About Puja
गृह, मन्दिर, कार्यालय, औषधालय नवीन या प्राचीन किसी भी संस्था में सम्पूर्ण निर्माण के पश्चात् प्रवेश से पूर्व नकारात्मक ऊर्जा का दूरीकरण एवं सकारात्मक ऊर्जा के आगमन के लिए गृह वास्तु पूजन करना नितान्त आवश्यक है। विधिवत् वास्तु भगवान् के पूजन के साथ अन्य देवों के माङ्गलिक वेदोच्चार द्वारा अर्चन करने से उस स्थान की शुद्धि एवं समृद्धि के साथ ही उस स्थल पर निवास करने वालों का सर्वदा उत्कर्ष होता है। वास्तुशास्त्र की दृष्टि से वास्तु भगवान् के अनेक पद हैं- यथा राजगृह या ग्राम आदि के निर्माण में 64 पद वाले वास्तुपुरुष का पूजन, गृह निर्माण में 81 तथा मन्दिर निर्माण में 100 पद वाले वास्तु पुरुष का पूजन श्रद्धा भक्ति युक्त शास्त्र के अनुसार करना चाहिए। गृह निर्माण के समय बहुत सारे जीव जन्तु ज्ञात अज्ञात में मर जाते हैं, उन सभी जीवों की शान्ति तथा भूमि दोष निवारण के लिए वास्तु पूजन परम आवश्यक है।नव्यगृह निर्माण,मुख्य द्वार निर्माण,गृह प्रवेश विवाह यज्ञोपवीत आदि संस्कारों के साथ माङ्गलिक कार्यों में वास्तु पूजन आवश्यक है। वास्तु पूजन में अनेक देवताओं का आवाहन एवं पूजन के साथ ही बलि प्रदान की जाती है,जिसके कारण वो देवता सदा उस स्थान पर रहने वालों से प्रसन्न रहते हैं।अप्रतिष्ठित अथवा चैतन्य रहित स्थान,गृह आदि में रहने से वहां के सभी लोगों में चैतन्यता तथा मानवीय गुणों का ह्रास होता है। अप्रतिष्ठित स्थान पर रहने से नित्य जीवन में भी प्रतिष्ठा नहीं होती तथा अप्रतिष्ठित जीवन मृत्यु तुल्य माना जाता है।
Benefits
वास्तुदोष शान्ति का माहात्म्य एवं लाभ -
- गृहवास्तु शान्ति के पश्चात् गृहप्रवेश करने से अपरिमित लाभ दृष्टिगोचर होता है।
- विधि विधान पूर्वक गृह वास्तु शान्ति से स्वास्थ्य लाभ तथा धन का आगमन होता है।
- विभिन्न ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव शान्त होते हैं तथा सकारात्मकता का विस्तार होता है।
- स्वास्थ्य, धन, सुख, समृद्धि आदि का विस्तार होता है, तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में सदा उन्नति और लाभ की प्राप्ति होता है।
- प्राकृतिक तथा भौतिक समस्त बाधाओं से सर्वदा रक्षा होती है।
- वास्तुशास्त्रानुकूल यज्ञ जीवन में बाधाओं को शान्तकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
गृह वास्तु शान्ति न कराने से हानि की आशङ्का :
- गृह, कार्यालय,प्रतिष्ठान आदि में प्रवेश से पूर्व यदि गृहवास्तु पूजन एवं शान्ति नहीं हुआ हो तो बारम्बार दु:स्वप्न,सङ्कट,अकालमृत्यु तथा धन हानि का भय रहता है।
- वास्तु पूजन के विना उस भवन आदि में निवास करने वालों के ऊपर हमेशा दूसरों का ऋण रहता है तथा वह शीघ्र उऋण नहीं होता है।
- उस गृह या स्थान में रहने वाले लोगों के ऊपर हमेशा दूसरों का ऋण रहता है तथा शीघ्र ऋण से युक्त नहीं होता है।
- जिस गृह या कार्यालय में वास्तु शान्ति नहीं होती, वहां रहने वाले लोग सामान्यतया बीमार रहते हैं।
- पुत्र वियोग के संकट की संभावना बनी रहती है।
- जिस स्थान पर वास्तु दोष होता है, उस स्थान का अभ्युदय कभी नहीं होता ।
- वास्तु पूजन ना करने से मनुष्य निर्धन होता है, तथा निर्धनता में ही मृत्यु होती है।
- बारम्बार दुःस्वप्न,संकट,अकाल मृत्यु तथा हानि का भय रहता है।
Process
वास्तुदोष शान्ति में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- ञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- पंचभूसंस्कार
- अग्नि स्थापन
- ब्रह्मा वरण
- कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति
- मूलमन्त्र आहुति
- चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति
- स्विष्टकृत आहुति
- पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक
- मार्जन
- बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती भोग, विसर्जन आदि
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत,पीली सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधी
- पञ्चरत्न, मिश्री
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उड़द
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- पानी वाला नारियल
- पीला कपड़ा सूती
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि