शास्त्रज्ञान तथा अध्यात्मज्ञान की वृद्धि एवं पापों की निवृत्ति हेतु दत्तात्रेय स्तोत्र

शास्त्रज्ञान तथा अध्यात्मज्ञान की वृद्धि एवं पापों की निवृत्ति हेतु दत्तात्रेय स्तोत्र

।। श्री दत्तात्रेय  स्तोत्र ।। 

भगवान् विष्णु के अवतारों में महायोगीश्वर दत्तात्रेय जी की गणना होती है । ये भगवान् के ही अवतार हैं। अत्रिमुनि एवं माता अनसूया के द्वारा इनका प्रादुर्भाव हुआ। महाराष्ट्र एवं गुजरात में इनकी विशेष आराधना होती है। नारदपुराण में दत्तात्रेय स्तोत्र प्राप्त होता है। इसके पाठ से शत्रुविनष्ट होते है तथा अध्यात्म ज्ञान एवं शास्त्रज्ञान दोनों की वृद्धि होती है ।

जटाधरं पाण्डुरङ्गं शूलहस्तं कृपानिधिम् ।
सर्वरोगहरं    देवं       दत्तात्रेयमहं   भजे ॥

पीत वर्ण की आकृति वाले, जटाधारण किये हुए, हाथ में शूल लिये हुए, कृपाकरुणा के सागर तथा सभी रोगों को शान्त करने वाले देवस्वरूप दत्तात्रेयजी का मैं आश्रय लेता हूँ।

विनियोग : अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीदत्तः परमात्मा देवता, श्रीदत्तप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।

विनियोग : इस दत्तात्रेय स्तोत्र मन्त्र के ऋषि देवर्षि नारद हैं, छन्द अनुष्टुप् और परमेश्वर-स्वरूप दत्तात्रेयजी इसके देवता हैं। श्रीदत्तात्रेयजी की प्रसन्नताके लिये विनियोग किया जाता है।

जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसंहारहेतवे । 
भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१॥

संसार के बन्धन से सर्वथा विमुक्त तथा संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार के मूल कारण-स्वरूप आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च ।
दिगम्बर दयामूर्ते दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥२॥

जरा और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करने वाले, शरीर शोधनकर्ता  दिगम्बर-स्वरूप, दया के मूर्तिमान् विग्रह दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च ।
वेदशास्त्रपरिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥३॥

कर्पूर की कान्ति के समान गौर शरीर वाले, ब्रह्माजी की मूर्ति को धारण करने वाले और वेद-शास्त्र का पूर्ण ज्ञान रखने वाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है ।

ह्रस्वदीर्घकृशस्थूलनामगोत्रविवर्जित ।
पञ्चभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥४॥

कभी छोटे, कभी लम्बे, कभी स्थूल और कभी दुर्बल शरीर धारण करने वाले, नाम-गोत्र से रहित, केवल पंचमहाभूतों से युक्त अद्भूत तेज युक्तशरीर धारण करने वाले,आप दत्तात्रेयजी को मेरा प्रणाम है ।

यज्ञभोक्त्रै च यज्ञाय यज्ञरूपधराय ।
यज्ञप्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥५॥

यज्ञ के भोक्ता, यज्ञ-विग्रह और यज्ञ-स्वरूप को धारण करने वाले, यज्ञ से प्रसन्न होने वाले, सिद्धरूप आप दत्तात्रेयजी को मेरा प्रणाम है ।

आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः । 
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥६॥

सर्वप्रथम ब्रह्मारूप, मध्य में विष्णुरूप और अन्त में सदाशिव- स्वरूप-इन तीन स्वरूपों को धारण करने वाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा प्रणाम है।

भोगालयाय भोगाय योग्ययोग्याय धारिणे । 
जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥७॥

समस्त सुख-भोगों के आगर, सुखस्वरूप, सभी योग्य व्यक्तियों में भी उत्कृष्ट योग्यतम रूप धारण करने वाले, जितेन्द्रिय तथा जितेन्द्रियों के ज्ञान में आने वाले दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूपधराय च ।
सदोदितपरब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥८॥

