समस्त व्रतों की सफलता तथा नारायण में प्रीति प्राप्ति हेतु करें सफला एकादशी व्रत

समस्त व्रतों की सफलता तथा नारायण में प्रीति प्राप्ति हेतु करें सफला एकादशी व्रत

।। सफला एकादशी व्रत ।। 

सनातन संस्कृति के परम्परा अद्भुद है जिसमें प्रत्येक दिन, तिथि तथा मास में विभिन्न नामों के माध्यम से भगवन् नाम की उपासना के साधन बतलाये गए हैं । इन्हीं में से एक है प्रत्येक मास में आने वाली एकादशी । हम सभी प्रायः यह जानते हैं की प्रत्येक मास दो एकादशी आती हैं और उन एकादशियों के नाम भी अलग- अलग हैं । आज हम पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है इसके विषय में जानेंगे –

एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान् विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है । भगवान् विष्णु की उपासना से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। समस्त व्रत में एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ व्रत की कोटि में रखा गया है । 

आइये जानते हैं सफल एकादशी का मुहूर्त,पूजा विधि,कथा - 

सफला एकादशी 2024 व्रत और पारण का शुभ मुहूर्त : 

  • सफला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 7 जनवरी 2024 को है । 
  • एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में 8 जनवरी 2024 को करें ।

व्रत के दिन कैसे करें पूजा ?

  • प्रातः शीघ्र जगकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं तथा देवालय या घर के मंदिर में भगवान् विष्णु के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करें ।
  • भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की यथाशक्ति और सामर्थ्य के अनुसार पूजन करें।
  • भगवान् विष्णु का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक अवश्य करें। 
  • पूजन के उपरान्त तुलसी पत्र सहित नैवेद्य अर्पित करें। 
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का अधिक से अधिकजप करें।

सफला एकादशी व्रत :

श्रीयुधिष्ठिरजी बोले - हे भगवान् ! पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? इस दिन किस देवता की पूजा की जाती है एवं उनकी पूजा की विधि क्या है ? यह वृत्तान्त समझाइये । भगवान् श्रीकृष्ण बोले- हे राजन् ! मैं आपके सभी प्रश्नों का उत्तर देता हूँ । हे राजन् ! दान देने वाले और व्रत करने वाले दोनों ही प्रकार के मनुष्यों से मैं अधिक प्रसन्न होता हूँ । अब आप इस एकादशी व्रत का माहात्म्य श्रवण कीजिये –

                                              पौष माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को “सफला एकादशी” के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के देवता नारायण हैं। इसका पूर्वोक्त विधि अनुसार व्रत करना चाहिए और भगवान् नारायण की पूजा करनी चाहिये । जो मनुष्य एकादशी व्रत तथा पूजन करते हैं उनका जीवनोद्धार हो जाता है। सफला नाम की एकादशी में भगवान् को ऋतु के अनुसार फल अर्पण करना चाहिए अर्थात् नारियल, नींबू, अनार, सुपारी आदि ।

धूप, दीप, पुष्प आदि से षोडशोपचार विधि से पूजा करें। इस दिन दीपदान तथा रात्रि को जागरण करना चाहिये । इस एकादशी व्रत के समान यज्ञ, तीर्थ तथा दूसरा कोई भी व्रत नहीं है। मनुष्य को पाँच सहस्त्र वर्ष तपस्या करने से जो पुण्य मिलता है वह पुण्य भक्तिपूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी के व्रत करने से प्राप्त होता है।

व्रत कथा : 
                हे राजन् ! अब आप सफला एकादशी की कथा ध्यानपूर्वक सुनिये । चम्पावती नगरी में एक माहिष्मत नाम का राजा राज्य करता था । उसके चार पुत्र थे । इन पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक महापापी था । वह सदैव परस्त्री गमन तथा वैश्याओं के यहाँ गमनागमन में  अपने पिता का धन नष्ट किया करता था । वह देवता, ब्राह्मण, वैष्णव आदि की निन्दा किया करता था । जब पिता को अपने बड़े पुत्र के विषय में समाचार ज्ञात हुआ तब उन्होंने उसको अपने राज्य से निकाल दिया । पिता के द्वारा राज्य से बाहर निकल दिए जाने के कारण लुम्पक विचार करने लगा कि अब मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? इस प्रकार विचार करने के पश्चात् लुम्पक दिन में वन में निवास करने लगा और रात्रि में अपने पिता के राज्य में चोरी तथा अन्य कुत्सित कर्म करने लगा । जिस वन में दिन के समय राजपुत्र निवास करता था वही वन भगवान् को भी अत्यन्त प्रिय था । उस वन में एक बहुत पुराना पीपल का वृक्ष था जो सभी देवताओं का क्रीड़ा स्थल था । इसी वृक्ष के नीचे लुम्पक रहता था ।

