सीमन्तोन्नयन संस्कार क्या है? जानें सही विधि एवं शुभ मुहूर्त

सीमन्तोन्नयन संस्कार क्या है? जानें सही विधि एवं शुभ मुहूर्त

भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में प्रायः प्राचीन संस्कृति और संस्कारों का प्रभाव दृष्टिगोचर रहा है, प्रारंभ से ही आध्यात्मिक और संस्कारों से परिपूर्ण संस्कार रूपी अमृत-सुधा इस वैदिक परम्परा में बहती आ रही है, जिस कारण भारतीय संस्कृति की वर्तमान कालीन सन्दर्भ में विश्वपटल पर छवि प्रदर्शित हो पायी है। सम्पूर्ण धरातल पर मनुष्य को वेदों और शास्त्रों ने सर्वश्रेष्ठ माना है, क्योंकि मनुष्य को ही भाषा, विचार, भाव, अवबोध और व्यवहार का ज्ञान होता है और यही कारण है कि मनुष्य सभी प्राणियों से भिन्न है।   

हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी दिव्य दृष्टि के माध्यम से मानवीय जीवन को सुसज्जित और सुमर्यादित बनाने के निमित्त संस्कारों की व्यवस्था की। संस्कारों का महत्त्व मनुष्य के कल्याण और दैवीय जगत से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए किया गया, जिससे मनुष्य की दैवीय शक्तियों के साथ सम्बन्ध प्रगाढ़ हों और मनुष्य इस सृष्टिचक्र से सुपरिचित होकर दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करें तथा इस भौतिक जगत का उपभोग कर स्वयं ही अपना कल्याण करें, यही संस्कारों का मूल उद्देश्य है। जगत में दृश्य कोई भी वस्तु इस मायिक संसार में स्थायी नहीं है, अतः त्यागपूर्वक सांसारिक वस्तुओं का उपभोग मनुष्य करें, साथ ही आध्यात्मिक जगत से स्वयं का सम्बन्ध स्थापित करें। 

“सीमन्त उन्नीयते यस्मिन् कर्मणि तत्त सीमान्तोन्नयनम”। संस्कारों की इस प्रक्रिया में तृतीय संस्कार “सीमन्तोन्नयन संस्कार” है। सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण अथवा सीमान्त संस्कार भी कहते हैं। सीमन्तोन्नयन शब्द सीमन्त और उन्नयन इन दो शब्दों से मिलकर बना है। सीमन्त का अर्थ स्त्री की माँग भरना अर्थात् सिर के बालों की विभाजक रेखा से है। विवाह संस्कार में इसी सीमन्त में वर के माध्यम से सिन्दूर दान किया जाता है, तभी से वह विवाहिता सौभाग्यशालिनी वधू सीमन्तिनी या सुमंगली कहलाती है। स्त्रियों का यह सीमन्त भाग अत्यंत संवेदनशील होता है इसमें पवित्र सिन्दूर के सहयोग से जो विशिष्ट भाव एवं संवेगों का प्रादुर्भाव होता है, वे उसके अखंड दाम्पत्य जीवन के लिए सहयोगी एवं कल्याणकारी सिद्ध होते हैं।  

“सीमान्तोन्नयन संस्कार” में पति विशेष विधि के द्वारा गर्भिणी वधू के सीमन्त भाग का संस्कार करता है, जिसका प्रभाव उस स्त्री पर तथा उसकी संतान पर पड़ता है। अतः यह संस्कार अत्यंत आवश्यक है। “सीमान्तोन्नयन संस्कार” के सम्बन्ध में आचार्यों ने अलग-अलग अपने मतों का प्रतिपादन किया है, परन्तु आचार्य पारस्कर जी ने अपने ग्रह्यसूत्र में कहा है कि, इसे प्रथम गर्भ में ही करना चाहिए- “प्रथमगर्भे मासे षष्ठेऽष्टमे वा' अतः यही मत सर्वमान्य है।  

संस्कार कब करें ? 

गर्भधारण से छठे या आठवें मास में गर्भिणी स्त्री के मन की संतुष्टि तथा उसको आरोग्य रखने एवं गर्भ को स्थाई और उतरोत्तर उत्कृष्ट बनाने हेतु यह “सीमान्तोन्नयन संस्कार” करना चाहिए।   

'पञ्च सन्धयः शिरसि विभक्ताः सीमन्ता नाम, तत्रोन्मादभयचित्तनाशैर्मरणम्।' (सुश्रुतसंहिता, शारीर० ६।२७)  अर्थात् सुश्रुतसंहिता में लिखा गया है, कि मनुष्य के सिर में विभक्त पांच सन्धियाँ सीमन्त कहलाती हैं। इन पञ्च सन्धियों की उन्नति और प्रकाश होने पर मनुष्य की मस्तिष्क शक्ति की उन्नति होती है, अतः इस सीमन्त भाग की पुष्टि हेतु गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क को बलवान बनाया जाता है।  

