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केतु ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 4 Hours 45 minute
Price : 15000
About Puja

      भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु छायाग्रह है। आकाशमण्डल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया है। इनकी दो भुजाएं हैं, ये अपने सर पर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं। ये नित्य गीध की सवारी करते हैं। पूर्व में बताई गई मत्स्यपुराण की कथानुसार स्वरभानु के धड़ को ही केतु कहा जाने लगा। केतु राहु का ही कबन्ध है, राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया था। आकाशमण्डल में केतु की अधिकता देखने के मिल जाती है। इनमें धूमकेतु प्रधान हैं। राहु की तरह केतु भी व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता है। ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिए हितकारी होता है।

जपविधान- 

  • केतु की महादशा 7 वर्ष की होती है। इसके अधिदेवता चित्रकेतु तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं। 
  • जातक की कुण्डली में केतु के अशुभ रहने पर जीवन में कई तरह की बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जिनके निवारण हेतु शान्तिपाठ अवश्य कराना चाहिए।
  • केतु ग्रह के शान्तिविधान में 17 हजार बार जप कराने का विधान है, लेकिन कलियुग में चार गुना जप करने से ही राहत मिल जाती है।
  • केतु की अनुकूलता हेतु एवं उसके प्रभाव को कम करने के लिए केतु रत्न लहसुनिया धारण करना आवश्यक होता है।
  • पुराणों में केतु की प्रसन्नता के लिए ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मणों को दान दी जाने वाली वस्तुओं का वर्णन इस प्रकार मिलता है।

                    वैदूर्य रत्नं तैलं च तिलं कम्बलमर्पयेत्
                    शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय व
(अर्थात- जातक द्वारा वैदिक ब्राह्मणों को वैदूर्य रत्न, तेल, काला तिल, कम्बल, शस्त्र, नीले रंग का पुष्प, काला छाता, मसूर की दाल, दक्षिणा एवं लोहे के बर्तन दान करने से अनुकूलता प्राप्त होती है।)

केतु की प्रतिकूलता से हानि, एवं दुष्प्रभाव के लक्षण -

  • जीवन में अकस्मात हुए बड़े बदलाव जैसे, नौकरी छूट जाना, लम्बे समय तक नौकरी न लगना केतु की प्रतिकूलता के लक्षण हैं।
  • केतु की प्रतिकूलता के लक्षण व्यवहारिक जीवन में भी दिखाई देता है, जिससे सगे संबंधी भी जातक को भला बुरा कहने में तत्पर रहते हैं।
  • नशे की लत एवं ज्वारी स्वभाव में अथक प्रयास के बाद भी परिवर्तन न आना केतु के प्रभाव के लक्षण हैं।
  • केतु को कैंची का कारक बताया गया है, इसीलिए दुर्घटना होने की अवस्था में ऑपरेशन में कैंची आदि यंत्रों का मनुष्य की त्वचा पर चलना केतु की महादशा, अन्तर्दशा अथवा प्रत्यन्तर्दशा होने का अनुमान रहता है।
  • केतु के प्रतिकूल रहने पर कई तरह के रोग जैसे चर्मरोग, मांशपेशियों में दर्द, घुटनों में दर्द, बहरापन आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
  • केतु अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है, केतु के कारण ही जातक का स्वभाव कठोर हो जाता है और छोटी छोटी बातों पर आक्रोशित होने लगता है।
Benefits

केतु  ग्रह का महत्व -

  • वैसे तो ऐसी धारणा रहती है, कि केतु सभी कार्यों को अशुभ ही करता है। यदि केतु शुभ स्थिति में हो, तो जातक के लिए अत्यंत मंगलकारी सिद्ध होता है। 
  • जातक की कुण्डली में केतु के अशुभ दिशा में होने की स्थिति में शान्ति अनुष्ठान कराना आवश्यक होता है। 
  • केतु का शान्ति अनुष्ठान कराने पर सांसारिक जगत में अरुचि जागृत होने लगती है, एवं आध्यात्मिक गतिविधियां भी बढ़ने लगती है। 
  • केतु की कुण्डली में केतु का योग यदि शुभ ग्रहों से युक्त हो तो आध्यात्मिक ज्ञान, मुक्ति और भौतिक इच्छाओं से वैराग्य का प्रतिनिधित्व करता है।
  • वैदिक ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मणों द्वारा यदि पूरे विधिविधानपूर्वक जप कराया जाए, तो आत्मिक शांति की अनुभूति होती है।
  • मंत्र जप करने या कराने से पूर्व  किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process

केतु  ग्रह में होने वाले प्रयोग  या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन  सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • पानी वाला नारियल, सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला 
  •  पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर

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