सदैव दिगम्बर, दिव्यमूर्ति और दिव्यस्वरूप धारण करने वाले, जिन्हें सदा ही परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार होता रहता है, ऐसे आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

जम्बूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुरनिवासिने । 
जयमानः सतां देव दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥९॥

जम्बूद्वीप के विशाल क्षेत्र के अन्तर्गत मातापुर नामक स्थान में निवास करने वाले, संतों के बीच में सदा प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा प्रणाम है।

भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे। 
नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१०॥

हाथ में सुवर्णमय भिक्षापात्र लिये हुए, ग्राम-ग्राम और घर- घर में भिक्षाटन करने वाले तथा अनेक प्रकार के दिव्य स्वादयुक्त भिक्षा ग्रहण करने वाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा प्रणाम है।

ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले । 
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥११॥

ब्रह्मज्ञानयुक्त ज्ञानमुद्रा को धारण करने वाले और आकाश तथा पृथिवी को ही वस्त्ररूप में धारण करने वाले, अत्यन्त ठोस ज्ञानयुक्त बोधमय विग्रहवाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

अवधूत सदानन्द परब्रह्मस्वरूपिणे ।
विदेहदेहरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१२॥ 

अवधूत-वेष में सदा ब्रह्मानन्द में निमग्न रहनेवाले तथा परब्रह्म परमात्मा के ही स्वरूप, शरीर के बाद भी अशरीरी रहने वाले आप दत्तात्रेयजी को नमस्कार है।

सत्यरूप सदाचार सत्यधर्मपरायण। 
सत्याश्रय परोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१३॥

साक्षात् सत्य के रूप, सदाचार के मूर्तिमान् स्वरूप और सत्य- भाषण एवं धर्माचरण में लीन रहने वाले, सत्य के आश्रय और परोक्षरूप में परमात्मा तथा अदृश्य रूप में सर्वत्र व्याप्त आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

शूलहस्त गदापाणे वनमालासुकन्धर । 
यज्ञसूत्रधर ब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१४॥

हाथ में शूल तथा गदा धारण किये हुए, वनमाला से सुशोभित कंधों वाले, यज्ञोपवीत धारण किये हुए ब्राह्मणस्वरूप आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च । 
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१५॥

क्षर (नश्वर विश्व) तथा अक्षर (अविनाशी परमात्मा) – रूप में सर्वत्र व्याप्त, पर से भी परे, आराधना करने पर शीघ्र मोक्ष प्रदान करने वाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

दत्तविद्याय लक्ष्मीश दत्तस्वात्मस्वरूपिणे ।
गुणनिर्गुणरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१६॥

सभी विद्याओं को प्रदान करने वाले, लक्ष्मी के भी स्वामी, प्रसन्न होकर आत्मस्वरूप को ही प्रदान करने वाले, त्रिगुणात्मक एवं गुणों से अतीत निर्गुण अवस्था में रहने वाले आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम् । 
सर्वपापशमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१७॥

यह स्तोत्र बाह्य तथा आभ्यन्तर (काम, क्रोध, मोहादि) सभी शत्रुओं को नष्ट करने वाला, शास्त्रज्ञान तथा अनुभवजन्य अध्यात्मज्ञान-दोनों को प्रदान करने वाला है, इसका पाठ करने से सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। ऐसे इस स्तोत्रके आराध्य आप दत्तात्रेयजी को मेरा नमस्कार है।

इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम् ।
दत्तात्रेयप्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तितम् ॥१८॥

यह स्तोत्र बहुत दिव्य है। इसके पढ़नेसे दत्तात्रेयजी का साक्षात् दर्शन होता है। दत्तात्रेयजी के अनुग्रह से ही शक्ति सम्पन्न होकर नारदजी ने इसकी रचना की है।

 ॥ इस प्रकार श्रीनारदपुराण में  देवर्षि नारदजी द्वारा रचित दत्तात्रेयस्तोत्र समाप्त हुआ ॥

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