एकादशी का व्रत कर सम्पूर्ण फल अपने पिता को प्रदान कर सकूँ जिससे यमलोक से उनकी मुक्ति हो । इस पर नारदजी बोले कि हे राजन् ! आश्विनमास के कृष्णपक्ष में दशमी तिथि के दिन प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त हों । भगवन् नाम का सुमिरण निरन्तर करते हुए दोपहर को भी पुन: स्नान करना चाहिये । स्नान के पश्चात् जल से बहार आकर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक समय भोजन करें तथा रात्रिकाल में पृथ्वी पर ही शयन करें । इससे दूसरे दिन अर्थात् एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हों । इसके पश्चात् भक्तिपूर्वक संकल्पित होकर व्रत को धारण करे और यह संकल्प लें कि मैं आज निराहार रहूँगा एवम् समस्त भौतिक भोगों उपभोग नहीं करूँगा । इसके पश्चात् अगले दिवस में भोजन करूँगा । हे भगवान् ! आप मेरी रक्षा करने वाले हैं। आप मेरे व्रत को सफल कीजिये । इस प्रकार प्रतिज्ञा करके दोपहर को भगवान् शालग्राम की प्रतिमा का भोग लगावें । भोजन में से कुछ हिस्से को गौ को दें तथा विष्णु भगवान् की धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पण कर रात्रि में भगवन् नाम का सुमिरन करते हुए जागरण करें । इसके उपरान्त द्वादशी के दिन मौन होकर बन्धु-बान्धवों सहित भोजन कर व्रत का पारण करें । हे राजन् ! यही इन्दिरा एकादशी के व्रत की विधि है।

हे राजन् ! यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी के व्रत को करोगे तो अवश्य ही तुम्हारे पिताजी यमलोक को छोड़कर स्वर्गलोक को प्राप्त करेंगे । महर्षि नारद राजा को उपदेश देकर अन्तर्ध्यान हो गये । राजा ने “इन्दिरा एकादशी” के आने पर विधिपूर्वक व्रत व पूजन किया । बन्धु- बांधव सहित इस व्रत के करने से आकाश से पुष्प वर्षा हुई और राजा का पिता यमलोक से गरुड़ पर चढ़कर स्वर्ग को गया । राजा इन्द्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से इस लोक में सुख भोगकर अन्त में स्वर्गलोक को गया ।

भगवान् श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज युधिष्ठिर ! यह मैंने तुम्हारे समक्ष इन्दिरा एकादशी का महात्म्य वर्णित किया । इस कथा के पढ़ने व सुनने मात्र से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मनुष्य स्वर्गलोक में जाकर वास करता है।

कथासार

मनुष्य को चाहिए कि वह जो भी संकल्प करे, उसे तन-मन-धन अर्थात् सम्पूर्ण इच्छाशक्ति से पूरा करे । किसी भी कार्य को करने के लिए किये गए संकल्प छोड़ना उचित नहीं होता है।
 

श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित इन्दिरा एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • इस व्रत के प्रभाव से समस्त पापों का नाश होता है।
  • “अधोयोनिगतानां च पितॄणां गतिदायिनी” अधोगति को प्राप्त हुए पितरों को सद्गति की प्राप्ति होती है।
  • पठनाच्छ्रवणाच्चास्य सर्वपापै: प्रमुच्यते । 
    भुक्त्वेह निखिलान्भोगान्विष्णुलोके वसेच्चिरम् ।।

अर्थात् जो इस एकादशी का श्रवण और पठन करता है वह समस्त पापों से छूट जाता है तथा इस लोक में समस्त प्रकार के भोगों को भोगकर अन्त में विष्णु लोक में चिरकाल तक निवास करता है।

  • भौतिक सुख, समृद्धि की प्राप्ति।
  • अनिष्ट की परिसमाप्ति होती है।

इस प्रकार मनुष्य के सभी पापों का नाश करने वाली “इंदिरा एकादशी” व्रत का महात्म्य सम्पूर्ण हुआ ।

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