जीवन के समस्त मलों (पापों) को शान्त करने का सरलतम उपाय आमलकी एकादशी

जीवन के समस्त मलों (पापों) को शान्त करने का सरलतम उपाय आमलकी एकादशी

।। आमलकी एकादशी व्रत ।।

फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को “आमलकी एकादशी” के नाम से जाना जाता है । हिंदू सनातन संस्कृति में वैसे तो समस्त एकादशियों का महत्व माना गया है, परन्तु इन सभी एकादशियों में भी “आमलकी एकादशी” का व्रत महत्वपूर्ण है ।

आमलकी एकादशी को आमलक्य एकादशी के नाम से भी जाना जाता है । सनातन संस्कृति तथा आयुर्वेद दोनों में इस एकादशी को श्रेष्ठ बतलाया गया है। एकादशी के दिन भगवान् नारायण की विशेष पूजा होती है । “श्री ब्रह्माण्डपुराण” के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान् नारायण को अत्यन्त प्रिय है क्योंकि आंवले के वृक्ष में श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी का वास होता है इसलिए आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान् विष्णु की पूजा करने का विधान है।

आमलकी एकादशी व्रत और पारण का शुभ मुहूर्त :

  • आमलकी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 20 मार्च को है।
  • एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में पूर्वाह्न वेला में 21 मार्च को करें ।

आमलकी एकादशी व्रत के दिन क्या करें ?

  • प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं तथा साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें ।
  • स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात् घर के मंदिर में या देवालय में जाकर दीप प्रज्ज्वलित करें और पूजन करें । 
  • भगवान् विष्णु का गंगाजल अथवा पंचामृत से अभिषेक करें ।
  • भगवान् विष्णु को तुलसीदल तथा पुष्प अर्पित करें । 
  • एकदशी के दिन घर में सात्विक वस्तुओं/सामग्री का ही प्रयोग करें ।
  • भगवान् विष्णु को तुलसीयुक्त नैवेद्य अर्पित करें ।
  • इस दिन भगवान् विष्णु को आंवले के फल का विशेष भोग अवश्य लगायें । 
  • भगवान् विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • एकादशी के दिन भगवन् नाम का अधिक से अधिक सुमिरन करें ।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमो नमः” इस मंत्र का अधिक से अधिक जप करें ।
  • रात्रि कालीन वेला में भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती कर भोग लगायें तथा भगवान् को विश्राम कराएँ ।

श्री ब्रह्माण्डपुराण में वर्णित आमलकी एकादशी व्रत की कथा :

मान्धाता जी बोले - हे वशिष्ठजी ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आमलकी एकादशी व्रत कथा बतलाइए जिससे मेरा कल्याण हो । महर्षि वशिष्ठ बोले - हे राजन् ! सभी व्रतों में उत्तम और अन्तकाल में मोक्ष प्रदान करने वाली “आमलकी एकादशी” व्रत का वर्णन करता हूं । आप ध्यानपूर्वक सुनिये ।

आमलकी एकादशी का व्रत फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष में किया जाता है । इस व्रत को करने का पुण्य एक सहस्र (हजार) गौदान के फल के सदृश है। महर्षि बोले- हे राजन् ! मैं आपसे एक पौराणिक कथा कहता हूँ आप उसका श्रवण कीजिये । वैदिश नामक नगर में चैत्ररथ नामक चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था । राजा के राज्य में सभी वर्णों (ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र,) के जन आनन्दपूर्वक निवास करते थे । राजा विद्वान तथा धार्मिक प्रवृत्ति का था । राजा के राज्य के निवासी, वृद्ध से बालक तक सभी एकादशी का व्रत करते थे ।

एक समय, फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में आमलकी नामक एकादशी आई । उस दिन राजा सहित सम्पूर्ण प्रजा ने सहर्ष आमलकी एकादशी का व्रत किया । राजा अपनी प्रजा के साथ मन्दिर में जाकर, पूर्ण कुम्भ स्थापित करके तथा धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न, छत्र आदि से धात्री आँवले का पूजन करने लगे । पूजन के पश्चात् सभी ने धात्री की इस प्रकार स्तुति करने लगे - हे धात्री ! तुम ब्रह्म स्वरूप हो। तुम ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हो और समस्त पापों को नष्ट करने वाली हो, तुमको नमस्कार है। अब तुम अर्घ्य स्वीकार करो । तुम श्रीरामचन्द्रजी द्वारा सम्मानित हो। मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ। मेरे समस्त पापों को हरण करो ।

