विपत्तियों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु करें षट्तिला एकादशी

विपत्तियों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु करें षट्तिला एकादशी

।। षट्तिला एकादशी व्रत ।। 

माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि को “षट्तिला एकादशी” मनाई जाती है। एकादशी का व्रत भगवान् नारायणकी कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। “षट्तिला एकादशी” पर तिल के द्वारा भगवान् नारायणकी पूजा का विधान है। षट्तिला, शब्द का अर्थ है कि छह तिल अर्थात् छह तरीके से तिल का प्रयोग करना ।

षट्तिला एकादशी पर तिल का प्रयोग स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण, हवन आदि कार्यों में किया जाता है। एकादशी के दिन जल में तिल मिलाकर स्नान करने से आरोग्यता की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल से निर्मित वस्तुओं का भोग भगवान् नारायणको अर्पित करें । ऐसा करने से घर - परिवार में सुख ,समृद्धि और ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति तथा कीर्ति का विस्तार होता है।

षट्तिला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त और पारण :

  • षट्तिला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 6 फरवरी को है।
  • व्रत का पारण द्वादशी तिथि में 7 फरवरी को करें।

एकादशी के दिन क्या करें ? 

  • प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर स्वाच वस्त्र धारण करें तथा घर के मंदिर या किसी देवालय में जाकर दीप प्रज्ज्वलित करें ।
  • भगवान् नारायण का गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें ।
  • भगवान् नारायण को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें । 
  • व्रत के दिन घर में सात्विक वस्तुओं का प्रयोग करें।
  • भगवान् नारायण के भोग में तुलसी को अवश्य सम्मिलित करें क्योंकि बिना तुलसी के भगवान् भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान् नारायण के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन भगवान् का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • “नमो भगवते वासुदेवाय नमो नमः” इस मंत्र का अधिक से अधिक जप करें ।

श्री भविष्योत्तरपुराण में वर्णित षट्तिला एकादशी व्रत कथा 

एक समय दाल्भ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा हे ब्राह्मण ! मनुष्य मृत्युलोक में ब्रह्महत्या आदि महान् पाप, दूसरे के धन की चोरी एवं दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या आदि करते हैं परन्तु फिर भी वे नर्कलोक की प्राप्ति नहीं करते हैं इसका कारण क्या है ?  वह न जाने कौन सा अल्पदान या अल्प परिश्रम करते हैं जिससे उनकी मुक्ति हो जाती है । यह सब आप कृपापूर्वक कहिये -

ऐसा सुनकर पुलस्त्य ऋषि बोले - हे महानुभाव ! आपने मुझसे अत्यन्त गम्भीर प्रश्न पूछा है। इस प्रश्न को ब्रह्मा, नारायणइन्द्र आदि भी नहीं जानते परन्तु मैं आपको यह गुप्त तत्व बताता हूँ। माघ माह के आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध होकर, इन्द्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, अभिमान आदि को त्यागकर भगवान् नारायण का स्मरण करना चाहिये । हाथ पैर धोकर पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर कण्डे बनाने चाहिये । इन कण्डों से 108 बार होम (हवन) करें और यदि इस दिन मूल नक्षत्र और द्वादशी हो तो नियम से रहें । स्नान आदि नित्य क्रिया से शुद्ध होकर भगवान् की पूजा व कीर्तन करना चाहिये । 

एकादशी के दिन व्रत करें तथा रात्रि को जागरण करके हवन करना चाहिये । दूसरे दिन धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान् की पूजा कर खिचड़ी का भोग लगाना चाहिये । इस दिन कृष्ण भगवान् का पूजन करना चाहिये । पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य प्रदान कर इस प्रकार स्तुति करें -  हे भगवान् ! आप अशरणों को शरण देने वाले हैं। आप संसार में डूबे हुओं का उद्धार कीजिये । हे पुण्डरीकाक्ष ! हे कमलनेत्र धारी ! हे विश्व भगवान् ! हे जगदगुरु ! आप लक्ष्मी जी सहित मेरे इस तुच्छ अर्घ्य को स्वीकार कीजिये । इसके पश्चात् ब्राह्मण को जल भरा कुम्भ प्रदान करना चाहिये । ब्राह्मण को श्यामा गाय और तिल पात्र भी देना शुभ होता है। तिल, स्नान और भोजन से श्रेष्ठ हैं। अतः मनुष्य को तिलदान भी करना चाहिये । इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिल का दान करता है वह उतने ही वर्ष स्वर्ग में निवास करता है। 1. तिल स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का हवन 4. तिलोदक 5. तिल का भोजन 6. तिल का दान ।  

यह षट्तिला एकादशी कहलाती है। इससे अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। नारद ऋषि बोले- हे भगवान् ! आपको नमस्कार है। इस षट्तिला एकादशी का क्या पुण्य और क्या कथा है, सो कहिये ?

श्रीकृष्ण भगवान् बोले - हे नारद ! मैं आपसे आँखों देखी सत्य घटना कहता हूँ। प्राचीन काल में मृत्युलोक की यह घटना है । प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी निवास करती थी । वह सदैव व्रत किया करती थी । एक समय वह एक माह व्रत करती रही । इससे उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया परन्तु उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों को धन तथा अन्नदान नहीं किया । इस प्रकार मैंने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है और इसको वैष्णव लोक भी प्राप्त हो जायेगा लेकिन इसने कभी अन्नदान नहीं किया अतः अन्नदान के बिना इसकी तृप्ति होना कठिन है। ऐसा सोचकर मैं मृत्युलोक में गया और ब्राह्मणी से अन्न माँगने लगा । वह बोली- आप यहाँ किस लिये आये हैं ? मैंने कहा मुझे भिक्षा चाहिये । उसने मुझे एक मृत्पिण्ड दे दिया और मैं उसे लेकर लौट आया । कुछ समय व्यतीत हो जाने पर ब्राह्मणी भी शरीर त्यागकर स्वर्ग आयी । मृत्पिंड के प्रभाव से उसे एक आत्मग्रह प्राप्त हुआ  परन्तु उसने उस घर में स्वयं को वस्तुओं से शून्य पाया । वह मेरे पास आयी और बोली- हे भगवान् ! मैंने अनेकों व्रत आदि से आपकी पूजा की है परंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से शून्य है। मैंने कहा- तुम अपने घर जाओ । देव स्त्रियाँ तुम्हें देखने आयेंगी तब तुम उनसे “षट्तिला एकादशी” का पुण्य और विधि सुनलो तब ही गृह का द्वार खोलना ।

इस प्रकार भगवान् के वचन सुनकर वह अपने घर को गयी और जब देव-स्त्रियाँ आकर द्वार खुलवाने लगीं तब ब्राह्मणी बोली- कि यदि आप मुझे देखने आयी हैं तो षट्तिला एकादशी का माहात्म्य बतलाइए - उनमें से एक देव-स्त्री बोली - सुनो मैं कहती हूँ। जब उसने षट्तिला एकादशी का माहात्म्य सुना दिया तब उसने द्वार खोला । देव-स्त्रियों ने उसको सब स्त्रियों से अलग पाया । ब्राह्मणी ने भी देवस्त्रियों के कथन अनुसार षट्तिला का व्रत किया और इसके प्रभाव से उनका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया । अतः मनुष्यों को षट्तिला एकादशी का व्रत करना चाहिये। इससे मनुष्यों को जन्म-जन्म में आरोग्यता प्राप्त होती है और दरिद्रता नष्ट हो जाती है। इस व्रत से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कथासार 

इस व्रत से जहाँ हमें शारीरिक शुद्धि और आयोग्यता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राणी जिस प्रकार का दान  करता है, शरीर त्यागने के पश्चात् उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए । शास्त्रों में वर्णन है कि बिना दानादि के कोई भी धार्मिक कार्य संपन्न नहीं माना जाता । 

श्रीभविष्योत्तरपुराण में वर्णित षट्तिला एकादशी व्रत का माहात्म्य :

लभते चंवमारोग्यं ततो जन्मनि जन्मनि ।
दारिद्रयं न च कष्टं चनच दौर्भाग्यमेव च ।।

  • एकादशी का व्रत समस्त पापों का नाश करता है।
  • षट्तिला एकादशी के दिन तिल से बने हुए व्यंजन अथवा तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अनन्त पुण्यों की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन तिल मिश्रित जल से स्नान करने पर आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन भगवान् नारायण और माता लक्ष्मी का पूजन करने से घर में सुख,समृद्धि का आगमन तथा दरिद्रता का शमन होता है।
  • षट्तिला एकादशी का व्रत सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त कराता है।

इस प्रकार यह एकादशी व्रत की कथा सम्पूर्ण हुई । जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें मृत्यु के पश्चात् परमात्मा के परमधाम की प्राप्ति होती है ।  

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