राहु ग्रह

राहु ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 1 Day
Price Range: 11000 to 48500

About Puja

भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु सूर्य एवं चन्द्रमा के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के देवता हैं। ये ग्रह कोई खगोलीय पिण्ड नहीं है इन्हें छाया ग्रह के नाम से जाना जाता है।  राहु पैठीनस गोत्र के शूद्र तथा मलयदेश के अधिपति हैं। इनका वर्ण कृष्ण तथा वस्त्र भी कृष्णवर्ण का ही हैं। इनका वाहन सिंह है। इनके चारों हाथों में क्रमशः खड्ग, वर, शूल और ढाल है। इनके अधिदेवता काल तथा प्रत्यधिदेवता सर्प है। राहु एवं केतु से सम्बन्धित आख्यान पुराणों में विविध प्रकार से प्राप्त होता है।  समुद्र मन्थन के अवसर पर स्वरभानु नाम के दानव ने छल से दिव्य अमृत की कुछ बूंदों का पान कर लिया था। सूर्य एवं चन्द्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी अवतारधारी भगवान् विष्णु को सूचित कर दिया। भगवान् विष्णु ने उसकी गर्दन अपने सुदर्शन चक्र से काट डाली। यही सिर राहुग्रह और धड़ केतुग्रह बन गया तथा इसी कारण से ये दोनों सूर्य एवं चन्द्र से द्वेष रखते हैं, एवं इसी द्वेष के कारण ये दोनों सूर्य और चन्द्र को ग्रहण करने का प्रयास भी करते हैं।श्रीमद्भागवत के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दनु ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम विप्रचित्ति रखा गया। विप्रचित्ति का विवाह हिरण्यकश्यप की बहन सिंहिका से हुआ। राहु सिंहका का ही पुत्र है। इसी कारण राहु को सिंहिकेय भी कहा जाता है।  राहु ग्रह की शान्ति एवं अनुकूलता प्राप्ति के लिए गोमेद धारण करना चाहिए तथा भगवान् शिव का रुद्राभिषेक एवं काले तिल अर्पित करने चाहिए। राहु अशुभ ग्रहों के साथ क्रूर भी है इसलिए यदि किसी कुण्डली में राहु प्रतिकूल दशा में है, तो उस जातक के जीवन में विभिन्न दुष्प्रभाव पड़ते हैं। राहु और केतु कालसर्प दोष के भी कारक होते हैं। यदि राहु ग्रह खराब स्थिति में हो तो ऐसा व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ने लगता है, बहुत जल्दी ही मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। तनाव के कारण व्यक्ति में सोचने समझने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है, तथा उत्साहहीन होकर व्यक्ति हमेशा चिन्तित तथा भ्रमित रहता है। राहु के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति असत्यभाषी तथा बिना कारण काल्पनिकभय से भयभीत रहता है।  राहुग्रह की प्रतिकूलता से व्यक्ति में धोखाधड़ी, छल-कपट की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, व्यक्ति नशे के कार्य में ज्यादा रुचि लेने लगता है एवं स्वयं की नैतिक जिम्मेदारी से भटक जाता है और विश्वास का पात्र भी नहीं रहता है। इसके दुष्प्रभाव से व्यक्ति दुष्कर्म में प्रवृत्त हो जाता है और उसमें  दुर्गुणों की अधिकता तथा वह नीचकार्य में संलग्न पाया जाता है।  वह बार-बार चोटिल और घायल होता है।

राहु के दुष्प्रभाव से व्यक्ति लोभी, लालची तथा भौतिक सुखों को अधिक चाहता है। लेकिन प्राप्त नहीं कर पाता और यदि राहु बहुत खराब स्थिति में हो तो व्यक्ति को कारावास अर्थात् जेल जाने का कारण भी बनता है राहुग्रह के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग- मस्तिष्क रोग, कब्ज, अतिसार, भूत- प्रेत का भय, चेचक, कुष्ठरोग, कैंसर, गठिया, हृदयरोग, रीड की हड्डी टूटना, त्वचारोग इत्यादि।

Benefits

राहुग्रह के मन्त्रजप से लाभ  -

  • राहुग्रह के अनुकूल हो जाने पर विभिन्न प्रकार से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है ।  
  • जैसे- कुण्डली में राहु के शुभ प्रभाव से जातक मैं वाक्पटुता तथा अपने बड़े से बड़े शत्रु को भी मित्र बनाने की क्षमता प्राप्त करता है ।
  • राहुग्रह की शुभस्थिति से व्यक्ति में विकट परिस्थितियों से बाहर निकलने की प्रबल क्षमता तथा युक्तिबल अधिक रहता है ।
  • राहुग्रह के मन्त्रजप के प्रभाव से व्यक्ति मानसिक तनाव से मुक्त हो जाता है ।
  • राहु के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को राजनीति में सफलता के गुण प्राप्त होते हैं तथा व्यक्ति को अथक परिश्रम करने के बाद भी थकान प्रायः बहुत कम होती है ।
  • राहुग्रह के द्वारा प्रदत्त दुःखों के शमन के लिए तथा उनके द्वारा प्रदत्त प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए शास्त्रों में राहुग्रह की जपसंख्या 18000 बताई गई है ।
  • राहु के मन्त्रजप के प्रभाव से भविष्य में आने वाली बाधाएं शान्त हो जाती हैं । राहु की शान्ति हेतु क्रियमाण अनुष्ठान में विभिन्न प्रकार की वस्तुएं श्रद्धापूर्वक दान करने से राहु का प्रतिकूल प्रभाव शान्त हो जाता है तथा इनकी प्रसन्नता से जीवन में सभी प्रकार की अनुकूलताएं व्यक्ति को प्राप्त होती हैं ।
  • राहुग्रह के दोष निवारण हेतु बहुमूल्य खड्ग (तलवार) का दान करना चाहिए ।
  • काली भेड़, गोमेद, लोहा, लोहे के बर्तन, कम्बल, सोने का नाग, तिलपूर्ण ताम्रपात्र का दान करने से राहु जनित दोष शान्त होते हैं ।
  • मंत्र जप करने या कराने से पूर्व  किसी कुंडली विशेषज्ञ को कुंडली जरूर दिखाएं।
Process

राहु ग्रह में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14.  मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा,
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • पानी वाला नारियल,
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

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