About Puja
ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों तथा उनके भिन्न-भिन्न फलों का उल्लेख प्राप्त होता है। ये सभी नक्षत्र जितने महत्वपूर्ण हैं, ठीक उसी प्रकार वे नक्षत्र जातक के व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित करते हैं, एवं शुभ तथा अशुभ फलों को प्रदान करते हैं। भारतीय वैदिक ज्योतिष परम्परा में 27 नक्षत्रों का वर्णन किया गया है। विष्णुपुराण में इन्हें दक्ष प्रजापति की पुत्रियों के रूप में वर्णन किया गया है।
नक्षत्र और राशि के अनुसार ही मनुष्य की जीवन शैली, गुण, विचार, संस्कार का इत्यादि का सम्बन्ध होता है। जिस नक्षत्र में व्यक्ति जन्म लेता है वह निश्चित रूप से उसके स्वभाव और भावी जीवन पर उसी प्रकार का प्रभाव डालता है। इन्हीं 27 नक्षत्रों में से छः नक्षत्रों को मूल नक्षत्र कहते हैं। जिन्हें हम गण्डमूल नक्षत्र भी कहते हैं। ये आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, रेवती, अश्विनी ये गण्डमूल संज्ञक नक्षत्र हैं जो दोष युक्त माने जाते हैं। इन नक्षत्रों में उत्पन्न हुए बालक अथवा बालिका गण्ड मूलक कहलाते हैं।
इन नक्षत्रों के चरणांश विशेष में उत्पन्न जातक को अरिष्टकारक माना जाता है। अरिष्ट शान्ति के लिए गण्डमूल नक्षत्रों में जन्मे शिशु की लगभग 27 वें दिन उसी नक्षत्र में किसी सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा नक्षत्र, ग्रह एवं देवी देवताओं के पूजन हवन आदि क्रियाओं के द्वारा शान्ति कराना परम आवश्यक है। यदि किसी कारणवश बच्चे की मूलशान्ति 27 वें दिन सम्पन्न नहीं हो, तो उसके आगामी जन्म से पूर्व या 27 वें मास में अथवा जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म हुआ है उस नक्षत्र में मूल शान्ति अवश्य करानी चाहिए। गण्डमूल नक्षत्रों में उत्पन्न सन्तान माता-पिता, भाई-बहन, धन-व्यवसाय, मान-प्रतिष्ठा आदि तथा स्वयं अपने स्वास्थ्य एवं आयुष्य के सम्बन्धों में कष्टकारी और अशुभ माना जाता है, इन नक्षत्रों की शान्ति परम आवश्यक है।
Benefits
गण्डमूल नक्षत्रों की शांति का शुभ तथा अशुभ फल:-
- रेवती नक्षत्र, के प्रथम चरण में शिशु का जन्म हुआ हो, तो वह बालक राजा के सदृश ऐश्वर्यवान् होता है,दूसरे चरण में धनवान्, तीसरे में सुविधाओं से युक्त उसका जीवन होता है। परन्तु चतुर्थ चरण में उत्पन्न बालक अनेक प्रकार का कष्ट भोगता है।
- अश्विनी नक्षत्र, के प्रथम चरण में शिशु का जन्म होने से पिता को कष्ट, धन की हानि, द्वितीय में धन का अपव्यय,तृतीय में पिता को आकस्मिक यात्रा गमन चतुर्थ में स्वयं के लिए अनिष्टकारी होता है।
- आश्लेषा नक्षत्र, के प्रथम चरण में शिशु का जन्म होने से राजा के तुल्य सुख की प्राप्ति, द्वितीय चरण में धन की हानि, तृतीय चरण में माता अथवा मामा पक्ष को हानि तथा चतुर्थ चरण में जन्म होने से पिता को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।
- मघा नक्षत्र, के प्रथम चरण में जन्म होने से माता अथवा मातृपक्ष को हानि होती है, द्वितीय चरण में पिता के लिए अरिष्टकारक, तृतीय चरण में धन-सम्पदा तथा ऐश्वर्य आदि गुणों से युक्त तथा चतुर्थ चरण में धन, सम्पत्ति एवं उच्च विद्या आदि सुखों की प्राप्ति करता है।
- ज्येष्ठा नक्षत्र, के प्रथम चरण में यदि शिशु का जन्म होता है, तो बड़े भाई को हानि पहुंचाता है, द्वितीय चरण में छोटे भाई के लिए अरिष्टकारी होता है। तृतीय चरण में जन्म होने से माता अथवा ननिहाल पक्ष को हानि पहुंचाता है,तथा चतुर्थ चरण में स्वंय के लिए अशुभ होता है।
- मूल नक्षत्र, जातक का जन्म यदि मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ है, तो वह अपने पिता के लिए अनिष्टकारी होता है। द्वितीय चरण में माता को अनिष्टकारी होता है। तृतीय चरण में शिशु का जन्म पैतृक धन- धान्य, सम्पदा आदि का विनाश करता है, तथा चतुर्थ चरण में शिशु का जन्म धन का लाभ कराता है।
Process
गण्डमूल नक्षत्र शान्ति विधि में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान आदि
- पंचभूसंस्कार
- अग्नि स्थापन
- ब्रह्मा वरण
- कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति
- मूलमन्त्र आहुति
- चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति
- स्विष्टकृत आहुति
- पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक
- मार्जन
- बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती भोग, विसर्जन आदि
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- पानी वाला नारियल,
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर
- सौ छिद्र वाला घड़ा (कलश)
- 27 तीर्थों का जल
- 27 जगह की मिट्टी