About Puja
अपने नवीन घर या कार्यालय में शान्ति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए गृह प्रवेश पूजा के साथ ही वास्तु शान्ति कराना परम आवश्यक है।वास्तु वह स्थान है जहां प्रकृति और मनुष्य एक साथ निवास करते हैं। वास्तु शान्ति पूजा, जिसे वास्तु दोष निवारण पूजा भी कहा जाता है, आसपास के सभी बाधाओं एवं हानिकारक तत्वों को हटाकर दोनों के बीच एक अद्भुत सन्तुलन बनाती है। यह गृह जनित आपदाओं को रोकता है, इसलिए उस स्थान के वास्तु को अनुकूल बनाने में मदद करता है।
गृह स्वामी को सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए अपने घरों या कार्यालयों में गृह प्रवेश एवं वास्तु शान्ति पूजा कराना परम आवश्यक हैं। वैदिक मन्त्रोच्चार पूर्वक गृहप्रवेश एवं वास्तु पूजा के प्रभाव से घर में सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि यह प्रकृति के पञ्चतत्वों और ब्रह्माण्ड में नव ग्रहों की ऊर्जा के बीच सद्भाव और सन्तुलन बनाता है। वास्तु शान्ति पूजा नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का सञ्चार करती है। मत्स्य पुराण के अनुसार हिंदू संस्कृति में अपने घरों में सौभाग्य, धन, सफलता और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए गृहप्रवेश एवं वास्तु शान्ति पूजा समारोह की नितान्त आवश्यकता है। इसे गृहप्रवेश वास्तु शान्ति पूजा कहा जाता है। वास्तु वह विज्ञान है जो घर को नियन्त्रित करता है। यह प्रकृति के पांच तत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को नियन्त्रित करता है। हमारे घरों और परिवेश में ऊर्जा सभी तत्वों द्वारा नियन्त्रित होती है और ग्रहों से प्रभावित होती है। ये घटक हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाते हुए हमारे परिवेश को सद्भाव और सन्तुलित बनाते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार घर ब्रह्माण्ड का एक सूक्ष्म जगत् है, और परिवेश में अच्छी ऊर्जा स्थानान्तरित करने के लिए इसके भीतर अच्छी तरंगें पैदा करना आवश्यक है।वास्तुशान्ति पूजा विशेष अवसरों पर की जाती है जैसे, गृह प्रवेश समारोह या कोई नया व्यवसाय शुरू करते समय। इस पूजा में मन्त्रों का जाप करना, और वैदिक शास्त्रों के अनुसार विधिवत् शान्ति पूजा को कराना शामिल है। भारतीय संस्कृति में यजमान अपने जीवन में सौभाग्य और समृद्धि लाने के लिए वास्तु शान्ति एवं गृहप्रवेश पूजा करते हैं।
इस पूजा की परम्परा हजारों साल पुरानी है। वास्तु विज्ञान बहुत बड़ा है, और ऐसा माना जाता है कि यह प्रकृति के तत्वों और ब्रह्मांड में नौ ग्रहों को नियंत्रित करता है। यह इसे हमारे परिवेश में ऊर्जा के लिए जिम्मेदार बनाता है, जिसमें हमारा घर अथवा कार्यालय आदि सम्मिलित हैं। इस पूजा के द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता है और नवनिर्मित भवन या घर में शान्ति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजा को करने से व्यक्ति किसी भी निर्माण या इमारत में मौजूद किसी भी नकारात्मक ऊर्जा या बाधाओं को दूर करता है और यह सुनिश्चित हो जाता है कि वहां निवास कर रहे भक्तगण सदैव शान्ति और सद्भाव पूर्वक निवास करेंगे। वास्तु शांति पूजा का महत्व देवताओं के आशीर्वाद का आह्वान करना और सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह सदैव सन्तुलित रहता है।
वास्तु शान्ति पूजा ज्यादातर गृह प्रवेश पूजा से पहले की जाती है, जिसका उद्देश्य किसी भी वास्तु दोष और भूमि में ऊर्जा के प्राकृतिक प्रवाह की विफलता को ठीक करना है। इन दोषों को अक्सर वास्तु दोष के रूप में जाना जाता है, जो अनसुलझे होने पर वहां पर निवास कर रहे लोगों के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। प्रतिकूल पर्यावरणीय एवं प्राकृतिक परिस्थितियों से बचने के लिए वास्तु शान्ति कराना परमावश्यक है।
वास्तु दोष कैसे उत्पन्न होता है:-
- जब कोई निर्णय वास्तु नियमों के विरुद्ध हो जाता है|
- ऐसी इमारत का निर्माण करना जो वास्तु सिद्धान्तों के विरुद्ध हो।
- कमरों और इमारतों का गलत ले आउट।
- पुराना घर खरीदने पर घर या कार्यस्थल के नवीनीकरण के बाद|
- एक दशक तक एक स्थान पर रहने के बाद एक लम्बी विदेश यात्रा से वापस आने पर नए निवास में स्थानान्तरण करते समय चल रहे वित्तीय संघर्ष आदि सम्मिलित हैं।
Benefits
गृह प्रवेश एवं वास्तु शान्ति का माहात्म्य एवं लाभ :-
- इसके प्रभाव से घर में स्वस्थ और सामञ्जस्य पूर्ण वातावरण का निर्माण होता है।
- गृहप्रवेश एवं वास्तुशाति पूजा से धन के प्रवाह में सुधार होता है।
- दुर्भाग्य की निवृत्ति तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- परिवार में सुरक्षा, शान्ति और कल्याण की भावना का विकास होता है।
- घर से नकारात्मक ऊर्जा गमन तथा सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है।
- परिवार में समृद्धि का आगमन होता है, तथा उनकी वित्तीय स्थिरता में बढ़ोत्तरी होती है।
- गृहस्वामी के साथ ही परिवारी जनों का आध्यात्मिक विकास के तरफ मन प्रवृत्त होता है तथा जीवन में सफलता के नए रास्ते खुलते हैं।
Process
गृह प्रवेश एवं वास्तु शान्ति में होने वाले प्रयोग या विधि-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान आदि
- पंचभूसंस्कार
- अग्नि स्थापन
- ब्रह्मा वरण
- कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति
- मूलमन्त्र आहुति
- चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति
- स्विष्टकृत आहुति
- पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक
- मार्जन
- बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती भोग, विसर्जन आदि
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारियल
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- गोदुग्ध,गोदधि