समस्त पापों के मार्जन एवं धन-धान्य की प्राप्ति हेतु करें मोहिनी एकादशी व्रत

समस्त पापों के मार्जन एवं धन-धान्य की प्राप्ति हेतु करें मोहिनी एकादशी व्रत

वैशाख मास में शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को “मोहिनी एकादशी” व्रत के रूप में जानते हैं । श्री कूर्मपुराण में वर्णित है कि इस दिन व्रत करने से समस्त मोह बन्धनों का विनाश होता है । इस एकादशी को श्रद्धापूर्वक किया गया व्रत अतिशीघ्र फल प्रदान करता है । मोहिनी एकादशी को उपवास करने से व्यक्ति पापरूपी दलदल से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है।

कूर्मपुराण के अनुसार मोहिनी एकादशी का महात्म्य :

इतीदृशं रामचन्द्र तमोमोहनि- कृन्तनम् ।
नातः परतरं किञ्चित्रैलोक्ये सचराचरे ।। ३८ ।।
यज्ञादितीर्थदानानि कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।
पठनाच्छ्रवणाद्राजन् गोसहस्रफलं लभेत् ।। ३९ ।।

  
भगवान् श्री रामचंद्रजी से ऋषि कौण्डिन्यजी कहते हैं यह एकादशी का व्रत मोह को काटने वाला है । इसके समतुल्य और कोई व्रत नहीं है । यज्ञ-तथा तीर्थ दान इसकी षोडश कलाओं को भी नहीं पा सकते अतः हे राजन ! इस एकादशी को पढ़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है । 

मोहिनी एकादशी 2024 व्रत का दिन और समय,पारण तथा व्रत का शुभ मुहूर्त :

  • हृषीकेश पञ्चांग के अनुसार मोहिनी एकादशी शनिवार 18 मई प्रातः 11 बजकर 15 मिनट को एकादशी तिथि लग जायेगी। 
  • रविवार 19 मई को व्रत रहेगा,तथा व्रत पारण सोमवार 20 मई द्वादशी तिथि को प्रातः से लेकर मध्याह्न 3.10 तक करें ।

कूर्मपुराण में वर्णित मोहिनी एकादशी व्रत कथा :

युधिष्ठिर जी बोले - "हे भगवन् ! वैशाख मास के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है तथा इसका फल क्या है कृपया मुझे बताइये । भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि, हे धर्मपुत्र ! मैं एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठजी ने श्रीरामचन्द्रजी से कहा था । उसे मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो - एक समय की बात है, श्रीरामजी ने महर्षि वशिष्ठ से कहा - 'हे गुरुश्रेष्ठ ! मैंने जनकनन्दिनी सीताजी के वियोग में बहुत कष्ट भोगे हैं, अतः मेरे कष्टों का नाश किस प्रकार होगा ? आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताने की कृपा करें, जिससे मेरे सभी पाप और कष्ट नष्ट हो जाएँ ।'

महर्षि वशिष्ठ ने कहा - 'हे श्रीराम ! आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है । आपकी मेधा (बुद्धि) अत्यन्त कुशाग्र और पवित्र है । आपके नाममात्र स्मरण से ही मनुष्य पवित्र हो जाते हैं । आपने लोकहित में यह बड़ा ही उत्तम् प्रश्न किया है। मैं आपको एक एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाता हूँ - वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है । इस एकादशी का उपवास करने से मनुष्य के सभी पाप तथा क्लेश नष्ट हो जाते हैं। इस उपवास के प्रभाव से मनुष्य मोह के जाल से मुक्त हो जाता है । अतः हे राम ! दुःखी मनुष्य को इस एकादशी का उपवास अवश्य ही करना चाहिये। इस व्रत के करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । अब आप इस एकादशी की कथा को श्रद्धापूर्वक सुनिये – 

प्राचीन समय में सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी बसी हुई थी । उस नगरी में द्युतिमान नामक राजा राज्य करता था । उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से परिपूर्ण था । उसका नाम धनपाल था । वह अत्यन्त धर्मात्मा तथा नारायण-भक्त था । उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, तालाब, धर्मशालाएं आदि बनवाये, सड़को के किनारे आम, जामुन, नीम आदि के वृक्ष लगवाए, जिससे पथिकों को सुख प्राप्त हो सके । 

इस धर्मात्मा वैश्य के पाँच पुत्र थे जिनका नाम - सुमना, द्युतिमान, मेधावी,सुकृती और धृष्टबुद्धि था । जिनमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यन्त पापी व दुष्ट था । वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था । इससे जो समय बचता था, उसे वह जुआ खेलने में व्यतीत करता था । वह बड़ा ही अधमप्रवृत्ति का था और देवता, पितृ आदि किसी को भी नहीं मानता था । अपने पिता का अधिकांश धन वह दुर्व्यसनों में ही उड़ाया करता  था। मद्यपान तथा मांस इत्यादि का भक्षण करना उसका नित्य कर्म था । घर परिवार वालों ने उसे बहुत समझाया परन्तु जब काफी समझाने-बुझाने पर भी वह सीधे रास्ते पर नहीं आया तो दुःखी होकर उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निन्दा करने लगे। घर से निकलने के बाद वह अपने आभूषणों तथा वस्त्रों को बेच-बेचकर अपना गुजारा करने लगा ।

धन नष्ट हो जाने पर वेश्याओं तथा उसके दुष्ट साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया । जब वह भूख-प्यास से व्यथित हो गया तो उसने चोरी करने का विचार किया और रात्रि में चोरी करके अपना पेट पालने लगा, लेकिन एक दिन वह पकड़ा गया, किन्तु सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र जानकर छोड़ दिया । जब वह दूसरी बार पुनः पकड़ा गया, तब सिपाहियों ने भी उसका कोई लिहाज नहीं किया और राजा के सामने प्रस्तुत करके उसे सारी बात बताई । राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया । कारागार में राजा के आदेश से उसे बहुत कष्ट दिए जाने लगे और अन्त में उसे नगर छोड़ने के लिए आदेश दिया गया । दुःखी होकर वैश्यपुत्र को नगर छोड़ना पड़ा । अब वह जंगल में पशु-पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा । फिर बहेलिया बन गया और धनुष-बाण से जंगल के निरीह जीवों को मार-मारकर खाने और बेचने लगा । एक बार वह भूख और प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज में निकला और कौण्डिय मुनि के आश्रम में जा पहुँचा। इन दिनों वैशाख का माह था। कौण्डिन्य मुनि गंगा स्नान करके आये थे । उनके भीगे वस्त्रों की छींटें मात्र से इस पापी को कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई । वह तपोधम, ऋषि के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगा - 'हे महात्मा ! मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किये हैं, कृपा कर आप उन पापों से छूटने का कोई साधारण और बिना धन का उपाय बतलाइये ।

ऋषि ने कहा - 'तू ध्यान देकर सुन - वैशाख माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कर । इस एकादशी का नाम मोहिनी है । इसका उपवास करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।

ऋषि के वचनों को सुन वह बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी बतलायी हुई विधि के अनुसार उसने “मोहिनी एकादशी” का व्रत किया ।

हे श्रीराम ! इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गये और अन्त में वह गरुड़ पर सवार हो विष्णुलोक को गया। संसार में इस व्रत से उत्तम दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य के श्रवण व पठन से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य एक सहस्र गौदान के पुण्य के बराबर है।

          कथासार : 

प्राणी को सदैव सन्तों का संग करना चाहिये । सन्तों की संगत से मनुष्य को न केवल सद्बुद्धि प्राप्त होती है, अपितु उसके जीवन का उद्धार हो जाता है । पापियों की संगत प्राणी को नरक में ले जाती है।

मोहिनी एकादशी 2024 व्रत विधि :- (Rituals of Varuthani Ekadashi Vrat 2024) 

  • दशमी के दिन यानी एकादशी से एक दिन पूर्व सूर्यास्त के पश्चात् भोजन ग्रहण ना करें ।
  • मोहिनी एकादशी के दिन प्रातः जल्दी जागकर स्नान कर ले तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करें ।
  • इसके पश्चात् भगवान् विष्णु की प्रतिमा को स्नान करायें एवं साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करायें । तथा प्रतिमा को रखने वाली चौकी को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लें ।
  • इसके बाद भगवान् विष्णु की पूजा करें ।
  • भगवान् विष्णु को गंध, पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
  • व्रत के दिन भगवान् विष्णु को भोग(नैवेद्य) अवश्य अर्पित करें ।
  • रात्रि के समय भगवान् विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा करें ।
  • अगले दिन सुबह स्नान करके पूजा करें और यदि संभव हो तो ब्राह्मण को भोजन कराएं।
  • मोहिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु को पीला फल, पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना गया है।
  • एकादशी के दिन भगवान् विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि एवं धन का आगमन होता है।
  • व्रत में कम से कम बातचीत करें ।
  • लहसुन, प्याज का घर-परिवार में पूर्णतया परित्याग करें ।
  • मोहिनी एकादशी के दिन शंख में जल भरकर छिड़काव करें, इससे आपके घर से नकारात्मक एनर्जी दूर होती है साथ ही साथ घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है ।

इन चीजों का कर सकते हैं सेवन :

एकादशी व्रत वाले दिन आप एक प्रकार का अनाज कुटू, आलू, नारियल और शकरकंद खा सकते हैं । इसके साथ ही आप दूध, बादाम, आदि का भी सेवन कर सकते हैं । इस बात ध्यान रखें कि खाने में सेंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिए।

विशेष :- इन चीजों का न करें सेवन :

  • एकादशी के दिन मांस, शराब, लहसुन, प्याज और मसूर दाल आदि तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित माना गया । 
  • एकादशी के दिन साधारण नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए । 
  • एकादशी के दिन गोभी, पालक, शलजम, गाजर आदि भी नहीं खाना चाहिए ।

मोहिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • “मोहिनी नाम सा प्रोक्ता सर्व पापहरा परा” अर्थात् मोहिनी एकादशी का व्रत समस्त पापों का हरण करने वाला है ।
  • उपासक मोहजाल में पड़े बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
  • इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है।
  • “पठनाच्छ्रवणाद्राजन् गोसहस्रफलं लभेत्” अर्थात् इस व्रत का पठन और श्रवण करने से एक हजार गायों के दान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • पीले रंग की वस्तुओं का दान करने से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

इस प्रकार जो फल मोहिनी एकादशी व्रत का पुराणों में वर्णित है उसका यहाँ वर्णन किया गया ।  इस एकादशी का व्रत अवश्य ही मनुष्य को सम्पूर्ण पाप और मोह के जाल से मुक्ति प्रदान करने वाला है । 

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