सभी पापों से मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति हेतु करें रमा एकादशी व्रत

सभी पापों से मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति हेतु करें रमा एकादशी व्रत

।। रमा एकादशी व्रत ।।

श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार कार्तिकमाह के कृष्णपक्ष की एकादशी को “रमा एकादशी” के नाम से जाना जाता है । एकादशी के दिन भगवान् विष्णु व माता लक्ष्मी की उपासना विशेष रूप से सविधि की जाती है । 
धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि इस व्रत को करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा उपासक के घर में वास करती हैं जिससे सुख-समृद्धि व सौभाग्य की  प्राप्ति होती है। रमा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

रमा एकादशी 2024 व्रत एवं पारण मुहूर्त :

  • रमा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 28 अक्टूबर 2024 को‌ है।
  • व्रत का पारण द्वादशी तिथि में 29 अक्टूबर को करें ।

एकादशी व्रत कैसे करें ?

  • प्रातः शीघ्र जागकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं ।
  • घर के देवालय को गंगाजल से पवित्र कर घी का दीप प्रज्वलित करें ।
  • भगवान् विष्णु का गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें ।
  • भगवान् विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत करें तथा घर में सात्विक वस्तुओं का प्रयोग करें ।
  • भगवान् की आरती करें ।
  • भगवान् को भोग में फल तथा मिष्ठान अर्पण करें । 
  • विशेष भगवान् विष्णु को भोग में तुलसीदल अवश्य सम्मिलित करें क्योंकि बिना तुलसीदल के भगवान् भोग ग्रहण नहीं करते हैं ।
  • इस पावन दिन भगवान् विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें ।
  • भगवान् का अधिक से अधिक सुमिरण करें ।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का अधिक से अधिक जप करें ।

श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित रमा एकादशी व्रत की कथा :

धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे भगवन् ! अब आप मुझे कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये । इस एकादशी का नाम क्या है तथा इससे किस फल की प्राप्ति होती है ? श्रीकृष्ण भगवान् बोले कि हे राजराजेश्वर ! कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसका व्रत करसे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । मैं इस एकादशी की व्रत कथा आपको सुनाता हूँ आप ध्यानपूर्वक कथा का श्रवण कीजिये – 

प्राचीनकाल में मुचुकुन्द नाम का एक राजा राज्य करता था । उसके इन्द्र, वरुण, कुबेर, विभीषण आदि मित्र थे । वह अत्यन्त सत्यवादी तथा विष्णुभक्त था । उसके एक उत्तम चन्द्रभागा नाम की कन्या ने जन्म लिया । कन्या के बड़े हो जाने पर राजा ने अपनी कन्या का विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ कर दिया । एक समय जब राजा मुचुकुन्द की पुत्री अपनी ससुराल में थी, एक एकादशी आई । चन्द्रभागा सोचने लगी- कि अब एकादशी समीप आ गयी है परन्तु मेरे पति अत्यन्त दुर्बल हैं अतः वे यह व्रत नहीं कर पायेंगे परन्तु मेरे पिताजी की आज्ञा है। जब दशमी तिथि आती है तब राज्य में यह घोषणा कर दि जाती है की एकादशी के दिन राज्य में रहने वाला समस्त प्रजाजन व्रत करेंगे । राजा की इस प्रकार आज्ञा सुनकर शोभन अपनी पत्नी के समीप गया और उससे पूछाने लगा कि हे प्रिये ! तुम मुझे कुछ उपाय बतलाओ क्योंकि मैं अत्यन्त दुर्बल हूँ अतः मैं व्रतकिस प्रकार कर पाउँगा । अपने स्वामी की बात सुनकर चन्द्रभागा बोली- हे प्राणनाथ ! मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी प्राणी भोजन नहीं करता है यहाँ तक कि जीव-जन्तु (हाथी, घोड़ा, ऊँट) भी तृण, अन्न, जल ग्रहण नहीं करते हैं । फिर यहाँ मनुष्य किस प्रकार भोजन कर सकते हैं ?

यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो यहाँ से किसी दूसरे स्थान अथवा राज्य में चले जाइये । क्योंकि यदि आप इसी स्थान पर रहेंगे तो आपको व्रत अवश्य ही करना पड़ेगा । इस पर शोभन बोला कि - हे प्रिये ! आप का कथन उचित है। मैं अवश्य ही व्रत करूँगा, मेरे भाग्य में जो लिखा है वही होगा ।

ऐसा विचार करके उसने एकादशी का व्रत किया और अब सूर्य भगवान् भी अस्त हो गये और जागरण के लिये रात्रि हुई । यह रात्रि शोभन को दुःख देने वाली थी । दूसरे दिन प्रातः होने से पहले शोभन इस संसार से चल बसा । राजा ने उसके मृत शरीर का अन्तिम संस्कार करा दिया । चन्द्रभागा अपने पति की आज्ञानुसार अग्नि में दहन न हुई परन्तु पिता के घर रहना उत्तम समझा । रमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ ।