कुछ दिनों के पश्चात् पौष माह के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत से मूर्च्छित हो गया क्योंकि अधिक सर्दी के कारण रात्रि को वह न सो सका तथा सर्दी के कारण उसके हाथ पैर अकड़ गये । उसका दिन और वह रात्रि बड़ी कठिनता से बीती । सूर्यनारायण के उदय होने पर भी उसकी मूर्च्छा समाप्त नहीं हुई ।

सफला एकादशी के मध्याह्न तक वह दुराचारी मूर्च्छित ही पड़ा रहा । जब सूर्य की गर्मी से उसे होश आया तो वह अपने स्थान से उठकर वन में भोजन की तलाश में चल पड़ा । उस दिन वह जीवों को मारने में असमर्थ था । इसलिये जमीन पर गिरे हुए फलों को लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे आ गया । जब भगवान् सूर्य अस्ताचल को प्रस्थान कर गये तब वह पीपल की जड़ के पास फलों को रख कर कहने लगा कि हे भगवान् ! इन फलों से आप ही तृप्त हों । ऐसा कहकर वह रोने लगा और रात्रि को उसे नींद भी नहीं आयी । इस प्रकार लुम्पक का अज्ञानवश व्रत हो गया । इससे भगवान् अत्यन्त प्रसन्न हुए और उसके समस्त पाप नष्ट हो गये । प्रातः ही एक दिव्य घोड़ा अनेकों सुन्दर वस्तुओं से सुसज्जित उसके समक्ष आकर खड़ा हो गया और आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र ! भगवान् नारायण के प्रभाव से तेरे समस्त पाप नष्ट हो गये हैं। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर । लुम्पक ने जब ऐसी आकाशवाणी सुनी तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ और बोला हे भगवान् ! आप की जय हो, ऐसा कहता हुआ वह सुन्दर वस्त्रों को धारण कर अपने पिता के पास राज्य में चला गया । उसने अपने पिता को सम्पूर्ण कथा सुनायी और पिता ने उसे अपना राज्यभार सौंपकर वन का रास्ता चुन लिया । अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा । उसके स्त्री, पुत्र आदि भी परम भक्त बन गये । वृद्धावस्था आने पर वह अपने पुत्र को गद्दी दे भगवान् का भजन करने के लिये वन में चला गया और अन्त में विष्णुलोक को प्राप्त हुआ ।

भक्तिपूर्वक जो मनुष्य सफला एकादशी का व्रत करते हैं, वे अन्त में मोक्ष को प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक सफला एकादशी का व्रत नहीं करते हैं वे पूँछ और सींग से रहित पशु तुल्य हैं। सफला एकादशी के महात्म्य का पठन व श्रवण करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

कथासार

इस कथा से हमें ईश्वर के अति कृपालु होने का प्रमाण मिलता है। यदि कोई प्राणी अज्ञानवश भी ईश्वर का स्मरण करे तो उसे सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है । यदि प्राणी सच्चे हृदय से अपने अपराधों की क्षमा माँगे तो ईश्वर उसके बड़े से बड़े अपराधों को भी क्षमा कर देते हैं। लुम्पक जैसा महापापी भी भगवान् नारायण की कृपा से वैकुण्ठ का अधिकारी बन गया । 

सफला एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • सफला एकादशी का व्रत पांच हजार वर्ष तक किए गए तप के समान फल की प्राप्ति कराता है।
  • एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक सुखों का उपभोग करके अन्त में मोक्ष की प्राप्ति करता है।
  • एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनने से राजसूय यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है।
  • एकादशी व्रत के प्रभाव से भौतिक सुख ,समृद्धि और ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है।
  • मन अभिलषित कामनाओं की पूर्ति भी होती है । 

इस प्रकार पौष मास के कृष्णपक्ष में आने वाली “सफला एकादशी” की व्रत कथा का माहात्म्य सम्पूर्ण हुआ । यह एकादशी अवश्य ही मनुष्य का कल्याण एवं पुरुषार्थ की सिद्धि कराने वाली है ।  

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