कुण्डली दोष निवारण पूजा

कुण्डली दोष निवारण पूजा

दोष एवं निवारण | Duration : 3 Hrs 30 min
Price Range: 11000 to 16500

About Puja

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुण्डली में विभिन्न प्रकार के योग एवं दोष दृष्टिगोचर होते हैं। जैसे – केमद्रुम दोष (दरिद्रदोष), प्रेत दोष, पितृ दोष, ग्रहण दोष, विष, दोष आदि। जन्म कुण्डली में 2 या उससे अधिक ग्रहों की दृष्टि, भाव, युति आदि के मेल से योगों का निर्माण होता है। ग्रहों, योगों एवं दोषों की सटीक जानकारी और फलादेश का आधार स्तंभ ज्योतिष शास्त्र को माना गया है। कुण्डली में व्याप्त अशुभ योगों के कारण जातक को दुःख झेलना पड़ता है। इन दोषों की पुष्टि केवल कुण्डली देखने के बाद ही सुनिश्चित की जाती है, एवं उसके आधार पर ही पूजा, दोष शांति आदि करायी जाती है।

कुण्डली दोष के प्रकार:-

  1. चांडाल दोष- जन्मांग में किसी भी स्थान में राहु एवं गुरु की युति हो, तो चांडाल दोष बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति नास्तिक एवं पाखंड़ी बनता है। यह एक दारिद्रय सूचक योग है। इस योग के कारण दरिद्रता आती है। सदैव मानसिक तनाव रहता है। यदि यह योग 'केतु एवं गुरु' के कारण बनता हो, तो व्यक्ति उपासक बनता है। व्यक्ति हमेशा शंकाओं के दायरे में रहता है, उसका किसी पर भी भरोसा नहीं रहता‌, इस दोष के कारण व्यक्ति बंधु बांधवों से विवाद करता है, जिससे क्लेश की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति मिथ्या वचन बोलता है, परस्त्री पर बुरी दृष्टि डालता है, अर्थात् मति भ्रष्ट कार्य करता है।
  2. अल्पायु योग- जब जातक की कुण्डली में चंद्र ग्रह के साथ कोई भी पाप ग्रह राहु केतु त्रिक स्थान अथवा लग्न स्थान पर वापस ग्रहों की दृष्टि हो और चंद्र शक्तिहीन हो, तब ऐसी स्थिति में जातक की कुण्डली में अल्पायु योग होता है।
  3. ग्रहण योग- ग्रहण योग मुख्यत 2 प्रकार के होते हैं 1. चंद्र ग्रहण, 2. सूर्य ग्रहण। यदि जातक की कुण्डली में चंद्रमा, राहु या केतु के साथ विद्यमान हो, तो चंद्र ग्रहण और जब सूर्य के साथ बैठा हो, तब ऐसी स्थिति में सूर्य ग्रहण योग होता है।
  4. वैधव्य योग- जातक की कुण्डली में यदि सप्तम भाव का स्वामी मंगल अथवा शनि हो और तृतीय, सप्तम या दशम भाव पर दृष्टि डाल रहा हो, या फिर सप्तमेश का संबन्ध शनि अथवा मंगल से बन रहा हो या सप्तमेश में बलहीन हो तब कुण्डली में वैधव्य योग बनता है।
  5. दारिद्रय योग- जब जातक की कुण्डली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुण्डली के षष्ठम, अष्टम अथवा 12वें घर में विद्यमान हो, ऐसी स्थिति में जातक की कुण्डली में दारिद्रय योग का निर्माण होता है।
  6. षड्यंत्र योग- जातक की कुण्डली में यदि लग्न का स्वामी आठवें घर में विद्यमान हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह ना हो तब षड्यंत्र योग का निर्माण कुण्डली में होता है।
  7. कुज योग(मांगलिक दोष)- जब किसी जातक की कुण्डली में मंगल ग्रह लग्न में या चतुर्थ,सप्तम,अष्टम या द्वादश भाव में विद्यमान हो तब यह कुज योग कुण्डली में बनता है।
  8. केमद्रुम योग- जब जातक की कुण्डली में चंद्रमा द्वितीय या द्वादश भाव में हो तथा चंद्रमा के आगे और पीछे के घरों में कोई ग्रह ना हो ऐसी स्थिति में केमद्रुम योग बनता है।
  9. अंगारक योग- यदि जातक की कुण्डली में मंगल ग्रह का राहु या केतु किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए, तब कुण्डली में अंगारक योग का निर्माण होता है।
  10. विष योग- जब जातक की कुण्डली में शनि और चंद्र की युति या शनि की चंद्र पर दृष्टि हो, तब विष योग बनता है। कर्क राशि में शनि पुष्य- नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हों अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों, तब भी विष योग बनता है। यदि 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि ग्रह, मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक लग्न में हो तब भी यह योग बनता है।

कुण्डली दोष के लक्षण:-

उपरोक्त योगों से जातक को जीवन भर कई प्रकार की विषम परिस्थियों का सामना करना पड़ता है। पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है।

  • भाई-बंधु, इष्ट मित्रों एवं पारिवारिक जनों से कष्ट प्राप्त होता है।
  • अकाल मृत्यु तथा जीवन के प्रत्येक मार्ग पर भय बना रहता है।
  • गृहस्थ जीवन में तनाव, पत्नी से क्लेश तथा विक्षोह होने की संभावना बनी रहती है।
  • अत्यधिक परिश्रम के पश्चात् भी समुचित फल की प्राप्ति नहीं होती।
Benefits

कुण्डली दोष निवारण पूजा के लाभ:-

  • कुण्डली दोष निवारण पूजा से कुण्डली मेंस्थित अशुभ ग्रह शांत होते हैं।
  • दोष शांति के पश्चात् व्यापार एवं कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
  • जीवन की समास्याओं एवं बाधाओं का निराकरण होता है।
  • विवाह में आने वाली बाधाएं शांत होती हैं।
  • शिक्षा एवं धन प्राप्ति के सारे मार्ग खुल जाते हैं।
Process

कुण्डली दोष निवारण के लिए प्रयोग एवं विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं  पूजन
  13. रक्षाविधान आदि
  14. पंचभूसंस्कार
  15. अग्नि स्थापन
  16. ब्रह्मा वरण
  17. कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति
  20. मूलमन्त्र आहुति 
  21. चरुहोम
  22. भूरादि नौ आहुति
  23. स्विष्टकृत आहुति
  24. पवित्रप्रतिपत्ति
  25. संस्रवप्राशन
  26. मार्जन
  27. पूर्णपात्र दान
  28. प्रणीता विमोक
  29. मार्जन
  30. बर्हिहोम
  31. पूर्णाहुति, आरती भोग, विसर्जन  आदि
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग
  • इलाइची, सुपारी
  • हल्दी, अबीर
  • गुलाल, अभ्रक
  • गङ्गाजल, गुलाबजल
  • इत्र, शहद
  • धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों
  • देशी घी, कपूर
  • माचिस, जौ
  • दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
  • सप्तमृत्तिका
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि
  • पञ्चरत्न, मिश्री
  • पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल
  • चावल 
  • कमलगट्टा
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर)
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी,  प्रणीता,  स्रुवा,  शुचि,  स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच
  • पिसा हुआ चन्दन
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • पानी वाला नारियल, 
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
  • अखण्ड दीपक -1
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
  • गोदुग्ध,गोदधि

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