एक समय जब मुचुकुन्द नगर में रहने वाला एक सोम शर्मा नाम का ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिये निकला । उसने घूमते-घूमते उसको देखा । उस ब्राह्मण ने उसको अपने राजा का जमाई जानकर उसके निकट गया । राजा शोभन ब्राह्मण को देखकर आसन से उठ गए । वह उससे अपने श्वसुर तथा स्त्री चन्द्रभागा की कुशलता पूछने लगा । सोम शर्मा ब्राह्मण बोला कि हे राजन् ! हमारे राजा कुशल हैं तथा आपकी पत्नी चन्द्रभागा भी कुशल हैं। अब आप अपना वृतान्त बतलाइये । मुझे यह बड़ा आश्चर्य है कि ऐसा विचित्र और सुन्दर नगर आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ ? शोभन बोला कि हे ब्राह्मण ! यह सब कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की रमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है परन्तु यह अध्रुव है। इस पर ब्राह्मण बोले- कि हे राजन् ! यह अध्रुव क्यों है और ध्रुव, किस प्रकार हो सकता है सो आप मुझे समझाइये-  मैं आपके कथनानुसार ही करूँगा । आप इसे किंचित मात्र भी झूठ न समझो । शोभन बोला कि हे ब्राह्मण ! मैंने श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत किया था । उसके प्रभाव से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ है। इस वृतान्त को राजा मुचुकुन्द की पुत्री चन्द्रभागा से कहोगे तो वह इसको ध्रुव बना सकती है।

ब्राह्मण ने वहाँ जाकर चन्द्रभागा से समस्त वृतान्त कहा । इस पर राजकन्या चन्द्रभागा बोली कि हे ब्राह्मण! आप मुझे उस नगर में ले चलिये, मैं अपने पति को देखना चाहती हूँ। मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को ध्रुव बना लूँगी ।

चन्द्रभागा के वचनों को सुनकर वह सोम शर्मा ब्राह्मण उसको मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के आश्रम में ले गया । वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चन्द्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया । चन्द्रभागा उसके मन्त्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गयी । शोभन ने अपनी स्त्री चन्द्रभागा को देखकर प्रसन्नतापूर्वक उसे अपने वाम अंग में बैठाया । चन्द्रभागा बोली- हे प्राणनाथ ! अब आप मेरे पुण्य को सुनिये । जब मैं अपने पिता के गृह में आठ साल की थी तबही से मैं यथाविधि एकादशी का व्रत करती थी । उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर ध्रुव हो जायेगा और समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अन्त तक रहेगा । चन्द्रभागा दिव्य रूप धारण करके तथा दिव्य आभूषण एवं वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनन्दपूर्वक निवास करने लगी और शोभन भी उसके साथ आनन्द पूर्वक निवास करने लगा ।

हे राजन् ! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है। जो मनुष्य इस रमा एकादशी के व्रत को करते हैं उनके समस्त ब्रह्महत्या सदृश पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जो मनुष्य रमा एकादशी का माहात्म्य श्रवण करते हैं वे अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं।

कथासार

भगवान् विष्णु अत्यन्त कृपालु और क्षमावान हैं। श्रद्धापूर्वक या विवश होकर भी यदि कोई उपासक पूजन या एकादशी का व्रत करता है, वह उसे भी उत्तम फल प्रदान करते हैं, किंतु प्राणी को चाहिए कि वह भगवान् की पूजा श्रद्धापूर्वक करे । शोभन अपनी पत्नी द्वारा श्रद्धापूर्वक किए गए एकादशी व्रतों के प्रभाव से अपने राज्य को स्थिर कर सका । ऐसी सुकर्मा पत्नी भगवान् श्रीविष्णु की अनुकम्पा से ही प्राप्त होती है।

श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित रमा एकादशी व्रत का माहात्म्य :

ईदृशं च व्रतं राजन् ये कुर्वन्ति नरोत्तमाः ।
'ब्रह्महत्यादि- पापानि नाशं यान्ति न संशयः ।। 
एकादश्या रमाख्याया माहात्म्यं शृणुयान्नरः । 
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते ।।

  • रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से समस्त पापों का शमन होता है ।
  • एकादशी व्रत करने से महापातक आदि दोषों की निवृत्ति होती है ।
  • सांसारिक सुखों का उपभोगकर अन्त में मोक्ष की प्राप्ति ।
  • एकादशी व्रत करने से घर, परिवार में शान्ति बनी रहती है, तथा कार्यक्षेत्र में उन्नति हो । 

इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण के अन्तर्गत् वर्णित रमा एकादशी व्रत की सम्पूर्ण कथा का वर्णन और विधि सम्पूर्ण हुई । जो साधक इस व्रत को करते हैं वे अवश्य इस भगवान् विष्णु के परमधाम को प्राप्त कर लेते हैं तथा समस्त मोह-माया के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं । 

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