Mangal Dosh

माङ्गलिक दोष एवं निवारण

दोष एवं निवारण | Duration : 2 Days
Price Range: 13000 to 31500

About Puja

           जब जातक लड़का या लड़की की जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह यदि वैवाहिक जीवन में समस्याओं का कारण बनता है, तब वह स्थिति मांगलिक दोष अथवा मंगल दोष कहलाती है। जब जन्म कुंडली में मंगल पीड़ित होकर अशुभ ग्रहों एवं भावों के संयोग में विद्यमान होता है, तब मंगल का प्रभाव नकारात्मक होता है और जब नकारात्मक मंगल सप्तम भाव को प्रभावित करता है तब मंगल दोष अथवा मांगलिक दोष कुंडली में बनता है। जब जातक की कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में विद्यमान हो तो वह जातक मंगल दोष से युक्त होता है।
कुंडली में यदि सप्तम भाव में मंगल के साथ अन्य कोई पाप ग्रह राहू, केतु, अथवा शनि विद्यमान हो तब मंगल जनित दोष अधिक प्रभावशाली हो जाता है।

           जब मंगल के साथ‌ प्रथम,चतुर्थ या सप्तम भाव में राहु‌, केतु, शनि अथवा सूर्य विद्यमान हो तब मंगल वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल की स्थिति को उत्पन्न करता है। अतः ऐसी स्थिति में जातक लड़का और लड़की को विवाह से पूर्व मंगल दोष की शान्ति अवश्य करानी चाहिये।यदि कन्या की कुंडली में मंगल दोष है, तो उसको शास्त्रोक्त विधि से कुम्भ विवाह सम्पन्न कराने के पश्चात् ही वैवाहिक जीवन में प्रवेश करना चाहिये। ठीक ऐसे ही लड़़के की कुंडली में यदि मंगल दोष है तो उसको भी शास्त्रोक्त विधि से अर्क विवाह सम्पन्न करना चाहिये। इस विधि को संपादित करने से मांगलिक दोष शान्त हो जाता है| इसीलिए जब कुंडली में मंगल ग्रह 1,4,7,8 तथा 12वें भाव में विद्यमान हो तो वह जातक मांगलिक होता है।

Benefits

माङ्गलिक दोष एवं निवारण का माहात्म्य:-

  • प्रथम भाव में मंगल, यदि लग्न स्थान में वृष या तुला  राशि में मंगल  विद्यमान हो तब जातक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है, ऐसा जातक क्रोधी, झगड़ालू तथा जिद्दी स्वभाव का होता है। 
  • चतुर्थ भाव में मंगल, चतुर्थ भाव में मंगल यदि उच्च का या स्वगृही हो तो जातक को माता-पिता के सुख की प्राप्ति होती है। परंतु यदि मंगल मिथुन, कन्या, मकर या कुम्भ राशि के साथ विद्यमान हो, तब जातक माता-पिता के प्रेम से वंचित रहता है,परिवार के लोगों में विरोधाभास बना रहता है, तथा जातक को अग्निगत भय उत्पन्न होता है।
  • सप्तम भाव में मंगल, इस प्रकार के जातकों में मेधा शक्ति की कमी रहती है, तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं निरंतर बनी रहती है। मिथुन या कन्या राशि का मंगल होने पर जातक के दो विवाह होते हैं, परंतु दोनों  के अनिष्ट की आशंका बनी रहती है,अर्थात् शुभ फल नहीं देता।
  • स्वगृही (मेष या वृश्चिक राशि), का मंगल या उच्च (मकर राशि)का मंगल होने पर जातक को स्त्री सुख की प्राप्ति होती है,तथा व्यापार में सफलता मिलती है। मकर राशि या कुम्भ राशि में स्थित मंगल जातक को दुराचारी बनाता है। 
  • अष्टम भाव में मंगल, स्वगृही या उच्च का मंगल जातक को उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायुवान् बनाता है। किन्तु नीच (कर्क राशि) का मंगल स्वास्थ्य की हानि कराता है। वृष और तुला राशि का मंगल स्त्री पक्ष से दुःख तथा व्यापार में धन की हानि कराता है। सिंह का मंगल धन एवं स्वास्थ्य की हानि के साथ अल्पायु (आयु को नष्ट)करता है। तथा ऐसे जातक की पत्नी कर्कशा,(अप्रिय बोलने वाली, झगड़ालू प्रवृत्ति की) मिलती है। 
  • द्वादश भाव में मंगल, जातक के दाम्पत्य जीवन में असन्तुष्टि, धन एवं विद्या की न्यूनता रहती है। कर्क राशि में मंगल होने पर दुराचार में जातक के धन का नाश कराता है। मिथुन और कन्या राशि का मंगल जातक को अहंकारी बनाता है। धनु अथवा मीन राशि में विद्यमान मंगल सभी से विरोध अथवा धन का अपव्यय करवाता है।
  • मांगलिक दोष का प्रभाव दाम्पत्य सुख का नाश करता है।
  • पति-पत्नी एक साथ जीवन यापन नहीं कर पाते।
  • आपसी सुखों में कमी आती है।
  • मृत्यु का भय बना रहता है।
Process

माङ्गलिक दोष एवं निवारण में  होने वाले प्रयोग या विधि-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं  पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. पंचभूसंस्कार
  15. अग्नि स्थापन
  16. ब्रह्मा वरण 
  17. कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति
  20. मूलमन्त्र आहुति 
  21.  चरुहोम
  22. भूरादि नौ आहुति
  23.  स्विष्टकृत आहुति
  24. पवित्रप्रतिपत्ति
  25. संस्रवप्राशन 
  26. मार्जन
  27. पूर्णपात्र दान
  28. प्रणीता विमोक
  29. मार्जन 
  30. बर्हिहोम 
  31. पूर्णाहुति, आरती  भोग, विसर्जन  आदि
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र:-

  1. काला तिल 
  2. चावल 
  3. कमलगट्टा
  4. हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  5. गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  6. बलिदान हेतु पापड़
  7. काला उडद 
  8. पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  9. प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  10. हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  11. पिसा हुआ चन्दन 
  12. नवग्रह समिधा
  13. हवन समिधा 
  14. घृत पात्र
  15. कुशा
  16. पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. तुलसी पत्र -7
  13. पानी वाला नारियल,
  14. शमी पत्र एवं पुष्प 
  15. थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  16. अखण्ड दीपक -1
  17. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  18. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  19. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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