सर्वत्र विजय प्राप्ति तथा पापों से मुक्ति हेतु करें विजया एकादशी व्रत

सर्वत्र विजय प्राप्ति तथा पापों से मुक्ति हेतु करें विजया एकादशी व्रत

।। विजया एकादशी व्रत ।।

फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है । यह शुभ दिन श्रीहरि विष्णुजी की पूजा-उपासना के लिए समर्पित है। श्रीस्कन्दपुराण में वर्णित है विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को सर्वत्र विजय प्राप्त‍ होती है । यह एकादशी व्रत सभी व्रतों में उत्तम व्रत है । इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं ।

विजया एकादशी व्रत और पारण का शुभ मुहूर्त :

  • विजया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 6 मार्च को है ।
  • व्रत का पारण द्वादशी तिथि में पूर्वाह्न वेला में 7 मार्च को करें ।

किस प्रकार करें भगवान् विष्णु की पूजा-अर्चना ?

  • प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के मंदिर को स्वच्छ करें तथा गंगाजल से पवित्र करें । 
  • घर के मंदिर या देवालय में जाकर दीप प्रज्ज्वलित करें ।
  • भगवान् विष्णु का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें । 
  • भगवान् विष्णु को पुष्प और तुलसीदल अवश्य अर्पित करें । यदि संभव हो तो इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए ।
  • घर में सात्विक वस्तुओं का प्रयोग करें ।
  • मिष्ठान और फल का भोग अर्पित करें । 
  • भगवान् विष्णु के भोग में तुलसीदल अवश्य सम्मिलित करें । 
  • इस पावन दिन भगवान् विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। 
  • भगवन् नाम का अधिक से अधिक सुमिरण करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का अधिक से अधिक जप करें ।
  • रात्रि कालीन बेला में विष्णु भगवान् और माता लक्ष्मी की आरती करें तत्पश्चात् शयन करायें ।

श्रीस्कन्दपुराण में वर्णित विजया एकादशी व्रत की कथा :

धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि - हे जनार्दन ! फाल्गुनमास के कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी व्रतविधि क्या है ? सो सब कहिए ।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले कि हे राजेश्वर ! फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम विजया है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य को सर्वत्र विजय प्राप्त होती है । इस विजया एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत्पिता ब्रह्माजी से पूछा कि हे ब्रह्माजी ! आप मुझे फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की “विजया नामक” एकादशी का व्रत विधान बतलाइये । ब्रह्माजी बोले- हे नारद ! विजया एकादशी व्रत पूर्व में किये गये पापों तथा वर्तमान में किये हुए पापों को नष्ट करने वाला है। यह व्रत मनुष्यों को विजय तथा श्री प्रदान करने वाला है ।

त्रेतायुग में श्रीरामचन्द्रजी को जब चौदह वर्ष के लिये बनवास हो गया था तब वे श्रीलक्ष्मणजी तथा माता जानकीजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे थे । इस स्थान से रावण ने श्रीसीताजी का हरण किया । इस दुःखद समाचार को सुनकर श्रीराम अत्यन्त व्याकुल हुए और श्रीसीताजी की खोज में चल दिये । घूमते-घूमते वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँच गए और कुछ आगे चलकर रामजी की मित्रता सुग्रीव के साथ हो गयी और इन्होंने बालि का वध किया । श्री हनुमानजी ने लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया । वहाँ से लौट कर हनुमानजी श्रीरामचन्द्र के पास आये और उन्होंने सम्पूर्ण समाचार रामचन्द्रजी से कहा । श्री रामचन्द्रजी ने सुग्रीव की वानर,भालुओं की सेना सहित लंका को प्रस्थान किया । श्रीरामचन्द्र जी जब समुद्र किनारे पहुँचे तब उन्होंने महान् और अगाध, मगरमच्छ से युक्त समुद्र को देखकर श्रीलक्ष्मणजी से कहा- हे लक्ष्मण ! इस समुद्र को हम किस प्रकार पार करेंगे ?

लक्ष्मणजी बोले - हे भ्राता श्रीराम ! यहाँ से करीब आधा योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप पर बकदाल्भ्य नाम के मुनि रहते हैं। आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिये। लक्ष्मणजी के वचनों को सुनकर श्रीरामचन्द्रजी बकदाल्भ्य ऋषि के पास गये और उनको प्रणाम करके बैठ गये। मुनि ने उनसे पूछा हे श्रीरामजी ! आप कहाँ से पधारे हैं। श्री राम बोले कि हे महर्षि! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने लंका जा रहा हूँ। आप कृपाकर समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइये। बकदाल्भ्य ऋषि बोले- हे श्रीराम जी ! मैं आप को एक उत्तम व्रत बतलाता हूँ। फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की विजया एकादशी का व्रत करने से तुम समुद्र को अवश्य ही पार कर जाओगे और तुम्हें विजय प्राप्त होगी ।

हे श्रीराम ! इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्टी किसी का एक घड़ा बनावें । उस घड़े को जल से भरकर तथा उस पर पंचपल्लव रखकर वेदी पर स्थापित करें। घड़े के नीचे सतनजा (सात अनाज मिले हुए) और ऊपर जौं रखें । उस पर श्रीनारायण भगवान् की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान् की पूजा करें । उस दिन भक्तिपूर्वक घड़े के सामने व्यतीत करें और रात्रि को भी उसी तरह बैठे रहकर जागरण करें । द्वादशी के दिन नदी या तालाब के किनारे स्नान आदि से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे देवें । हे राम ! यदि तुम इस व्रत को सेनापतियों के साथ करोगे तो अवश्य ही आपको विजय प्राप्त होगी । श्रीरामचन्द्रजी ने विधिपूर्वक “विजया एकादशी” का व्रत किया और इसके प्रभाव से दैत्यों के ऊपर विजय प्राप्त की । 

अतः हे राजन् ! जो मनुष्य इस व्रत को विधिपूर्वक करेगा, उसकी दोनों लोकों में विजय होगी। श्रीब्रह्माजी ने नारद जी से कहा था कि हे पुत्र ! जो इस व्रत का माहात्म्य सुनता है उसको वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।

कथासार

भगवान् विष्णु का किसी भी रूप में पूजन मानव की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। भगवान् राम स्वयं विष्णु के अवतार थे अपितु अपनी लीलाओं के चलते प्राणियों को स‌त्मार्ग दिखाने के लिए उन्होंने विष्णु भगवान् के निमित्त इस व्रत को किया । विजय की इच्छा रखने वाला कोई भी मनुष्य इस व्रत को करके अनन्त फल का भागी बनता है। विजया एकादशी का व्रत मनुष्यों को प्रत्येक क्षेत्र में विजयश्री प्रदान करता है। 

श्रीस्कन्दपुराण में वर्णित विजया एकादशी व्रत का माहात्म्य :

इहलोके जयस्तेषां परलोकस्तथाऽक्षयः । 
एतस्मा- त्कारणात्पुत्र कर्तव्यं विजयाव्रतम् ।। 
विजयायाश्च माहात्म्यं सर्वकिल्बिषनाशयनम् । 
पठनाच्छ्वणात्तस्य वाजपेयफलं लभेत् ।।

  • एकादशी का व्रत समस्त कार्यों में विजय श्री की प्राप्ति कराता है। 
  • विजया एकादशी का व्रत पितृगण और पूर्वजों को कुयोनि से स्वर्ग की ओर पहुंचाता है।
  • यह व्रत अनेक पुण्यों को प्रदान कराता है। 
  • पूर्व जन्म और इस जन्म में किए गए समस्त पापों का विनाश होता है । 
  • इस एकादशी व्रत की कथा को पढ़ने और श्रवण करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है । 

इस प्रकार “विजया एकादशी” के व्रत की कथा और माहात्म्य सम्पूर्ण हुआ । एकादशी का यह व्रत मनुष्य के सम्पूर्ण मनोरथों को प्रदान करने वाला है तथा सर्वत्र विजय की प्राप्ति कराने वाला है ।  

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