प्रक्रिया:- स्त्री का गर्भ छठे या आठवें मास में शिक्षण के योग्य होता है, अतः इस समय गर्भिणी को सत्साहित्य के अध्ययन में रूचि रखनी चाहिए एवं सद्विचारों से सुसंपन्न रहना चाहिए। इस संस्कार में किन्हीं वीणावादकों को बुलाकर उनसे किसी राजा, लेखक अथवा किसी वीर पुरुष के चरित्र का गायन कराया जाता है, जिसका प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है, जिससे वह शिशु अत्यंत पराक्रमी एवं वीर प्रवृत्ति का होता है। अथवा गर्भिणी एकाग्रता के साथ अत्यन्त मनोभाव से मधुर वीणाध्वनि (फ़ोन में रिकार्डेड) का श्रवण करें।  

विशेष:- इस संस्कार में पति घृतयुक्त यज्ञावशिष्ट सुपाच्य पौष्टिक खीर अपनी गर्भवती पत्नी को खिलाता है एवं शास्त्रवर्णित गूलर आदि वनस्पति के माध्यम से गर्भिणी के सीमन्त (मांग) को पृथक् करता है।  

सीमान्तोन्नयन संस्कार में ग्राह्य तिथि, नक्षत्र, वार एवं लग्न- 

  • यह संस्कार गर्भधारण के छठे या आठवें मास में करना चाहिए जब मास का स्वामी बली हो। 
  • शुभवार:- रविवार, मंगलवार, एवं गुरुवार। 
  • शुभ तिथियाँ:- द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी (शुक्ल)। 
  • शुभ नक्षत्र:- मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, मूल, श्रवण। 
  • शुभ लग्न:- 1, 3, 5 ,7, 9, आदि विषम लग्न एवं केंद्र त्रिकोण में शुभग्रह हों।    

इस प्रकार से बताई गई तिथियों में ही वैदिक पद्धति द्वारा सीमान्तोन्नयन संस्कार करना या करवाना चाहिए। 

Vaikunth Blogs

अनिष्ट से मुक्ति एवं अमरत्व की प्राप्ति हेतु करें श्री सीतारामाष्टकम् स्तोत्र का पाठ
अनिष्ट से मुक्ति एवं अमरत्व की प्राप्ति हेतु करें श्री सीतारामाष्टकम् स्तोत्र का पाठ

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी एवं मां सीता जी को समर्पित यह स्त्रोत श्री मधुसूदन जी द्वारा प्र...

कार्य क्षेत्र , दैनिक जीवन में आ रही समस्याओं के समाधान हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ
कार्य क्षेत्र , दैनिक जीवन में आ रही समस्याओं के समाधान हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ

यह स्तोत्र श्री मत्परमहंसस्वामीब्रह्मानन्द जी द्वारा विरचित है । इस स्तोत्र में कुल नौ श्लोक हैं । भ...

घोर-संकट, विषाद, भय तथा पीड़ा से मुक्ति हेतु करें श्री नारायणाष्टकम् का पाठ
घोर-संकट, विषाद, भय तथा पीड़ा से मुक्ति हेतु करें श्री नारायणाष्टकम् का पाठ

श्री कूरेशस्वामी द्वारा विरचित यह स्तोत्र है इस स्तोत्र में आठ श्लोकों के द्वारा भगवान् नारायण की सु...

Significance of 16 Sanskar in Hinduism
Significance of 16 Sanskar in Hinduism

Sanskar is a series of sacraments that goes way back to the Vedic times or even before. Sanskar is t...

कायिक, वाचिक, मानसिक तथा सांसर्गिक चतुर्विध पापों की शान्ति हेतु करें इस नाम स्तोत्र का पाठ
कायिक, वाचिक, मानसिक तथा सांसर्गिक चतुर्विध पापों की शान्ति हेतु करें इस नाम स्तोत्र का पाठ

श्रीमद्भागवत के अनुसार- भगवन्नाम का संकीर्तन किसी भी स्थिति में किया जाए वह सर्वथा सुखदायी होता है ।...

धन्याष्टकम् करेगा आपके समस्त विकृतियों को दूर तथा करायेगा भगवत् कृपा की अनुभूति
धन्याष्टकम् करेगा आपके समस्त विकृतियों को दूर तथा करायेगा भगवत् कृपा की अनुभूति

।। धन्याष्टकम् स्तोत्रम् ।। श्री मत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्रीमत्शंकराचार्यजी द्वारा विरचित इस स्...

 +91 |

By clicking on Login, I accept the Terms & Conditions and Privacy Policy

Recovery Account