पूर्वजों (पितरों) को मोक्ष प्रदान हेतु करें मोक्षदा एकादशी व्रत

पूर्वजों (पितरों) को मोक्ष प्रदान हेतु करें मोक्षदा एकादशी व्रत

।। मोक्षदा एकादशी व्रत ।।

भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति में मनुष्य के कल्याण के निमित्त विभिन्न व्रत और पूजाएँ हमारे धर्मशास्त्रों में वर्णित हैं । उन्हीं व्रतों में से एक मनुष्य का सर्वविध कल्याण करने वाला व्रत एकादशी का व्रत है । एक वर्ष में बारह माह होते हैं तथा एक माह में दो एकादशी होती हैं । प्रत्येक माह में आने वाली एकादशी का नाम भी भिन्न होता है । इन्हीं बारह माह में से मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी के विषय में जानेंगे –

मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी को हम “मोक्षदा एकादशी” के नाम से जानते हैं । एकादशी का यह व्रत उपासक और उपासक के पूर्वजों(पितरों)को मोक्ष प्रदान करने वाला है । एकादशी के दिन जो उपासक भगवान् विष्णु की अर्चना करते हैं उन्हें अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं समस्त अज्ञानवश हुए अपराधों से मुक्ति प्राप्त होती है ।  

विशेष :- श्रीब्रह्माण्डपुराण के अनुसार इस दिन तुलसी की मंजरी,पके हुए केले के फल, धूप, दीप आदि से भगवान् विष्णु का पूजन करने से उपासक भव-बन्धनों से मुक्त हो जाता है । 

मोक्षदा एकादशी  2024 में व्रत और पारण, मुहूर्त :

  • 11 दिसम्बर को व्रत ।
  • 12 दिसम्बर व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करें ।

व्रत के दिन कैसे करें पूजा ?

  • प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जागकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएँ ।
  • घर के मंदिर या देवालय में जाकर घी का दीपक जलाएं । 
  • भगवान् विष्णु का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें ।
  • भगवान् को स्वच्छ कर लेने के पश्चात् अर्चन अर्थात् पूजा करें ।
  • “नारायण कवच” का पाठ करें या श्रवण करें ।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का यथाशक्ति जप करें । 
  • व्रत के दिन घर में चावल बनाना और खाने का निषेध है।

ब्रह्माण्डपुराण में वर्णित मोक्षदा एकादशी व्रत कथा :

गोकुल नाम के नगर में वैखानस नाम का राजा राज्य करता था । उसके राज्य में चारों वेदों को जानने वाले विद्वान ब्राह्मण भी रहते थे । वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था । एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा- कि उसके पिता नरक में हैं । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। प्रात:काल होते ही वह ब्राह्मणों के पास गया और अपने स्वप्न का वृत्तान्त ब्राह्मणों को सुनाने लगा और कहा हे ब्राह्मणों ! मैंने अपने पिता को नरक यातना भोगते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र ! मैं नरक यातना में हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ । जबसे मैंने अपने पिता के ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूँ। मेरे चित्त में बहुत अशांति हो रही है । मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता । अतः मेरी शारीरिक और मानसिक शांति हेतु मुझे कुछ उपाय बतलाएं । 

राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र वही है जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।

ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर पहुंचे। उस आश्रम में अनेक शांतचित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात् मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और राजा की बातें विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।

तब राजा ने कहा ‍इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने के अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र! तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस दिन गीता जयंती मनाई जाती है, साथ ही इस एकादशी को धनुर्मास की एकादशी भी  कहते हैं।अतः इस एकादशी का महत्व कई गुना और भी बढ़ जाता हैं। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढ़नी चाहिए।

श्रीब्रह्माण्डपुराण में वर्णित मोक्षदा एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से उपासक के समस्त पापों का शमन होता है।
  • साधक को समस्त प्रकार के बंधनों से मुक्ति मिलती  है।
  • साधक की‌ समस्त मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति होती है।
  • पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, तथा भक्त को सदैव पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • इस दिन गीता जी का पाठ करने से जीवन में व्याप्त अंधकार की निवृत्ति होती है,तथा साधक को भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
  • इस व्रत को कसे से घर, परिवार सुख, समृद्धि और सौभाग्य का उदय होता है।
  • मोक्षदा एकादशी अर्थात् मोह का नाश होता है।

इस प्रकार “श्रीब्रह्माण्डपुराण” के अनुसार मोक्षदा एकादशी का माहात्म्य पूर्ण हुआ ।   

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