गुरु चाण्डाल योग

गुरु चाण्डाल (दोष) पूजा

दोष एवं निवारण | Duration : 4 Hrs 30 Min
Price : 18500

About Puja

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब जातक की कुण्डली में राहु और बृहस्पति ग्रह एक साथ विद्यमान हों तब गुरु-चाण्डाल योग (दोष) का निर्माण होता है।  इस कारण छाया ग्रह राहु के प्रभाव में आने से गुरु भी जातक को अशुभ फल देने लगता है। यही कारण है की चाण्डाल दोष को साढ़ेसाती, कालसर्प दोष और मंगल दोष से भी अधिक अशुभ माना गया है। क्योंकि इस दोष के नकारात्मक प्रभाव से जातक षड्यंत्रकारी हो जाता है और भी अनैतिक व्यवहार अपनाता है,जिसके परिणाम स्वरुप उसकी मनोस्थिति अपने जीवन साथी से अलग किसी अन्य की ओर आकर्षित रहता है। जिससे उसका चारित्रिक पतन होना सुनिश्चित हो जाता है। यह योग जातक को नकारात्मक फल प्रदान करता है। गुरु चाण्डाल योग से गुजर रहे जातकों में चारित्रिक दोष आ जाते हैं। जिसकी वजह से वैवाहिक जीवन में कलह उत्पन्न हो जाती है। लग्न से पञ्चम अथवा नवम भाव में जब राहु और गुरु विद्यमान हों तब यह गुरु- चाण्डाल योग विनाश की स्थिति उत्पन्न करता है। यदि समय रहते इस दोष का समाधान ना किया जाए तो यह समस्त शुभ फल को अशुभ फल में परिवर्तित कर देता है। जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता है वह जातक अनैतिक कार्यों में प्रवृत्त रहता है। इस दोष के कारण पेट से सम्बन्धित समस्या लीवर से सम्बन्धित,कैंसर रोग आदि गम्भीर बीमारियों का खतरा बना रहता है। जातक अपने धर्म से भ्रष्ट हो जाता है तथा इस दोष से ग्रसित होने पर समाज में ऐसे जातक को अपयश की प्राप्ति होती है। यदि किसी महिला की कुण्डली में  यह योग बना हुआ है, तो उसका जीवन अनेक प्रकार के कष्टों के साथ व्यतीत होता है, तथा उसके जीवन में दूसरा विवाह करने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

गुरु चाण्डाल (दोष) के लक्षण:-

  • गुरु चाण्डाल दोष में यदि राहु का पक्ष बलवान है,तो व्यक्ति गलत संगत में पड़ जाता है, ऐसे लोग जुआ और नशा करने लगते हैं।
  • गुरु चाण्डाल दोष से युक्त जातक के जीवन से धीरे-धीरे सुख-शान्ति  समाप्त हो जाती है।
  • गुरु चाण्डाल दोष से व्यक्ति को धन हानि और मानसिक परेशानियां बढ़ने लगती हैं।
  • व्यापार और नौकरी में व्यक्ति के हाथों से गलतियां होने लगती हैं ,जिससे व्यक्ति को काफी नुकसान होता है।
  • शैक्षणिक कार्यों में समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
  • दुर्घटना और स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ता जातक को परेशान करती हैं।
  • परिवार के सदस्यों के साथ मनमुटाव की‌ स्थिति उत्पन्न होने लगती है।

गुरु चाण्डाल योग कब अनिष्ट फल नहीं देता है:-

ज्योतिष विद्या के अनुसार जब जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कर्क राशि में विद्यमान हो तब यह दोष प्रभावहीन हो जाता है अथवा राहु और गुरु के साथ लग्न में यदि अन्य कोई ग्रह विद्यमान हो तब इसका प्रभाव नष्ट हो जाता है कुण्डली में बृहस्पति अस्त हो या वक्री हो ऐसी स्थिति में भी गुरु चाण्डाल योग (दोष)का प्रभाव नहीं रहता।
 

Benefits

गुरु चाण्डाल (दोष) पूजा से लाभ:-

  • ज्योतिष के अनुसार इस दोष की निवृत्ति करने से जीवन में सुख,समृद्धि आती है।
  • दोष समाप्त होने पर जातक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
  • जातक के व्यवहार में सकारात्मकता आती है।
  • इस पूजा के प्रभाव से जीवन में पद, प्रतिष्ठा ,यश और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
  • घर के सदस्यों का स्वास्थ्य बेहतर होता है।
  • यह पूजा अथवा अनुष्ठान कराने से आपके महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न होते हैं।
  • इस पूजा के प्रभाव से आपके वो सभी कार्य जो रुके हुए थे, वो पूर्ण हो जाते हैं।
  • शारीरिक और मानसिक चिन्ताएं दूर होती हैं।
  • नौकरी, करियर और जीवन में आ रही सभी बाधाएं समाप्त होती हैं।

Process

गुरु चाण्डाल दोष में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान, 
  14. प्रधान देवता पूजन
  15. पाठ विधान
  16. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  17. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  18. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  19. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  20. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  21. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  22. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  23. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  24. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला)
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  1. काला तिल 
  2. चावल 
  3. कमलगट्टा, 
  4. हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  5. गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  6. बलिदान हेतु पापड़
  7. काला उडद 
  8. पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  9. प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  10. हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  11. पिसा हुआ चन्दन 
  12. नवग्रह समिधा
  13. हवन समिधा 
  14. घृत पात्र
  15. कुशा
  16. पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. दीपक मिट्टी का 
  13. तुलसी पत्र -7
  14. पानी वाला नारियल
  15. शमी पत्र एवं पुष्प 
  16. थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  17. अखण्ड दीपक -1
  18. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  19. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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