स्तुति के पश्चात् सभी ने देवालय में रात्रि जागरण किया और भगवन् नाम का सुमिरन किया । रात्रि के मध्य में ही उस समय एक बहेलिया आ गया । वह महापापी तथा दुराचारी था । वह भूखा और प्यास से व्याकुल था । जब उस बहेलिये ने देवालय में भगवन् नाम संकीर्तन सुना तो वह मंदिर के द्वार पर ही बैठ गया । बहेलिये ने देवालय में भगवान् विष्णु की कथा एवं एकादशीव्रत के माहात्म्य को सुना । बहेलिया ने वह रात्रि अन्य लोगों के साथ जागकर व्यतीत की । प्रातःकाल होते ही सभी लोग अपने-अपने घर गये । 

कुछ समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् उस बहेलिये की मृत्यु हो गयी । मृत्यु के पश्चात् आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण के प्रभाव से उस बहेलिये ने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया तथा उसका नाम बसुरथ रखा गया । बड़े होने पर वह चतुरंगिणी सेना के सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर दस सहस्त्र ग्रामों का पालन करने लगा । वह तेज में सूर्य के, कान्ति में चन्द्रमा के, वीरता में भगवान् विष्णु के और क्षमा में पृथ्वी के समान था । वह अत्यन्त धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था । धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण वह सदैव यज्ञ किया करता था ।

एक दिन वह राजा शिकार खेलने के लिये गया । देवयोग से वह राजा मार्ग भूल गया और थककर उसी वन में एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने बैठ गया । उसी समय पहाड़ी म्लेच्छ वहाँ आये और राजा को अकेला देखकर उस पर मारो-मारो का शब्द करके टूट पड़े । वे म्लेच्छ कहने लगे कि इस दुष्ट राजा ने हमारे सम्बन्धियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है। अतः इसे अब अवश्य मारना चाहिये । ऐसा कहकर वे म्लेच्छ राजा पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार करने लगे । उनके अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो जाते और उसको पुष्पों के समान प्रतीत होते । उन म्लेच्छों के अस्त्रशस्त्र उन पर उल्टा प्रहार करने लगे जिससे वे मूर्च्छित हो गये । उस समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री प्रकट हुई जो अत्यंत सुन्दर तथा सुन्दर वस्त्रों एवं आभूषणों से अलंकृत थी । उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, आँखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी । वह म्लेच्छों को मारने दौड़ी और समस्त म्लेच्छों को काल के गाल में पहुँचा दिया । जब राजा विश्राम से जगा तो इन म्लेच्छों को मरा हुआ देखकर विचार करने लगा कि इन शत्रुओं को किसने मारा है?  जब राजा ऐसा विचार कर रहा था तभी आकाशवाणी हुई और कहने लगी हे राजन् ! इस संसार में तुम्हारी भगवान् विष्णु के अतिरिक्त कौन रक्षा कर सकता है? इस प्रकार आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा ।

महर्षि वशिष्ठ बोले - हे राजन् ! यह सब आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अन्त में विष्णुलोक में जाते हैं।

कथासार

भगवान् विष्णु की शक्ति हमारे सभी संकटों को काटती है। यह मनुष्य की ही नहीं, देवों की रक्षा में भी पूर्णतया समर्थ है। इसी शक्ति के बल से भगवान् विष्णु ने मधु-कैटभ नामक दैत्यों का संहार किया था। इसी शक्ति ने उत्पन्ना एकादशी बनकर मुर नामक दैत्य का वध करके देवों को सुखी किया था । केवल एक बार आमलकी एकादशी का व्रत करने वाले बहेलिए को जन्म- जन्मान्तर तक विष्णु भगवान् की कृपा प्राप्त हो रही थी । 

श्रीब्रह्माण्डपुराण में वर्णित आमलकी एकादशी व्रत का माहात्म्य :

  • आमलकी एकादशी का व्रत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति कराता है 
  • इस व्रत को करने से अनेक तीर्थों में दर्शन करने के समान फल की प्राप्ति होती है ।
  • इस दिन भगवान् विष्णु और आंवले के पौधे की पूजा करने से उपासक को भगवान् विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • इस व्रत का फल एक हजार गौदान के फल के बराबर होता है।
  • आमलकी एकादशी का व्रत उपासक को निश्चय ही विष्णुलोक का अधिकारी बनाता है। 

इस प्रकार भगवान् “श्रीब्रह्माण्डपुराण” में वर्णित आमलकी एकादशी व्रत का माहात्म्य सम्पूर्ण हुआ । यह एकादशी अवश्य ही मनुष्य को सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करने वाली एवं कल्याण करने वाली है ।   

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