About Puja
सनातन आर्ष परम्परा में ऋषि महर्षियों ने तपश्चर्या एवं साधना के द्वारा लिखित स्मृति, सूत्र आदि विभिन्न उत्कृष्ट ग्रन्थों में, इस लौकिक जगत् की ऐसी कौन सी समस्या है जिसका निस्तारण (निराकरण) इन शस्त्रीय ग्रन्थों में न हो। यथा सागर से मोती प्राप्त करने के लिए गोताखोर को सागर के तल में जाना पड़ता है, उसी प्रकार अपने समस्याओं के निदान एवं कामनाओं की प्राप्ति के लिए जिज्ञासु साधक शास्त्रों में अन्तस्थ तक जाकर अभिलाषाओं की पूर्ति हेतु सिद्धान्तों को प्रकाशित करता है, और यह भगवत् कृपा सम्पन्न अधिकारी को ही प्राप्त होता है।
जीवमात्र को अपने निवास एवं व्यवसाय के लिए किसी न किसी उत्तम स्थान (भूमि) मकान एवं प्रतिष्ठान की आवश्यकता होती है। उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए शास्त्रों में उपासना का विधान किया गया है, यदि सहजता एवं सरलता से वास योग्य भूमि नहीं प्राप्त हो रहा हो तो, भगवान् वराह की सविधि उपासना का विधान है। भगवान् वराह की उपासना, मन्त्रजप स्तुति , प्रार्थना आदि करने से निवास योग्य भूमि एवं आवास प्राप्त हो जाता है।
उपासना की शक्ति से साधक को अत्यन्त दुर्लभतम वस्तुओं की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड में लिखा है, कि भूमि प्राप्ति की कामना वाले मनुष्यों को शास्त्र विधि का अवलम्बन लेकर वेदज्ञ ब्राह्मणों के द्वारा वराह मन्त्र का जप कराना चाहिए। श्री वराह मन्त्र के ऋषि सङ्कर्षण, देवता वराह, छन्द पङ्क्ति और बीज श्री हैं।
*ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्युद्धारणाय स्वाहा* यह मंत्र है।
इस मंत्र के प्रभाव से भू-देवी उपासक को सब प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करेंगी ।
भगवान् वराह के अङ्गो की कान्ति शुद्धस्फटिक गिरिके समान श्वेत है। विकसित लाल कमलदलों के समान उनके सुन्दर नेत्र हैं। मुख वराह के समान है, पर स्वरूप सौम्य है। चतुर्भुज-धारी भगवान् वराह के मस्तक पर किरीट तथा वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न है। हाथों में चक्र, शङ्ख, अभय मुद्रा और कमल शोभायमान है। पीत वस्त्रों से सुशोभित रक्त आभूषणों से विभूषित श्रीकच्छप के मध्य पृष्ठ पर शेषनाग के उपर सहस्रदल आसन पर विराजमान भगवान् वराह सुशोभित हो रहे हैं।वराह मन्त्र का चार लाख जप एवं घी मधु मिश्रित खीर से हवन होता है।
इसके साथ ही भगवान् वेदव्यास प्रणीत श्रीमद्भागवत महापुराण के तृतीय स्कन्ध के त्रयोदश अध्याय का पाठ भी यथा संख्या करानी चाहिए।
Benefits
श्री स्कन्दपुराण के अनुसार माहात्म्य:-
भगवान् वाराह ने कहा- देवि ! पहले कृतयुगमें
*धर्म नामक महात्मा* मनु ने ब्रह्माजी से इस मन्त्रको प्राप्त किया और इसी पर्वत पर उसका जप करके मेरा प्रत्यक्ष दर्शन पाया। फिर मुझसे अभीष्ट वरदान प्राप्त करके वे मेरे पदको प्राप्त हो गये। पूर्वकालमें इन्द्र दुर्वासाके शापसे स्वर्गभ्रष्ट हो गये थे; उस समय इसी मन्त्रसे यहीं मेरी आराधना करके उन्होंने पुनः स्वर्गका राज्य प्राप्त कर लिया। भूदेवि ! अन्यान्य मुनियोंने भी इस मन्त्रका जप करके परम गति प्राप्त की है। सर्पोंके स्वामी अनन्तने कश्यपजीसे इस मन्त्रको पाकर श्वेत-द्वीपमें इसका जप किया और उसीसे अद्भुत शक्ति पाकर वे पृथ्वीको धारण करनेमें तमें समर्थ हुए हैं।
*अतः पृथ्वीकी अभिलाषा रखनेवाले मनुष्योंको इहलोकमें सदा ही इस मन्त्रका जप करना चाहिये।*
Process
भूमि प्राप्ति के लिए अनुष्ठान में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- प्रधान देवता पूजन, आरती
- प्रसाद वितरण
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- पंचगव्य गोघृत
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- पानी वाला नारियल
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर