About Puja
कल्याणकामी मनुष्यों को ऋषि महर्षियों द्वारा प्रतिपादित शास्त्रों के वचनानुसार कर्तव्य पालन में निरन्तर उत्सुक तथा प्रतिबद्ध रहना चाहिए,जिससे शास्त्रीय सिद्धान्तों का रक्षण तथा प्रसारण होता रहे इस प्रक्रिया से सिद्धान्तों के साथ ही विचारों का भी संरक्षण होता है। नवीन गृह, धर्मशाला, गोशाला प्रतिष्ठान, कारखाना अस्पताल या अन्य जो भी कुछ नवनिर्माण कराना हो, उस भूमि का विधिवत् शोधन एवं पूजन करने की प्राचीन परम्परा है। किसी निर्माण से पूर्व इस भाव से विधिवत् पूजन करें । यथा - अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में वर्णित है -
"माताभूमि: पुत्रो अहं पृथिव्याः।"
अर्थात् भूमि हमारी माता है, हम पृथ्वी के पुत्र है, इस दृष्टि से भी पुत्र का माता के प्रति विधिवत् आराधना एवं पूजा आवश्यक कर्तव्य है। शुभ माह, तिथि, ग्रह, नक्षत्र वार एवं योग के अनुसार भूमि पूजन का मुहूर्त निश्चित करना चाहिए। उत्तम मुहूर्त में शिलान्यास (भूमि पूजन) करने से विघ्न बाधा रहित गृह निर्माण का कार्य पूर्ण हो जाता है । भूमि पूजन और गृह प्रवेश के समय कुलदेवता के साथ भगवान् गणेश क्षेत्रपाल देवता, वास्तु देवता और दिक् (दिशा) देवता का विधिवत् पूजन करना चाहिए। गृह निर्माण वाली भूमि पर गाय का पूजन एवं वास कराना चाहिए। यदि गोवास सम्भव न हो तो, गोबर एवं गोमूत्र से उस भूमि को लीपना चाहिए जिससे भूमि का पूर्णत: शोधन हो जाए। आचार्य और शिल्पी को वस्त्र एवं दक्षिणा से संतुष्ट करना चाहिए, ऐसा करने से सदा मंगल होता है|
सूर्य यदि मेष वृष कर्क सिंह तुला वृश्चिक मकर और कुंभ इन राशियों पर हो तो वह शिला पूजन एवं गृह निर्माण का उत्तम मुहूर्त माना जाता है। वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष और फाल्गुन शिला पूजन एवं नींव स्थापन के लिए शुभ मास स्वीकार किया गया है, इसके साथ ही नक्षत्र, तिथि,वार तथा राहु की दिशा को भी जानना आवश्यक है।
Benefits
भूमि का पञ्चविध शोधन:-
जिस भूमि पर निर्माण कार्य कराना हो उसका सर्वप्रथम शोधन आवश्यक है। भूमि शोधन के पांच प्रकार हैं।
सम्मार्जनोपाञ्जनेन सेकेनोल्लेखनेन च ।
गवां च परिवासेन भूमिः शुध्यति पञ्चभिः।।
अर्थात् सम्मार्जन (झाड़ना), गोबर से लीपना, सीचना (गोमूत्र गङ्गाजल से) खोदना (ऊपरकी मिट्टी हटाना) और गायों को ठहराना। इन पाँच विधियों से भूमि का सर्वोत्तम शोधन होता है।
- सामान्यतः शिलान्यास आग्नेय दिशा में करना चाहिए तथा शेष निर्माण प्रदक्षिण क्रम करनी चाहिए।
- ध्रुवतारे का स्मरण कर नींव रखनी चाहिए ।
- विधिवत् देवभूमि पूजन के पश्चात् शिला स्थापन से वह स्थान व्यक्ति एवं उसके व्यक्तित्व का नित्य उत्कर्ष होता है। तथा समस्त अमङ्गलों का नाश होता है।
Process
भूमि पूजन एवं शिला स्थापन में होने वाले प्रयोग या विधि-
- आग्येन दिशा में गर्त निर्माण
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलशस्थापन एवं वरुणादिदेवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्य मन्त्र पाठ
- साङ्कल्पिक नान्दीमुख श्राद्ध
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता, पञ्चलोकपाल, दशदिक्पाल, वास्तु पूजन
- रक्षाविधान,प्रधान देवता पूजन
- पञ्चगव्यनिर्माण
- पञ्चशिलास्थापन, वास्तुदेव ध्यान, अष्टनागों का आवाहन
- धर्म रूप वृष का आवाहन
- शिलाओं का प्रक्षालन, सप्तमृत्तिका स्नान, पूजन विधि
- गर्त भूमिलेपन, पञ्चशिला एवं पंच कुम्भस्थापन
- कूर्मपूजन, अनन्तपूजन, भूमिपूजन, भूदेवी को अर्घ्यदान
- भूदेवी को बलि प्रदान
- गर्त में तेल और सरसो का विकिरण
- शिला एवं कलश स्थापन, दिक्पाल पूजा बलि, विश्वकर्मा पूजन
- वास्तोषपति पूजन एंव और यथा शक्ति जप, आरती
- प्रसाद वितरण
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती, लाल वस्त्र
- तीर्थ स्थान की मिट्टी
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर
- शिला - 5
- गीता या हनुमान चालीसा -1
- पानी वाला नारियल
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- एक जोड़ी नाग नागिन-1